Election Preparation : 2024 के लिए पकने लगी विपक्ष की खिचड़ी

Election Preparation : 2024 के लिए पकने लगी विपक्ष की खिचड़ी

Election Preparation: The opposition's khichdi started cooking for 2024

Election Preparation

Election Preparation : विपक्ष 2021 में ही 2024 के आम चुनाव की तैयारियों में जुट गया है। विपक्ष की अगुवाई फिलवक्त कांग्रेस पार्टी कर रही है। वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भी राजनीतिक सक्रियता देखते ही बन रही है। बंगाल में जीत के बाद दिल्ली में पांच दिन रूककर ममता ने विपक्षी दलों के नेताओं से मेल-मुलाकात कर अगले आम चुनाव की तैयारियों को रोडमैप तैयार किया।

ऐसा नहीं है कि देश में पहली बार विपक्षी एकता की मुहिम शुरू हुई है। इससे पहले भी विपक्ष की एकता और तीसरे मोर्चे गठन के प्रयास होते रहे हैं। लेकिन चुनाव आते-आते सभी राजनीतिक दल अपने नफे-नुकसान के हिसाब से चुनाव मैदान में उतर जाते हैं। लेकिन इस बार तीसरे मोर्चे की बजाय विपक्षी एकता की बात की जा रही है।

इसलिए राजनीतिक हिसाब से इस बात और मुहिम का वनज बढ़ जाता है, लेकिन विभिन्न विचारधाराओं और व्यक्तिगत स्वार्थों में बंटे राजनीतिक दल एक छतरी के नीचे आ पाएंगे, ये बड़ा सवाल है?

विपक्षी एकता की मुहिम का झंडा कांग्रेस पार्टी ने संभाला हुआ है। 3 अगस्त को राहुल गांधी ने संसद में विपक्षी दलों के नेताओं को संसद भवन के करीब कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में सुबह के नाश्ते पर आमंत्रित किया था। मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस के अलावा 14 विपक्षी दलों के नेताओं ने राहुल गांधी की ब्रेकफास्ट मीटिंग में हिस्सा लिया था। नाश्ते और बैठक के बाद राहुल गांधी समेत कई विपक्षी नेताओं ने मंहगाई के खिलाफ संसद भवन तक साइकिल मार्च निकाला।

नाश्ते के बाद हुई विपक्ष की बैठक में सभी दलों ने विपक्षी एकता कायम करने पर जोर दिया. हालांकि बीएसपी और आम आदमी पार्टी इस बैठक से दूर रही। बीते 20 अगस्त को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के आमंत्रण पर गत दिवस आभासी माध्यम के जरिये विपक्षी दलों की बैठक में 19 दलों के नेतागण हुए शामिल हुए। उनमें शरद पवार, ममता बैनर्जी, उद्धव ठाकरे और एम. के. स्टालिन ही प्रमुख कहे जा सकते हैं। हालाँकि जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री डा. फारुख अब्दुल्ला के अलावा सीपीएम नेता सीताराम येचुरी भी बैठक का हिस्सा बने लेकिन राष्ट्रीय राजनीति को दिशा देने वाले राज्य उ.प्र की प्रमुख विपक्षी पार्टियों (Election Preparation) में से न बसपा आई और न ही सपा।

दिल्ली के बाद पंजाब में बड़ी राजनीतिक ताकर बनकर उभर रही आम आदमी पार्टी ने जानकारी दी कि उसको बैठक का न्यौता ही नहीं दिया गया। बैठक में केंद्र सरकार के विरुद्ध विपक्षी लामबंदी पर सहमति बनने के साथ ही आगामी 20 से 30 सितम्बर तक पूरे देश में संयुक्त रूप से आन्दोलन किया जाएगा। बैठक का असली उद्देश्य 2024 के लोकसभा चुनाव (Election Preparation) के लिए विपक्षी एकता की बुनियाद रखना बताया गया। बीते दिनों ममता बैनर्जी ने दिल्ली यात्रा के दौरान सोनिया गंाधी और शरद पवार सहित अन्य विपक्षी दलों से भेंट करते हुए भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने की पहल की थी। उनके पहले शरद पवार भी एक बैठक कर चुके थे किन्तु उसमें कांग्रेस मौजूद नहीं थी।

2014 में सत्ता में आने के बाद से ही मोदी सरकार अपनी विचारधारा और एजेंडे को आगे बढ़ाती रही है। तीन तलाक, सीएए, राम मंदिर, धारा 370 जैसे मुद्दों को भाजपा ने हमेशा से अपने एजेंडे में रखा और इन्हें पूरा भी कर दिया। भाजपा के पास भविष्य के लिए भी कॉमन सिविल कोड, जनसंख्या नियंत्रण कानून जैसे दर्जनों मुद्दे हैं, जिसके बल पर वह लोगों को एकजुट करने के हरसंभव प्रयास कर सकती है। लेकिन, भाजपा के खिलाफ बनाए जा रहे गठबंधन वाले विपक्ष के पास भाजपा विरोध ही एकमात्र मुद्दा है।

देश की मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने के लिए विपक्ष पूरी तरह से एजेंडा विहीन नजर आता है। भारत में 80 से 85 फीसदी तेल आयात किया जाता है। क्या विपक्ष के सत्ता में आने पर भारत में तेल के कुएं खोजे जाएंगे? अगर विपक्ष पेट्रोल-डीजल पर टैक्स घटा भी देती है, तो सरकारी योजनाओं के लिए धन कहां से आएगा? मोदी सरकार वैसे ही पेट्रोल-डीजल के बढ़े हुए दामों को यूपीए सरकार के दौरान जारी किए गए ऑयल बॉन्ड का नतीजा बताती है।

वहीं विपक्षी दलों में आपसी मतभेद और मनभेद भी किसी से छिपे नहीं है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही में महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुष्मिता देव को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया जबकि पूर्व राष्ट्रपति स्व.प्रणव मुखर्जी के पुत्र अभिजीत पहले ही तृणमूल का दामन थाम चुके थे। इसी तरह शरद पवार महाराष्ट्र में कांग्रेस को शायद ही पनपने देंगे। जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस का गठबंधन पहले भी होता रहा है लेकिन उसकी हैसियत जूनियर भागीदार की ही है।

राष्ट्रीय से क्षेत्रीय पार्टी में तब्दील होते जा रहे वामपंथी दलों का वैचारिक और मैदानी असर भी अब पहले जैसा नहीं रहा। सोनिया गांधी की बैठक में शरीक हुईं शेष विपक्षी पार्टियों में से एक-दो को छोड़कर बाकी कांग्रेस की सहायक बनने की बजाय बोझ बन जाएं तो आश्चर्य नहीं होगा। तेलंगाना से टी.आर.एस, आंध्र से वाई.एस.आर कांग्रेस और उड़ीसा से बीजू जनता दल उक्त बैठक में आये नहीं अथवा उनको बुलाया नहीं गया ये स्पष्ट नहीं है।

तेलुगु देशम के चन्द्र बाबू नायडू भी कांग्रेस की संगत का दंड भोग चुके हैं। भले ही तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी द्रमुक कांग्रेस के साथ है लेकिन वह भी कब पलटी मार जाए ये कहा नहीं जा सकता।

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