Hindi Day : आधुनिकता के साथ बदलता हिंदी भाव

Hindi Day : आधुनिकता के साथ बदलता हिंदी भाव

Hindi Day : Hindi expressions changing with modernity

Hindi Day

विकास कुमार। Hindi Day : साहित्य समाज का दर्पण होता है ,किसी भी देश के सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश को समझने के लिए उसकी भाषा और साहित्य को देखा जा सकता है। जिस प्रकार समाज में उच्च-अवच्च परिस्थितियां, सामाजिक विषमता और सांस्कृतिक मूल्यों का सही विश्लेषण साहित्य जगत के पक्षों परिस्थितियों में ही अवगत होता है।

किसी भी देश का गौरव और उस देश की प्रतिष्ठा का अनुमान उसके भाषा और संस्कृति से ही लगाया जा सकता है। जैसे ब्रिटेन में का मध्यकाल अथवा भारत के इतिहास के गुप्त काल और मौर्य काल अपने स्वर्णिम वैभव की अभिव्यंजना तत्कालीन साहित्य में प्रतिबिंबित हुआ है। इतिहास की प्रचुरता और वीरगाथा की विवेचना भी साहित्य के माध्यम से विवेचित होती है।

किसी भी देश की भाषा उस देश का आत्मीय बोध कराती है, क्योंकि वहां के आधी से अधिक आम जनमानस उसी की शब्दावली और उसी भाषा का प्रयोग करते हैं। इसके विपरीत अफ्रीकन देशों में अविकसित, अर्ध विकसित देशों का साहित्य उस समाज का यथार्थ चित्रण करता है। तात्पर्य है कि व्यास बाल्मीकि , होमर,दांते शेक्सपियर आदि कवि कालिदास, तुलसीदास, विलियम वड्र्सवर्थ, शैली और किटस आदि की साहित्य में उपस्थित उनकी भाषा की प्रचुरता और भाषा के प्रति प्रेम को ही दर्शाती है।

साथ ही उनकी भाषा शैली और उनका साहित्य। जिनमें कहानियां, महाकाव्य ,कविताएं ,नोबेल और नाटक उनके तत्कालीन परिस्थितियों को अनुक्रम रूप से प्रतिबिंबित करते हैं। इतना ही नहीं भाषागत परिवर्तन को भी अभिब्यंजित करते हैं। राजापुर में रखी तुलसीकृत मानस को देखने के पश्चात यह मालूम होता है की तुलसी के काल से लेकर के वर्तमान काल तक 15 अक्षरों में परिवर्तन हुआ। इसमें केवल अक्षरों का परिवर्तन नहीं लिया जाना चाहिए, बल्कि अक्षरों के परिवर्तन के साथ- साथ भाव में भी परिवर्तन देखने को मिलता है।

आज आधुनिकता के दौर में वही परिवर्तन देखने को मिल रहा है। यह भी कह सकते हैं कि यह तकनीकी और प्रौद्योगिकी के विकसित स्वरूप का परिणाम है। या फिर यह कह सकते हैं कि इस पूंजीवादी सभ्यता के घुड़दौड़ में व्यक्ति के पास शुद्धतम शब्दावली और अर्थ समझने की सोच- समझ हीनत्तर होती जा रही है। यद्यपि ,न्यूटन ,गैलीलियो और आर्यभट्ट का जन्म वैज्ञानिक रूप से तो विभिन्न रूप में हुआ था, परंतु भाषा और साहित्य के संपन्न परिस्थितियों में हुआ था।

वैज्ञानिक प्रगति और विकास के साथ , अर्थ आज के युग का सबसे बड़ा मापदंड है। अर्थ के कारण अनेक वैज्ञानिक क्षेत्रों में अनेक नवीन अविष्कार हुए। यंत्रों का निर्माण समाज के सुविधा के लिए किया जाने लगा। परिणाम स्वरूप यांत्रिक सभ्यता, तदजन्म सोच विचार कर नए मूल्यों का उदय हुआ। इसमें साहित्य और भाषा दोनों अछूते नहीं रहे। साहित्य के सभी विधाओं में इस यांत्रिकता ,आधुनिकता ,जन परिस्थितियों और मूल्यों का बहु विधि चित्रण देखने को मिलता है। अत: यह अपेक्षित है कि हम तकनीकी व्यवस्था और स्वरूप को समझ ले जिन कारणों से हमारा साहित्य और भाषा परिवर्तित हो रही है।

यंत्रों के निर्माण, संरक्षण ,रखरखाव, उपयोग और उसके नए आयामों के विस्तार इसके अंतर्गत आते हैं। इस दृष्टि से देखें तो हिंदी (Hindi Day) साहित्य में इन तकनीक का पहला प्रयोग प्रेस का जन्म अक्षरों के मुद्रीकरण हेतु तकनीक का विकास हुआ। दूसरी ओर आधुनिकता में अर्थ अर्जन हेतु और उसके सरलतम रूप को प्रयोग करने हेतु, भाषा की कई शब्दावली को गढ़ा गया ?। जहां टाइपराइटर के अनुसार हिंदी का मानकीकरण किया गया।

वहीं दूसरी ओर अर्थ अर्जन हेतु हिंदी के शुद्ध रूप को ध्यान ना दे कर कई प्रकार के अशुद्धता का प्रयोग हुआ। जिसमें शब्दों में प्रचलित विविध रूपों एवं एवं मानकीकरण वाले शब्दों के रूप में बने और तदानरूप बैंकों, कार्यालयों ,पुस्तकों के प्रकाशन में वैज्ञानिकता के विकास में वैसे ही भाव वाले शब्दावली को निरूपित किया गया।

आधुनिक क्षेत्र में कंप्यूटर ,मोबाइल तथा आधुनिक साज-सज्जा से युक्त व्यक्ति के चिंतन में भाषा में पर्याप्त परिवर्तन देखने को मिलता है। इससे भाषा का विकास तो नहीं हुआ ,परंतु आधुनिकता का विकास जरूर हुआ। हां दोनों में तारतम्यता बनाकर भी विकास किया जा सकता था। जो हो नहीं पाया। इससे जहां भाषा गतिविधियों में मनोबल की कमी आई ,वही कई प्रकार के नूतन आयाम भी विकसित हुए। इसलिए यांत्रिकता भौतिकता एवं आधुनिकतावादी संस्कृति के मूल कारक तत्वों के मिलनशीलवादी से संपन्न समृद्ध और शोषण के उपायों के साधनों के विकसित होने में भाषागत अशुद्धियों के प्रयोग में प्रमुख हांथ रहा है।

आज कवि गोष्ठियों और हिंदी सम्मेलनों का स्वरूप भी परिवर्तित होता दिख रहा है। कई भाषाओं के शब्द भी हिंदी भाषा में सम्मिलित होते दिख रहे हैं। कई वरिष्ठ विद्वानों को भी इनका प्रयोग करते हुए सुना जा सकता है। साथ ही कई शब्दावली भी ऐसी हैं । जिनका प्रयोग हिंदी भाषा के मानक से अलग होता जा रहा है। आज तकनीकी और आधुनिकता के विकास में संपूर्ण मानव समुदाय को एक छोटे से गांव में परिवर्तित कर दिया। जिसे मिश्रित संस्कृति एवं मिश्रित भाषा के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

इस प्रकार समाज का ग्रामीकरण, शहरीकरण, नगरीकरण ,महानगरीय तथा मेट्रो शहर के रूप में हमें विकसित होते दिख रहे हैं। ठीक उसी प्रकार भाषा और साहित्य में भी परिवर्तन देखने को मिल रहा। यह परिवर्तन उपन्यास, कहानियां, आर्टिकल, शोध पत्रों, कविताओं एवं कवि गोष्ठियों में भी देखा जा सकता। इसके कारण हिंदी भाषा में नए शब्दों का निर्माण, कंप्यूटरीकृत हिंदी का प्रयोग एवं युवकों की शीघ्रता, रोजगार की संभावना , रोजगार परक बनना ,आज की प्रधानता देखी जा सकती हैं। यहां यह स्पष्ट करना बेहद जरूरी है कि कतिपय मठाधीशों के पूर्वाग्रहों से ग्रसित लोगों ने मानक हिंदी के प्रयोगों में अनेक प्रकार की त्रुटियां निकालकर इसके विश्वसनीयता के उपयोग पर भी कांटे बिछाए हैं।

फिर भी विश्व के विभिन्न देशों में बसने वाले भारतीयों ने हिंदी भाषा का प्रयोग कर इसी तकनीकी और आधुनिकता के कारण संपन्न मानव जगत का चित्रण बड़ी कुशलता के साथ किया है। समस्या इस बात की है आज फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर के कारण बहुत कम भारतीय हैं मानक हिंदी भाषा का प्रयोग करते हैं। व्हाट्सएप में वार्तालाप करते समय बहुत कम बुद्धिजीवी ऐसे होते हैं ?

जो हिंदी भाषा (Hindi Day) एवं मानक हिंदी का प्रयोग करते हैं। इस कारण भी भाषागत परिवर्तन के साथ भाव में भी परिवर्तन देखने को मिलता है। आज आवश्यकता इस बात की है कि तकनीकी भाषा का विकास भी हो ,लेकिन हिंदी मानक के अनुसार हो। आधुनिकता में नई शब्दावली विकसित समाज के लिए बनाई जाएं, परंतु भाषागत भाव को देखते हुए। जब कोई देश अपने भाषा के प्रकृति को देखता है तो वह देशवासियों के प्रकृति और भावों को देखता है। जिससे की नई संरचना और विकसित भविष्य का निर्माण होता है।

JOIN OUR WHATS APP GROUP

डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed