Weekly Column By Sukant Rajput : साप्ताहिक स्तंभ; बातों…बातों में…!

Weekly Column By Sukant Rajput : साप्ताहिक स्तंभ; बातों…बातों में…!

Weekly Column By Sukant Rajput :

Weekly Column By Sukant Rajput :

बातों…बातों में…!

रायपुर/नवप्रदेश। Weekly Column By Sukant Rajput : दैनिक नवप्रदेश के लिए सुकांत राजपूत द्वारा साप्ताहिक स्तंभ बातों…बातों में…अनवरत प्रकाशित हो रहा है। स्तंभ में राजनीतिक, नौकरशाही और अन्य सरकारी महकमों के ऐसे विषयों को सूत्रों के आधार पर रोचक अंदाज़ में पेश-ऐ-नज़र किया जाता है जो खबर नहीं बनतीं। हकीकत के करीब यहां लिखी इबारत सिर्फ बातों…बातों में सूत्र की जुबान पर आ गई जो सच के काफी करीब कही जा सकती है…!

खुशफ़हमी या…

लोकसभा चुनाव 2024 की रणभेरी बजने लगी है। ज़ाहिर है सियासी दलों में एक दफ़ा और खुशफ़हमी और ग़लतफ़हमी सिर चढ़कर बोलेगी। इसकी शुरुआत भी हो गई है। जैसे भाजपा को 15 साल में खुशफ़हमी थी और उसे कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव 2018-19 में महसूस भी करा दिया। फिर कांग्रेस भी सिर्फ 5 साल में ग़लतफ़हमी की शिकार हो गई और 2023-24 का विधानसभा में भाजपा ने उसे साबित भी करके दिखा दिया। अब लोकसभा में दोनों सियासी पार्टियां प्रदेश की 11 सीटों के लिए अलग अलग दावा कर रही हैं। इसमें बीजेपी सभी 11 सीटें जीतने और मोदी गारंटी के भरोसे हैं। जबकि कांग्रेस 11 तो नहीं पर 7 और 4 का दावा कर रही है। बातों ही बातों में कांग्रेस के नौनिहाल लीडर्स ने किसी हिडन सर्वे का खुलासा किया और कोरबा, रायगढ़, कांकेर व जांजगीर फ़तह का दावा किया।

राजनांदगांव से बीबी…

बीजेपी मोदी गारंटी और देशभर में लोकसभा चुनाव में इस बार, 400 पार… का ढिंढोरा पीट रही है। इससे छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीट भी अछूती नहीं और बीजेपी सभी सीटों के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाने में लगी है। बीजेपी से इतर कांग्रेस 7 और 4 का गणित बिठाने में मशगूल है। बातों ही बातों में एक वरिष्ठ कांग्रेसी ने राजनांदगांव सीट भी कांग्रेस के आंचल में लाने के लिए एक नया चुरका छोड़ दिया। सभी को लगता है कि दाऊ भूपेश बघेल राजनांदगांव लोकसभा सीट के लिए विनिंग केंडिडेट हैं। पार्टी अगर बीबी को यहां से टिकिट देगी तो निश्चित ही 7 और 4 का सर्वे वाला आंकड़ा 7-5 में तब्दील हो सकता है। यह गणित बीबी को निपटने के लिए है या फिर मामा गांव में जीत का भरोसा यह तो दाऊ को टिकिट मिलने के बाद ही पता चलेगा।

