Paddy Purchase Loss of Chhattisgarh: धान की नीलामी के खेल में अर्थव्यवस्था का निकला तेल, सरकार को 150 करोड़ का सीधा नुकसान

Paddy Purchase Loss of Chhattisgarh: धान की नीलामी के खेल में अर्थव्यवस्था का निकला तेल, सरकार को 150 करोड़ का सीधा नुकसान

Paddy Purchase Loss of Chhattisgarh, In the game of paddy auction, the economy's oil came out, a direct loss of 150 crores to the government,

Paddy Purchase Loss of Chhattisgarh

विशेष संवाददाता

रायपुर/नवप्रदेश। Paddy Purchase Loss of Chhattisgarh: पूरे देश में सबसे अधिक समर्थन मूल्य पर धान खरीदने के लिए ख्याति प्राप्त कर चुकी छत्तीसगढ़ सरकार खरीदे गए धान के निपटान में बुरी तरह असफल सिद्ध हो रही है। कोरोना काल में धान खरीदी से जुड़े मामलों में सरकार का सिस्टम बुरी तरह फेल रहा है और जिस प्रकार से धान का निपटारा हो रहा है उससे राज्य शासन को लगभग 150 करोड़ का सीधा नुकसान होगा जो कि छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा नुकसानदेह साबित होगा।

राज्य में 2500 रूपए प्रति क्विंटल धान खरीदी (Paddy Purchase Loss of Chhattisgarh) का अपना वादा निभाने में तो सरकार सफल रही है और इस वजह से राज्य के किसान भी खुशहाल है लेकिन सरकार की अर्थव्यवस्था बदहाल होती चली जा रही है। हालात इतने बिगड़े हुए है कि सरकार अपने धान की मीलिंग तो करा ही नहीं पा रही है और जो बचा हुआ धान वह नीलाम के जरिए बेचने की कोशिश कर रही है वह कोशिश भी इतनी सफल नहीं है क्योंकि बार बार टेंडर करने के बावजूद धान खरीदने के लिए खरीददार नहीं मिल रहे है।

इस वर्ष सरकार ने अपनी एजेंसी मार्कफेड के जरिए 28 जिलों में कुल 92,02,373 टन धान का उपार्जन किया था जो कि अब तक राज्य में हुए धान के उपार्जन का रिकार्ड है। इस धान को सितंबर 2021 तक मिलिंग कराया जाना है क्योंकि इसी अवधि में ही केन्द्र सरकार उपार्जित धान के चांवल को क्रय करती है।

अधिक धान खरीदी होने और मिलर्स से मिलिंग न करा पाने के कारण सरकार अपने लक्ष्य को खो रही है चूंकि रखरखाव में बदहाली के कारण धान खराब हो रहा था इसलिए सरकार ने निर्णय लिया कि वह अपना धान नीलाम के जरिए बेचेगी। इस हेतु राज्य सिविल सप्लाई कार्पोरेशन द्वारा कई बार टेंडर निकाले गए है लेकिन अभी तक कुल 8,30,920 टन धान का ही नीलाम हो सका है।

सरकार को 1200 से 1300 प्रति क्विंटल का सीधा नुकसान

सरकार ने अपना नुकसान कम करने के लिए इस प्रक्रिया को अपनाया था लेकिन सरकार का सिस्टम सरकार का भट्टा बिठाने पर आमादा है। जो धान नीलाम किया जा रहा है वह मात्र 1200 और 1300 रू. क्विंटल की दर से नीलाम हो रहा है जिसमें सीधे तौर पर सरकार को 1200 से 1300 प्रति क्विंटल का सीधा नुकसान हो रहा है इसके अलावा इस धान के संग्रहण, ट्रांसपोर्टिंग, बोरे, मजदूरी और सिस्टम का वेतन भी इस घाटे में सम्मिलित किया जाए तो यह घाटा कही और बढ़ जाता है।

सरकार की एजेंसी मार्कफेड (Paddy Purchase Loss of Chhattisgarh) से पूछने पर कि क्या धान खराब हो गया है तो उनका सीधा जवाब है कि धान कही भी खराब नहीं हुआ है और बकायदा कैप कवर लगाकर उसका संग्रहण किया गया है। फिर सवाल यह उठता है कि धान कम दरों पर नीलाम क्यों हो रहा है। इसका जवाब देने से सरकार की सभी एजेंसियां बच रही है।

