तंगहाली में कट रही बसोड़ों की जिंदगी,  नवीनीकरण के अभाव में रियायती दर पर नहीं मिल रहा बांस

तंगहाली में कट रही बसोड़ों की जिंदगी,  नवीनीकरण के अभाव में रियायती दर पर नहीं मिल रहा बांस

नवप्रदेश संवाददाता
जांजगीर-चांपा। बांस को छिलकर आकार देने वाले बसोड़ों की जिंदगी बेबसी में कट रही है। रियायती दर पर बांस लेने के लिए इनका वन विभाग में पंजीयन हुआ है, लेकिन पंजीयन का नवीनीकरण नहीं हो रहा है। इस कारण इन्हें बाजार से ऊंचे दाम में बांस खरीदना पड़ रहा है।
शादी-ब्याह के समय बांस से बने पर्रा, टोकरी, दउरी समेत अन्य सामानों की विशेष मांग रहती है, लेकिन इसे तैयार करने वाले हाथ रोजगार के लिए तरस रहा है। जिले के कोसमंदा, सिवनी, चांपा, बाराद्वार, सक्ती, बलौदा सहित अन्य जगहों में पांच हजार से अधिक बसोड़ परिवार रहते हैं। इनका पुश्तैनी व्यवसाय यही है। कोसमंदा के परदेशी बसोड़ ने बताया कि कुछ साल पहले तक वन विभाग के डिपो से 12 से 15 रुपए में बांस मिल जाता था, लेकिन लंबे समय से बांस ही नहीं मिल रहा है। इस वजह से बसोड़ों की माली हालत बेहद खराब है। सहोतरीन बसोड़ का कहना है कि अभी बाजार से बांस खरीदना पड़ता है। एक बांस 40 से 50 रुपए तक मिलता है। बांस की कीमत अधिक होने के कारण उन्हें ज्यादा फायदा नहीं होता। सामान बनाने के लिए परिवार के सभी सदस्य काम करते हैं, तब बड़ी मुश्किल से सौ रुपए की व्यवस्था हो पाती है। बसोड़ समाज के लोग ज्यादा पढ़े-लिखे भी नहीं है। इस कारण वे अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बजाय पुश्तैनी कारोबार में झोंक दे रहे हैं। शिक्षा के अधिकार का मतलब भी ये लोग नहीं जानते। साथ ही इनमें जागरूकता का भी अभाव है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *