UP Assembly Elections : यूपी में प्रलोभन परोसने की होड़...

UP Assembly Elections : यूपी में प्रलोभन परोसने की होड़…

UP Assembly Elections: Competition to serve temptation in UP...

UP Assembly Elections

UP Assembly Elections : उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावी की उलटी गिनती शुरू होते ही सभी राजनीतिक दलों ने उत्तर प्रदेश में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। मतदाताओं का मन मोहने के लिए राजनीतिक दलों में प्रलोभन परोसने की होड़ लग गर्ई है। लगभग सभी राजनीतिक दलों ने किसानों का कर्ज माफ करने की घोषणा कर दी है। इसके अलावा कोर्ई मुफ्त लेपटॉप देने की बात कर रहा है। तो कोई मुफ्त स्कूटी और कोई मुफ्त बिजली देने के वादे कर रहा है।

अभी राजनीतिक पार्टियों का चुनावी घोषणा (UP Assembly Elections) पत्र आना बाकी है। जाहिर है चुनावी घोषणा पत्रों में भी ऐसे लोक लुभावन वादों की भरमार होगी। वोट कबाडऩे की यह कोशिश अनुचित है। चुनाव आयोग तो पता नहीं क्यों वोट खरीदने की इन कोशिशों पर लगाम नहीं लगा पा रहा है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में दखल देना चाहिए। जनता को मुफ्तखोर बनाने वाले राजनीतिक दलों के लिए सुप्रीम कोर्ट को दिशा निर्देश जारी करने चाहिए। कायदे से मुफ्त शिक्षा और मुफ्त चिकित्सा जैसी घोषणाएं मान्य है। लेकिन मुफ्त अनाज देना या अन्य वस्तुएं देना और किसानों का कर्ज माफ करना उचित नहीं है।

राजनीतिक दल इतने ही दरिया दिल है तो वे अपने पार्टी फंड से मुफ्त में ऐसी चिजें दे सकते हैं। इस पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी। लेकिन सरकारी खजाने से वोट कबाडऩे के लिए मुफ्त में चिजे देना सीधे-सीधे वोटा का सौदा वह भी कर दाताओं के गाढ़े खून पसीने की कमाई का दुरूपयोग है। जनता से मिले टैक्स का पैसा विकास कार्यों पर खर्च होना चाहिए न कि मुफ्त खोरी को बढ़ावा देने के लिए इस बाबत पूर्व में भी कई बार मुफ्त खोरी के खिलाफ आवाजें उठी है लेकिन वे खारखाने में तूती की आवाज बनकर रह गर्ई है।

राजनीतिक दलों में यह धारणा बन गई है कि जनता मुफ्त में चीजे पाकर ही वोट देती है। इस तरह राजनीतिक पार्टियों ने ही मतदाताओं को लालची बना दिया है। जो लोकतंत्र का मजाक ही नहीं बल्कि अपमान भी है। इससे स्वतंत्र और निश्पक्ष चुनाव की संभावना भी क्षिण हो जाती है।

कायदे से चुनाव आयोग को मतदाताओं (UP Assembly Elections) के वोट खरीदने की इस कवायद पर अंकुश लगाने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए लेकिन चुनाव आयोग ऐसा नहीं कर पा रहा है तो सर्वोच्च न्यायालय को इस मामले में दखल देना चाहिए। ताकि यह गलत परंपरा बंद हो औैर देश में हर जगह स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव हो सके।

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