Congress Contemplation : कांग्रेस के लिए गंभीर चिंतन का समय

Congress Contemplation : कांग्रेस के लिए गंभीर चिंतन का समय

Congress Contemplation: Time for serious thinking for Congress

Congress Contemplation

राजेश माहेश्वरी। Congress Contemplation : पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद एक बार फिर से कांग्रेस के भविष्य को लेकर चर्चाओं को दौर शुरू हो गया है। पंजाब से सत्ता गंवाने और अन्य चार राज्यों खासकर यूपी में बेहद लचर प्रदर्शन के बाद बुलायी गई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में लंबे विचार-विमर्श के बाद कुछ खास सामने निकलकर नहीं आया। हालांकि, समिति की बैठक के बाद वरिष्ठ कांग्रेसियों के जो बयान सामने आये, उनसे लगता है वे राहुल गांधी को पूर्णकालिक अध्यक्ष के रूप में देखना चाहते हैं।

वहीं पंजाब में कांग्रेस की दुर्गति के लिये अंदरूनी कारणों को जिम्मेदार कहा गया। लेकिन फिर भी पार्टी में सुधार व बदलाव की जरूरत को स्वीकार किया गया। कहा जा रहा था कि पांच राज्यों में हालिया चुनाव सेमीफाइनल हैं और फाइनल मैच 2024 का आम चुनाव है। तो क्या पांच राज्यों में से चार में जीत हासिल करके भारतीय जनता पार्टी ने फाइनल मैच में अपनी जीत सुनिश्चित कर ली है? सवाल यह है कि क्या राष्ट्रीय राजनीति से कांग्रेस की विदाई की वेला आ चुकी है?

बात देश की सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस की हो रही है। कांग्रेस का लगतार कमजोर होना भले ही भाजपा या अन्य दलों के लिये फ ायदे का सौदा हो, लेकिन भारत के लोकतंत्र के लिये ये चिंता की एक बड़ी वजह भी है। कांग्रेस के अलावा कोई भी दल राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा से मुकाबला करने की क्षमता नहीं रखता है। वर्ष 2019 में देश के विभिन्न राज्यों में कांग्रेस के 5 मुख्यमंत्री थे।

2022 में कांग्रेस के तीन मुख्यमंत्री बचे थे, लेकिन पंजाब में हार के बाद अब केवल दो मुख्यमंत्री ही बचे हैं। ये भी कहा जा सकता है कि कुल मिलाकर अब दो मुख्यमंत्री ऐसे हैं जो 2023 तक अपने भाग्य का इंतजार कर रहे हैं और हो सकता है फि र कोई न बचे। कांग्रेस यदि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी चुनाव हार गई तो, यह पूरी तरह से गायब हो जाएगी. लेकिन यह मूल संकट का एक हिस्सा ही है. सबसे बड़ी समस्या तो कांग्रेस के वोट प्रतिशत को लेकर है।

2022 के यूपी चुनाव में इस पार्टी को महज 2.5 फीसदी वोट मिले. वोटर शेयर का यह प्रतिशत, राष्ट्रीय लोक दल जैसी पार्टियों के वोट शेयर से भी कम है और अपना दल, निषाद पार्टी जैसी छोटी पार्टियां, जिनकी केवल राज्य के कुछ ही हिस्सों में उपस्थिति है, उसके शेयर के लगभग बराबर है। यूपी में कांग्रेस से कम वोट शेयर पाने वाली पार्टी में एकमात्र पार्टी असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम है।

राजनीतिक विशलेषकों की माने तो यदि कोई चमत्कार न हो तो 2023 तक भारत के सारे राज्यों में से कांग्रेस बाहर हो जाएगी। ऐसा इतिहास में पहली बार होगा, जब कांग्रेस के अक्स तले देश का कोई राज्य नहीं होगा। वह पार्टी जिसने देश में करीब 6 दशकों तक शासन किया हो, वह पार्टी जिसने कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और गुवाहाटी से लेकर गांधीनगर तक चुनाव जीते हों, वह भारत के चुनावी नक्शे से मिट जाएगी।

ऐसा नहीं कि यह ट्रेंड केवल यूपी में ही देखने को मिल रहा है। देश के हर राज्य में कांग्रेस का यही हाल है। बिहार के हालिया उपचुनाव में कांग्रेस को केवल तीन फ ीसदी वोट प्राप्त हुए। जबकि विधानसभा चुनाव में जब इसने राष्ट्रीय जनता दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, तब इस 9.48 फीसदी वोट मिले थे। बहरहाल, हालिया विधानसभा चुनाव परिणामों ने संकेत दे दिया है कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी पराभव के सबसे बुरे दौर में है।

विश्लेषक पिछले आठ सालों से कांग्रेस के खत्म होने की बात कह रहे हैं. ताजा हार के बाद एक बार फिर से ये बात उठने लगी है। लेकिन पिछले आठ सालों में कांग्रेस ने अगर कई राज्यों में शिकस्त खाई है तो कई अन्य राज्यों में जीत भी हासिल की है। साल 2018 में जब पार्टी ने छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में जीत हासिल की थी तो लगा कि पार्टी का रिवाइवल हो रहा है. लेकिन, राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी दो बार चुनाव हार चुकी है। कांग्रेस के पराभव की बानगी देखिये कि वर्ष 2014 में भाजपा के केंद्रीय सत्ता में आते वक्त नौ राज्यों में शासन कर रही थी, अब पंजाब में पराजय के बाद यह संख्या दो रह गयी है। साल 2017 में कांग्रेस ने नींद से जागकर बीजेपी को तगड़ी टक्कर दी थी।

हालात यहां तक हो गए थे कि बीजेपी को करीब-करीब (Congress Contemplation) हार का सामना करना पड़ता। इसके बाद, इसने राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीत हासिल की। लेकिन, जीत की इमारत को और मजबूत बनाने के बजाए, कांग्रेस ने इसे तोडऩे के लिए कई बड़ी गलतियां की। इस साल के अंत में वह हिमाचल में वापसी की कोशिश कर रही है लेकिन राज्य के कर्णधार वीरभद्र की अनुपस्थिति में यह चुनौती कठिन है। वहीं कांग्रेस शासित बचे दो राज्यों राजस्थान व छत्तीसगढ़ में 2023 में चुनाव होंगे। ऐसे में आम चुनाव से पहले वर्ष में भाजपा से पार्टी को बड़ी चुनौती मिलेगी।

निस्संदेह, बहुमत वाली सरकार को जवाबदेह बनाने के लिये देश में मजबूत विपक्ष की जरूरत होती है। तभी तीन दशक में पराभव के बावजूद कांग्रेस भाजपा का व्यावहारिक विकल्प नजर आती है। लेकिन मौजूदा हालात देखकर दिग्गज कांग्रेसियों का भी धैर्य जवाब दे रहा है। भले ही पिछले दो आम चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 19 फीसदी यानी भाजपा के बाद दूसरे नंबर पर रहा हो, लेकिन उसमें अभी भी भारतीय नागरिकों के नेतृत्व की क्षमता है। संगठनात्मक सुधारों व रीति-नीतियों में बदलाव लाकर वह भाजपा के लिये एकल चुनौती बन सकती है। कुछ लोग पार्टी का गांधी परिवार की आभा से मुक्त न हो पाना भी इसकी वजह बताते हैं।

दरअसल, कांग्रेस की ओर से माना जा रहा था कि हालिया पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में पार्टी पंजाब, उत्तराखंड और गोवा में बेहतर प्रदर्शन कर सकती है. जिसके बाद राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष पद पर ताजपोशी आसानी से की जा सकेगी. लेकिन, चुनाव नतीजे कांग्रेस की कल्पनाओं के अनुरूप नहीं रहे. और, अब कांग्रेस आलाकमान के सामने हार-जीत पर मंथन करने से बड़ी समस्या ये खड़ी हो गई है कि राहुल गांधी को किस बिनाह पर पार्टी अध्यक्ष घोषित किया जाएगा?

वर्ष 2019 में अध्यक्ष (Congress Contemplation) के रूप में राहुल के इस्तीफे के बाद सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष के रूप में पार्टी का नेतृत्व कर रही हैं। अब पार्टी नेता राहुल गांधी को पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाने की मांग कर रहे हैं। तो क्या संगठनात्मक सुधार के बिना इस बदलाव से कांग्रेस का पराभव रुक पायेगा?

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