Religious News : गुप्त नवरात्री में शक्तियों की साधना फलदायी रहेगी...इसके बारे में बताएंगे ज्योतिष आचार्य डॉ. देवव्रत

Religious News : गुप्त नवरात्री में शक्तियों की साधना फलदायी रहेगी…इसके बारे में बताएंगे ज्योतिष आचार्य डॉ. देवव्रत

गुप्त नवरात्री,

रायपुर, नवप्रदेश। इस वर्ष की दुसरी गुप्त नवरात्री दि. 30 जून से 8 जुलाई तक है।
इस गुप्त नवरात्री मे वाराही , दुर्गा महाकाली , धूमावती आदि शक्तियो की साधना फलदायी रहेगी ..
इस गुप्त नवरात्री मे श्रीविद्या उपासकों मे भगवती वाराही की साधना ज्यादा श्रेयस्कर मानी जाती है ..
आषाढ शुक्ल पक्ष की गुप्त नवरात्री के पंचमी तिथी पर भगवती वाराही प्रकट हुयी थी ..
इसीलिए इस आषाढ महिने की गुप्त नवरात्री पर भगवती वाराही की उपासना का महत्त्व है ..
भगवती वाराही यह भगवती त्रिपुरसुंदरी की सेनापती या दंडनायिका के रुप मे कार्य करती है ..
वह ब्राम्ही , माहेश्वरी आदि सप्तमातृकाओ मे से एक मातृका शक्ति भी है ..
भगवान विष्णु के वराह अवतार की शक्ति के रुप मे भी उन्ही जाना जाता है ..
श्री दुर्गा सप्तशती मे बाकी मातृका शक्तियो के साथ शुंभ निशुंभ राक्षसो के साथ युद्ध प्रसंग मे उनका उल्लेख है ..

श्रीविद्या साधना के उपासना क्रम मे महागणपती , वाराही , श्यामा और ललिता महात्रिपुरसुंदरी ऐसा उपासना क्रम है ..

श्यामा ( भगवती मातंगी ) यह भगवती त्रिपुरसुंदरी की सचिव या प्रधान या मंत्री मानी जाती है और वाराही उनकी सेनानायिका मानी जाती है ..
इसलिए भगवती वाराही को दंडनाथा या दंडनायिका भी कहा जाता है ..
भगवती श्यामा यह भगवती त्रिपुरसुंदरी की आकर्षण शक्ति ( attraction force ) और वाराही यह भगवती त्रिपुरसुंदरी की विध्वंसक शक्ति ( repulsion force ) है ..
ब्रम्हाण्ड के समस्त नकारात्मक शक्तियों को दंड देने हेतु वाराही दंडनायिका के रुप मे निरंतर कार्य करती है ..
” ऐं ग्लौं ” यह भगवती वाराही का बीज मंत्र है ..
भगवती वाराही यह भगवती बगलामुखी जैसे स्तंभन शक्ती के रुप मे कार्य करती है .. इसलिये वाराही साधना को बगलामुखी साधना का एक विकल्प माना जाता है
शत्रूबाधा निवारण हेतु यह एक सटिक साधना है ..
यहाँ शत्रू का अर्थ सिर्फ बाह्य शत्रू न मानकर आंतरिक शत्रू जैसे षड्रिपू या साधक के पूर्वजन्म के पाप या साधक के कुंडली के प्रतिकुल ग्रह योग के रुप मे ले सकते है ..
आध्यात्मिक उन्नती हेतु यह साधना प्रभावशाली है ..
भगवती वाराही का प्रभाव आज्ञाचक्र पर होता है ..
इसलिए आज्ञा चक्र जागरण हेतु यह साधना लाभदायी है ..
इन्हे वार्ताली के नाम से भी जाना जाता है ..
क्योंकि इनकी साधना वाकसिद्धी भी प्राप्त होती है ..
दक्षिण भारत मे वाराही उपासना ज्यादा प्रचलित है ..
भगवती वाराही का भूमी तत्व से संबंध होने से जमिन , प्रॉपर्टी आदि मामले मे इनकी साधना लाभदायी है ..
भगवती वाराही अपने भक्तो का मातृवत संरक्षण करती है ..
वाराही साधना से असाध्य रोगो से मुक्ति , शत्रू बाधा निवारण , तंत्र बाधा निवारण , अनिष्ट ग्रह योग से मुक्ति इ . लाभ होते है ..
नवग्रहों मे राहू ग्रह पर इनका प्रभाव होता है ..
इसलिए राहू ग्रह दोष निवारण मे यह अत्यंत लाभदायी साधना है ..
विशेषकर राहू- चंद्र , राहू – मंगल ग्रह योगो मे इनकी साधना लाभदायक है ..
वाराही साहस , धैर्य , पराक्रम की देवता है ..
जिनंमे इन गुणो की कमी है वे इनकी साधना से यह सब प्राप्त कर सकते है .. जीवन मे जब संघर्ष की स्थिती आये ,
जब सब सहारे टूट जाये और हम बिखर जाये तब भगवती वाराही की साधना हमे वो बल प्रदान करती है जिससे हम फिरसे फिनिक्स पक्षी की तरह राख मे से उठते है ..
भगवती वाराही यह सप्तमातृका मे से पांचवी होने से इन्हे पंचमी कहा जाता है ..

वैसे भी पंचमी तिथी इन्हे प्रिय है और आषाढ मास की गुप्त नवरात्री की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथी इन्हे अतिप्रिय है …

इस दिन इनकी साधना करने से भगवती वाराही की कृपा सुलभ संभव है ..

इन्हे स्वप्नवाराही , धूम्रवाराही ,अश्वारुढा , वार्ताली आदि रुपो मे भी पूजा जाता है ..

इनकी साधना के लिये रात्री का समय अनुकुल माना गया है ..
विशेषत: मध्यरात्री का समय अत्यंत अनुकुल माना जाता है ..
इनकी साधना मे वाराही मंत्र का जाप , आवरण पूजन , वाराही कवच स्तोत्र , वाराही अनुग्रह अष्टक , वाराही निग्रहाष्टक , वाराही अष्टोत्तर शत नाम स्तोत्र , वाराही सहस्त्रनाम स्तोत्र इनका महत्त्व है ..
रुद्राक्ष माला या काली हकिक माला से मंत्र जाप करना ज्यादा उचित है ..
लाल रंग के आसन और लाल वस्त्र , लाल रंग के फूल , अनार का फल , लाल कमल भगवती वाराही की साधना मे अनुकुल माने जाते है ..
प्रमुख रुप से उनका वाहन महिष ( भैसा ) माना जाता है लेकिन सिंह , सर्प और गरुड भी उनके वाहन के रुप मे माने जाते है ..
इनका मुख वराह मुख है और इन्होने अपने आठ हाथो मे चक्र , शंख , हल , दंड , पाश , ढाल , त्रिशुल , अभय मुद्रा धारण की है ..
महिष वाहन और दंड धारण करने से इन्हे यम की शक्ति के रुप मे माना जाता है ..
भगवान विष्णु के दस अवतारों मे एक वराह अवतार की भगवती वाराही शक्ती है .

अष्ट भैरव मे उन्मत्तभैरव के साथ यह चलती है …

इनका मूल मंत्र कुछ इस तरह से है
” ऐं ग्लौं ऐं नमो भगवती वार्ताली वार्ताली वाराही वाराही वराहमुखी वराहमुखी अंधे अंधिनि नम: रुंधे रुंधिनि नम: जंभे जंभिनि नम: मोहे मोहिनि नम: स्तंभे स्तंभिनि नम: सर्व दुष्ट प्रदुष्टानां सर्वेषां सर्व वाक चित्त चक्षुर्मुख गति जिव्हा स्तंभनं कुरु कुरु शीघ्रं वश्यं ऐं ग्लौं ठ: ठ: ठ: ठ: हुं अस्त्राय फट ” ..
वाराही साधना मे प्राणप्रतिष्ठित वाराही यंत्र का उपयोग किया जाता है ..
जिसमे त्रिकोण , पंचकोण , षटकोण , अष्टदल , शतदल , सहस्त्रदल आवरण के रुप मे होते है .
. इनकी साधना मे अर्घ्य पात्र की स्थापना और बलि विधान का महत्त्व है ..
वरिष्ठ स्तर के साधक के लिये वह विधान बताया जाता है ..

प्राथमिक स्तर के साधक वाराही साधना मे मंत्र जाप और लघु पूजन तथा स्तोत्र पाठ का प्रयोग करे ..

वाराही साधना एक उच्च कोटी की साधना है ..

इसे गंभीरता से संपन्न करन चाहिये .. श्रीविद्या साधना क्रम मे इनका बहुत महत्त्व है …
इच्छुक साधक गण इनका लाभ ले सकते है ..
ॐ मां ..

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