सियासी सांटा-पलटा…

रायपुर दक्षिण विधानसभा के अजेय प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल के लिए वैसे तो पूरा रायपुर ही उनका सियासी खेल मैदान रहा है। परिसीमन से पहले रायपुर से कई दिग्गज विरोधियों को सियासी कुश्ती में धोबी पछाड़ दे चुके बिरजु भइया जल्द मोदी लोक को गमन करेंगे। इससे पहले ही उनकी दक्षिण विधानसभा का ब्रिज-मोहन कौन होगा इस पर कयास लगने लगा है। वैसे तो उनका विशेष अनुग्रह सुनील सोनी पर ज्यादा रहता है, लेकिन क्या इस बार दक्षिण का मोहन सुनील होंगे या फिर अजेय दुर्ग आने वाले समय में कांग्रेस फतह करेगी इसके कयास लगने लगे हैं। बातों ही बातों में मोहन दरबारी ने बताया कि मोहन भईया के पीछे तो दिल्ली वाले कई साल से पड़े थे। रमेश बैस का विकल्प भी मोहन भैया ही थे, वो तो भैया की चलती रही और दिल्ली लोकगमन से वे बच जाते रहे…एक वक्त ऐसा भी आया कि उन्हें लड़ने का फरमान आया तब सुनील सोनी का नाम उन्होंने बढ़ाया ही नहीं बल्कि जिताकर लाने का भी बीड़ा उठाये और वैसी ही स्थिति इस बार भी बन रही है।

मोदी लोक गमन…

सख्त मिजाज सियासत के लिए बीजेपी में नरेंद्र मोदी और अमित शाह का पार्टी नेताओं में खासा खौफ है…इसे हर कोई महसूस भी करता है। ऐसे में लोकसभा के लिए छत्तीसगढ़ से लोकप्रियता के साथ ही विष्णुदेव सरकार के भविष्य की बेहतरी के लिए एक नहीं तीन मंत्री नामजद थे। लेकिन, दो ने वक्त रहते अपनी तेज सियासी चाल को नियंत्रित कर लिए और मोदी लोक गमन से बच गए हैं। बातों ही बातों में संगठन नेता ने यह कहकर चौंका दिया कि छत्तीसगढ़ की जनता विष्णुदेव से ज्यादा उच्चश्रृंखल दोनों डिप्टी सीएम को मानती है। यह दिल्ली आलाकमान तक बातें जा भी चुकि थीं। ऐसे में विजय शर्मा को राजनांदगांव, अरुण साव को बिलासपुर और घोषणावीर बृजमोहन अग्रवाल रायपुर लोकसभा के लिए तय हो गए थे। मामला समझने में मोहन लेट हुए और विजय शर्मा जमीन में बैठने लगे तो अरुण साव खामोश होकर जनदर्शन करने में जुट गए। सत्र के दौरान सदन में कई बार विपक्षी सदस्यों को दोनों डिप्टी सीएम ने विष्णुदेव सरकार और मोदी गारंटी का नारा इतनी बार लगाए कि दिल्ली वालों ने मुर्रवत की। इसके उलट सीएम की बजाये बिरजु भइया 33000 शिक्षक भर्ती की घोषणा, हर साल 100 करोड़ का राजिम कुंभ के अलावा मुफ्त सायकल वितरण योजना का एलान कर दिल्ली की नजरों में चढ़ गए।

महाकुंभ से ज्यादा कल्प कुंभ का खर्च

वैसे भी सनातनी लोग बुद्धिमान होते हैं, तो स्वाभाविक भी धार्मिक और पारंपरिक आयोजनों के संबंध में उनके सवाल भी अकाट्य होंगे और जिनसे यह पूछा जायेगा उन्हें कटाक्ष भरा प्रश्न लगेगा। खैर, लोगों में अब 100 करोड़ के बजट वाले वार्षिक राजिम कुंभ कल्प की तुलना हर 12 वर्ष में होने वाले महाकुंभ से होने लगी है। सदन में विपक्ष इस मुद्दे पर उस तरह से सत्तापक्ष को घेरता नहीं दिखा जैसा छत्तीसगढ़िया सनातनी प्रश्न कर रहे हैं। बता दें कि उज्जैन, नासिक, हरिद्वार और प्रयागराज में 12 साल में महाकुंभ होता है। सदियों से चल रहे इस महाकुंभ में औसतन 500 करोड़ खर्च होता है। ऐसे में छत्तीसगढ़ के राजिम कुंभ (कल्प) के लिए हर वर्ष 100 करोड़ यानि कि 12 साल में 1200 करोड़ खर्च करने के बड़े बोल अपचनीय है। बातों ही बातों में बुद्धिमान सनातनी ने कहा- नहीं पचा…हाजमोला सर !

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