खाद्य मंत्रालय में पदस्थ उपसचिव श्री शिकरवार से जब इस बाबत पूछा गया तो उन्होने कहा कि नीलाम मार्कफेड कर रहा है इसलिए दर और क्वालीटी के बारे में वहीं बता पाएंगे। जबकि मार्कफेड के अधिकारी श्री पैकरा ने बताया किया नीमाल की सारी कार्यवाही मंत्रालय के जरिए हो रही है। मजे की बात यह है कि नीलाम के सभी टेंडर छत्तीसगढ़ स्टेट सिविल सप्लाई कार्पोरेशन द्वारा निकाले जा रहे है।

नीलाम किए जा रहे धान के पीछे सरकार की मंशा चाहे जो भी रही हो लेकिन राज्य में इस नीलाम से धान और चांंवल लॉबी की सिस्टम के साथ मिली भगत और बड़ा लाभ कमाने का षडयंत्र साफ नजर आता है जो भी धान नीलाम हो रहा है वह लगभग आधी कीमत पर वे ही राईस मिलर्स खरीद रहे है जो सरकार की कस्टम मिलिंग भी कर रहे है। मिलर्स का कहना है कि यह धान जो नीलाम किया जा रहा है वह खराब हो चुका है और उसकी अधिकांश मात्रा चांवल बनाने लायक नहीं है।

इसलिए इसकी कीमत नहीं मिल रही है और सरकार जहां है जैसा है के आधार पर एक संग्रहण केन्द्र का पूरा धान एक साथ नीलाम करती है ताकि छटनी का अवसर न मिले। मिलर्स इस तरह का धान उठा तो रहे है लेकिन यह शोध का विषय है कि यदि धान से चांवल बन ही नहीं सकता तो वर्षो से चांवल का काम कर रहे राईल मिलर्स उस धान को 1200 या 1300 प्रति क्विंटल भी खरीद कर भी क्या करेंगे?

वास्तव में नीलाम और कस्टम मिलिंग के बीच बड़ा खेल चल रहा है जो मिलर्स नीलाम में धान खरीद रहे है वे भी कस्टम मीलिंग का सरकारी अनुबंध कर के सुरक्षित रखे हुए धान को भी छांट कर उठा रहे है और जो सड़ा हुआ धान वो नीलाम में खरीदे थे उसका चांवल बनाकर सरकारी धान के बदले दिया जा रहा है और जो अच्छी क्वलीटी का धान कस्टम मीलिंग के लिए प्राप्त हुआ था उसका चांवल बाजार में खपाया जा रहा है। सरकारी सिस्टम और राईस मिलर्स की मिलीभगत से सरकार को जहां 15 से 20 हजार लाख रूपए का नुकसान होगा वहीं राज्य के राईस मिलर्स के पौ बारह हो जाएंगे।

राज्य में 1960 पंजीकृत राईस मिलर्स है जिनके जरिए राज्य अपना उपार्जित किए हुए धान की कस्टम मिलिंग कराता है। कोरोना काल में होते रहे लॉकडाउन और सरकार के सिस्टम की अकरर्मण्यता के कारण मीलिंग का काम सुचारू रूप से नहीं हो पा रहा है जिसके कारण धान का निपटान नहीं हो सकता है।

एग्रीमेंंट करने के बावजूद अनेक राईस मिलर्स ने या तो धान उठाया नहीं और यदि उठाया तो समय से उसकी मिलिंग नहीं की। इस कारण यह कार्य लगातार पिछड़ता रहा और सरकार को नीलाम का निर्णय लेना पड़ा, बावजूद इसके राज्य में अब तक कस्टम मिलिंग का अनुबंध पालित न करने के कारण किसी भी राईस मिलर्स पर कोई दंडात्मक कार्यवाही नहीं की गई है।

अधिक समर्थन मूल्य देने का राजनैतिक लाभ चाहे जितना भी हुआ हो अर्थव्यवस्था पर इसका बहुत बुरा असर पड़ रहा है। जहंा केन्द्र राज्य से चांवल नहीं ले रहा है वहीं उपार्जित किए गए धान को राज्य नीलाम कर रहा है। जो चांवल राज्य के पास बचता है वह भी ज्यादातर सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत एक रूपए किलो की दर से वितरित हो जाता है। इस तरह हर वर्ष लाखों करोड़ों रूपए का नुकसान सरकार को हो रहा है ।

JOIN OUR WHATS APP GROUP

डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *