EXCLUSIVE : OBC आरक्षण की राह में एक और रोड़ा लाने की बड़ी तैयारी |

EXCLUSIVE : OBC आरक्षण की राह में एक और रोड़ा लाने की बड़ी तैयारी

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  • ओबीसी क्रीमी लेयर में पदों के स्थान पर वेतन जोड़ने का है नया प्रस्ताव
  • 10 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन वाले किसान भी आएंगे दायरे में
  • साधारण वेतन भोगी परिवार, विधायक, सांसद व आयोगों के सदस्य भी माने जाएंगे क्रीमी लेयर

अश्विन अगाड़े/रायपुर/नई  दिल्ली। ओबीसी (OBC) वर्ग को आरक्षण (Reservation) लेने के मामले में अभी भी अपने अधिकार के लिए लड़ाई लड़ना पड़ रहा है। ओबीसी कोटा वैसे भी 27 सालों में अब तक आधा ही भर पाया है, वहीं दूसरी ओर ओबीसी (OBC) आरक्षण (Reservation) की राह में एक और अवरोध (Obstacle) लाने की कवायद शुरू हो गई है। अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को केंद्रीय पदों और प्रवेश में आरक्षण देने बनाए गए क्रीमी लेयर (Creamy Layer) मानदंडों में भारत सरकार शीघ्र ही आमूल-चूल परिवर्तन करने जा रही है।

सूत्रों से प्राप्त जानकारी की मानें तो क्रीमी लेयर (Creamy Layer) के प्रस्तावित नए नियमों से साधारण वेतन भोगी परिवार, विधायक, सांसद व छोटे-मोटे आयोगों के सदस्य भी क्रीमी लेयर के दायरे में आकर उनके बच्चे आरक्षण से बाहर हो जाएंगे।

जबकि 1993 से लागू वर्तमान क्रीमी लेयर नियमों के तहत सीधी भर्ती से माता या पिता प्रथम श्रेणी, माता-पिता दोनों द्वितीय श्रेणी या पिता 40 वर्ष की आयु के पूर्व प्रथम श्रेणी में नियुक्त होने व ऐसे ही बराबरी के पदों पर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, बैंकों इत्यादि में कार्यरत होने पर बच्चों को आरक्षण की पात्रता नहीं है। शेष सभी अधिकारी- कर्मचारियों के बच्चों को वर्तमान में आरक्षण प्राप्त हो रहा है। क्रीमी लेयर का निर्धारण पद से किए जाने से अभी वेतन नहीं गिना जाता।

लेकिन सूत्रों की मानें तो अब शासकीय अधिकारी-कर्मचारियों उनके वेतन के आधार पर क्रीमीलेयर माने जाएंगे। वहीं 10 हेक्टेयर से ऊपर के किसान, विधायक, सांसद, मंत्री व आयोगों के सदस्य भी क्रीमी लेयर की श्रेणी में आ जाएंगे। यानी कहा जा सकता है कि क्रीमीलेयर अब गरीबी रेखा का नियम बनकर रह जाएगा और ओबीसी (OBC) आरक्षण की राह में एक और अवरोध (Obstacle) पैदा हो जाएगा।

इस मामले में कांग्रेस के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष, पूर्व सांसद तथा वर्तमान में छत्तीसगढ़ शासन में कैबिनेट मंत्री ताम्रध्वज साहू का कहना है कि 1993 में हमारी कांग्रेस सरकार ने 90% कर्मचारयों के बच्चों को आईएएस, आईपीएस की भर्तियों में 27% ओबीसी आरक्षण का लाभ देने पद का क्रीमी लेयर नियम बनाया था, जो कांग्रेस सरकार ने ही 2007 में दिए आईआईटी, आईआईएम के 27% ओबीसी आरक्षण में भी लागू हुआ। लेकिन आज मण्डल-कमण्डल फॉर्मूले से आगे बढ़ी भाजपा सरकार द्वारा क्रीमीलेयर हेतु बगैर संसद में पारित कराए पद के स्थान पर वेतन की आय का नया नियम बनाकर अधिक से अधिक ओबीसी कर्मचारियों के बच्चों को आरक्षण से बाहर निकालने की साजिश संविधान, सुप्रीम कोर्ट व संसद के प्रवधानों की अवहेलना है। कांग्रेस पार्टी इसका विरोध करेगी।

27 साल पुराना नियम खत्म करने की तैयारी

सूत्रों की मानें तो अब मोदी सरकार बी पी शर्मा समिति की अनुशंसा पर क्रीमीलेयर (Creamy Layer) की आय सीमा को 8 लाख रुपए से बढ़ाकर 12 लाख रुपए वार्षिक कर उसमें वेतन भी जोड़ने के नवीन प्रस्ताव पर जोरों से विचार कर रही है। दूसरे शब्दों में कहे तो अब वह पदों की श्रेणी से क्रीमीलेयर तय करने का 27 साल पुराना नियम समाप्त करने जा रही है। जिससे अब 25 वर्षों से कार्य कर रहे भृत्य-दंपति, शिक्षक-दंपति व क्लर्क-दंपत्ति भी क्रीमी लेयर के दायरे में आकर उनके बच्चे ओबीसी आरक्षण से बाहर हो जाएंगे।

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अनदेखी

जबकि तत्कालीन प्रधानमंत्री वी पी सिंह के आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, बैंक, रेलवे, पीएसयू इत्यादि की नियुक्तियों में 27 फीसदी आरक्षण देने के 13 अगस्त 1990 के आदेश पर निर्णय देते हुए सर्वोच्च न्यायालय की नौ जजों की खंडपीठ ने ओबीसी जातियों के मलाईदार तबके अर्थात क्रीमीलेयर यानी केवल 10 फीसदी संपन्न परिवारों को ही आरक्षण के दायरे से बाहर रखने कहा था। अर्थात सर्वोच्च न्यायालय ने ओबीसी के 90 फीसदी परिवारों को आरक्षण देने अनुमत किया था। सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसा कभी नहीं कहा कि आरक्षण केवल गरीब ओबीसी को ही दिया जाए, जैसा कि प्रचारित किया जाता है। ओबीसी बुद्धिजीवियों का तो वैसे भी कहना है कि अगर महंगाई दर को ध्यान में रखा जाए तो क्रीमीलेयर के लिए आमदनी की सीमा अब 22 लाख रुपए सालाना होनी चाहिए।

ऐसे छिन सकता है ओबीसी किसानों व विधायकों का हक

इसके अलावा नवीन प्रस्तावित क्रीमी लेयर नियमों में कृषि, बागवानी और वृक्षारोपण क्षेत्र में 10 हेक्टेयर से अधिक भूमि (जिसमें न्यूनतम 4 हेक्टेयर सिंचित भूमि हो) वाले किसान क्रीमी लेयर कहलाएंगे। वहीं उनकी वार्षिक आय नहीं गिनी जाएगी। साधारण जनप्रतिनिधियों को भी क्रीमी लेयर के दायरे में लाने संविधानिक पदों की सूची को और लंबा किया जा रहा है। जैसे अब विधायक, सांसद, केंद्र व राज्यों के मंत्री, दर्जा प्राप्त मंत्री तथा किसी भी आयोग के सदस्य व अध्यक्ष भी क्रीमी लेयर कहलायेंगे व उनके बच्चों को आरक्षण नहीं मिलेगा।

…तो 90 की जगह सिर्फ 40 फीसदी ओबीसी को मिलेगा आरक्षण, खाली सीटें जाएंगी सवर्णों को

आज तहसीलों में जाति प्रमाण पत्र हेतु प्राप्त आवेदनों की जांच वर्तमान क्रीमीलेयर मापदंडों से होने पर 10 से 15 फीसदी मलाईदार ओबीसी परिवार ही आरक्षण के दायरे से बाहर होते हैं। परंतु अब यदि मोदी सरकार के नवीन प्रस्तावित नियमों के अनुसार कर्मचारियों की जांच भी पद के स्थान पर वेतन की आय से होने लगेगी तो 60 फीसदी ओबीसी परिवार आरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएंगे। ओबीसी कोटा वैसे भी 27 सालों में अब तक आधा ही भर पाया है।

ऐसी स्थिति में अगर सरकार नौकरी पेशा लोगों के बच्चों को ओबीसी आरक्षण से बाहर करके ओबीसी कैंडिडेट की संख्या को और कम कर देती है तो इसका फायदा सिर्फ और सिर्फ सवर्णों को ही होगा। आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी, एम्स, डीयू, जेएनयू आदि के प्रवेश की हजारों में से सैकड़ों सीटें रिक्त रहेंगी, जिनका लाभ सवर्णों को ही होगा, क्योंकि प्रवेश में सीटें रिक्त नहीं रखी जातीं।

क्रीमीलेयर की ‘उत्पत्ति’ की कहानी
जाति को वर्ग में बदलना

मंडल आयोग की अनुशंसा पर तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने जब 13 अगस्त 1990 को केंद्रीय पदों में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने का आदेश जारी किया तो सवर्णों ने इसके विरोध में राष्ट्रव्यापी हड़ताल प्रारंभ की व सर्वोच्च न्यायालय में याचिका लगा दी। इस प्रकरण की सुनवाई के दौरान यह प्रकाश में आया कि प्रधानमंत्री वीपी सिंह का यह आदेश वास्तव में सामाजिक व शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ी जातियों की सूची के आधार पर था, जबकि संविधान में प्रावधान सामाजिक व शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग के उत्थान के उपाय हेतु था।

जिससे उक्त आरक्षण आदेश संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध पाए जाने पर कोर्ट द्वारा रद्द किए जाने की संभावना थी। तब सर्वोच्च न्यायालय में यह केस लड़ रही पीवी नरसिम्हाराव सरकार के पास यह विकल्प था कि वह संविधान संशोधन कर संविधान में लिखें ‘जाति’ शब्द को ‘वर्ग’ शब्द से प्रतिस्थापित कर दे। लेकिन प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हाराव तो बड़े मुश्किल से जोड़-तोड़ के बहुमत वाली सरकार चला रहे थे।

तब दो तिहाई बहुमत से संविधान संशोधन उनके लिए दूर की कौड़ी था। संविधान संशोधन के इस प्रस्ताव का वैसे भी शायद भाजपा समर्थन नहीं करती क्योंकि उसने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस लेकर आडवाणी की रथ-यात्रा निकाली थी।

जो बाद में “मंडल – कमंडल” की लड़ाई के नाम से भी प्रसिद्ध हुई। इस दौरान मामले को शीघ्र सुलझा कर इस आरक्षण को जल्दी लागू करवाने पी वी नरसिंहराव सरकार ने 4000 अन्य पिछड़ी जातियों की सूची के परिवारों में से ही स्वयं के बल पर संपन्न हो चुके ऊपर के 10 फीसदी परिवारों को आरक्षण के दायरे से बाहर कर शेष 90 फीसदी परिवारों को वर्ग (Class) मान लेने का प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखा, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। इन्हीं 10 फीसदी संपन्न परिवारों को ही कोर्ट ने मलाईदार तबका या क्रीमी लेयर कहा।

…और बने क्रीमीलेयर से जुड़े 6 नियम

फिर सुप्रीम कोर्ट के ही निर्देश पर गठित जस्टिस आर एन प्रसाद (जो बिहार के ओबीसी ही थे) विशेषज्ञ समिति की अनुशंसा पर भारत सरकार ने संसद में पारित कर क्रीमी लेयर के 6 नियम बनाए। जो दिनांक 8 सितंबर 1993 के आरक्षण आदेश के साथ ही सम्पूर्ण भारत में चलन में आए। जिसमें नौकरी वालों के लिए पद की श्रेणी का, किसानों के लिए धारित भूमि का व मुख्यतः व्यापारियों के लिए 3 वर्ष की आय का नियम बनाया गया था।

अर्थात वास्तव में क्रीमी लेयर के नियम जाति (Caste) को वर्ग (Class) में बदलने के लिए बनाए गए थे ना कि गरीबों को आरक्षण देने। जबकि प्रचारित यह किया जाता है कि क्रीमी लेयर के नियम गरीबों को आरक्षण देने के लिए बनाए गए हैं।

नियुक्तियों में आरक्षण देने बनाये गए इन्हीं 06 क्रीमीलेयर नियमों को बाद में 2007 में आये मनमोहन सिंह सरकार के आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी, एम्स, डीयू, जेएनयू आदि में प्रवेश के 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण में भी सर्वोच्च न्यायालय ने अशोक ठाकुर केस द्वारा लागू किया, जिसका प्रावधान भारत सरकार के मूल आदेश में नहीं था।

क्रीमीलेयर परिवर्तन संसद से पास कराना जरूरी

क्रीमी लेयर में वेतन जोड़ने के मोदी सरकार के प्रस्तावित बदलाव का विभिन्न राजनीतिक दलों व पिछड़ा वर्ग संगठनों ने विरोध प्रारंभ कर दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि 1993 में संसद में पारित किये गए क्रीमीलेयर कानून के तहत मंत्रिमंडल (Cabinet) को केवल प्रति 3 वर्ष में वार्षिक आय की सीमा बढ़ाने का अधिकार है। परंतु यदि वार्षिक आय की सीमा बढ़ाने के अलावा केंद्र क्रीमीलेयर मापदंडों में कोई नए बदलाव करना चाहे तो उसे इन नए बदलावों को संसद से पास कराना अनिवार्य होगा अन्यथा न्यायालय इनके कार्यान्वयन पर रोक भी लगा सकता है।

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मोदी सरकार का यह प्रस्ताव नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध है। कांग्रेस पार्टी मोदी सरकार के आरक्षण को निष्प्रभावी करने के इस ओबीसी विरोधी प्रस्ताव का संसद से सड़क तक विरोध करेगी। ओबीसी के आधे से ज्यादा पद आज भी रिक्त पड़े हुए हैं। -ताम्रध्वज साहू, कांग्रेस पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष, पूर्व सांसद तथा मौजूदा कैबिनेट मंत्री, छग शासन   


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