National Ayurveda Day: विशेष: आयुर्वेद हो राष्ट्रीय चिकित्सा पद्धति : डॉ. संजय शुक्ला

National Ayurveda Day: विशेष: आयुर्वेद हो राष्ट्रीय चिकित्सा पद्धति : डॉ. संजय शुक्ला

National Ayurveda Day, Special, Ayurveda should, be National System of Medicine, Dr. Sanjay Shukla,

National Ayurveda Day

National Ayurveda Day: कोरोना महामारी ने भारत की सदियों पुरानी चिकित्सा पद्धति ”आयुर्वेद” को वैश्विक पहचान दी है। कोविड-19 संक्रमण के एसिम्पोमैटिक यानि बिना लक्षण वाले तथा माइल्ड यानि कम लक्षण वाले संक्रमितों के उपचार एवं इस महामारी से बचाव में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के साकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए हैं।

Dr. Sanjay Shukla

इन परिणामों के आधार पर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश में कोविड के एसिम्पोमैटिक व माइल्ड संक्रमित के उपचार के लिए आयुर्वेद (National Ayurveda Day) प्रोटोकॉल को अनुमति प्रदान की है। गौरतलब है कि देश में कोरोना संक्रमण के दस्तक के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के नाम अपने संबोधन में देशवासियों से इस महामारी से बचाव के लिए आयुष काढ़ा, च्यवनप्राश, हल्दी वाली दूध (गोल्डन मिल्क) के सेवन व प्राणायाम को अपनाने की सलाह दी थी।

नि:संदेह आयुर्वेद के इन रोग प्रतिरोधक उपायों से लाखों कोरोना वारियर्स तथा आम नागरिक इस संक्रमण से सुरक्षित रहे हैं। कोरोनाकाल के इस त्रासदी भरे दौर में अभी भी करोड़ो लोग इन आयुर्वेदिक नुस्खों को अपनी दिनचर्या में शामिल रखे हुए हैं। कोरोना संक्रमण से बचाव के आयुर्वेदिक व्यवस्था के प्रति दुनिया के अनेक देशों के लोगों ने भी जिज्ञासा और जागरूकता दिखायी है।

बहरहाल यह भारत की उस परंपरागत चिकित्सा पद्धति का सम्मान है जो दशकों से अपने ही देश में सरकार और समाज के उपेक्षा का शिकार होते रहा है। इन परिस्थितियों में स्वदेशी व भारतीय संस्कृति को वैश्विक पहचान दिलाने वाली भारत सरकार से यह अपेक्षा है कि कोरोनाकाल में आयुर्वेद के महत्वपूर्ण योगदान को रेखांकित करने केलिए ”आयुर्वेद” को राष्ट्रीय चिकित्सा पद्धति के रूप में मान्यता प्रदान दिया जावे।

इन कदमों से देश और दुनिया में आयुर्वेद (National Ayurveda Day) चिकित्सा पद्धति को ”योग” की तरह अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिलेगी। गौरतलब है कि आयुर्वेद केवल एक चिकित्सा पद्धति ही नहीं अपितु संपूर्ण जीवन पद्धति है आज के दौर में जब समूचा विश्व समुदाय जीवनशैलीगत रोगों और नैतिक पतन के दौर से गुजर रही है तब पूरा विश्व इन रोगों और विसंगतियों के मुक्ति के लिए आयुर्वेद की ओर ही देख रहा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दशकों पहले संक्रामक और गैर संक्रामक रोगों की चुनौती के दृष्टिगत यह सूत्रवाक्य दिया था कि ”प्रिवेंशन इज बेटर दैन क्योर” यानि रोगों की चिकित्सा की अपेक्षा इसका बचाव ही जनस्वास्थ्य रक्षा के बेहतर उपाय है। जबकि स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा और बीमार व्यक्ति के रोगों को दूर कर उसे स्वस्थ्य बनाना ही आयुर्वेद का मुख्य उद्देश्य है।

उपरोक्त दोनों दृष्टांत वर्तमान कोरोनाकाल में सही साबित हो रहा है। गौरतलब है कि आयुर्वेद (National Ayurveda Day) चिकित्सा पद्धति में 85 फीसदी हिस्सा स्वस्थ रहने के लिए तथा 15 फीसदी हिस्सा ही रोगों के उपचार के लिए है, यानि यह चिकित्सा पद्धति आरोग्य को ही मूल लक्ष्य मानता है। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति व्यक्तिगत स्वास्थ्य की देखभाल और उपचार के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की शिक्षा और सामुदायिक स्वास्थ्य के उपायों पर भी बल देता है जिसकी आज सबसे ज्यादा जरूरत है।

आयुर्वेद के इन्हीं गुणकारी और निरापद चिकित्सा व्यवस्था के चलते विश्व समाज बड़ी तेजी से आयुर्वेद की ओर आकर्षित हो रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व की तीन चैथाई आबादी अब विभिन्न रोगों के ईलाज के लिए हर्बल और अन्य पारंपरिक दवाओं पर निर्भर है, इसका प्रमाण हर्बल दवाओं का बढ़ता व्यापार है। कोरोनाकाल में आयुर्वेदिक दवाओं की बिक्री में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

भारत सरकार ने स्वदेशी चिकित्सा पद्धति यानि ”आयुर्वेद” के महत्व को रेखांकित करने के लिए हर साल धन्वन्तरि जयंती यानि धनतेरस के दिन को ”राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस” के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। विडंबना है कि पश्चिमी देश जहांॅ आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को अपना रहे हैं वहीं कतिपय भ्रम के चलते आम भारतीय प्रकृति के इस अमूल्य धरोहर को अपनाने से दूर भाग रहा है।

शहरी अभिजात्य तबका आयुर्वेद को महज सौन्दर्य प्रसाधन, यौन शक्तिवर्धक साधन तथा हेल्थ व फूड सप्लिमेंट ही माने बैठा है। आयुर्वेद (National Ayurveda Day) दवाओं तथा उपचार के बारे में एक तबके में यह भ्रम आम है कि इन दवाओं में हैवी मेटल्स (भारी धातु) तथा जानवरों की हड्डियांॅ मिले रहते हैं तथा आयुर्वेदिक उपचार अत्यंत महंगा तथा लंबा होता है, स्वाद कडुआ और कसैला होता है, आयुर्वेद ईलाज केवल पुराने रोग का बुजुर्गों के लिए होता है इत्यादि-इत्यादि।

वस्तुत: आयुर्वेदिक उपचार में प्रयुक्त की जाने वाली चूर्ण, बटी, आसव, अरिष्ट, अवलेह, तैल, स्वरस जैसी 90 प्रतिशत दवाओं में वनस्पतियों, जड़ी-बूटियों, फल-बीजों तथा रसों का प्रयोग होता है। महज रस और भस्म औशधियों में ही पारद, स्वर्ण, ताम्र, शिलाजीत जैसे धातु व मिनरल (खनिज तत्वों) का प्रयोग किया जाता है।

लेकिन इन धातुओं तथा खनिज तत्वों का संपूर्ण शोधन शास्त्रोक्त एवं वैज्ञानिक विधि से किया जाता है जिसे आधुनिकतम उच्च गुणवत्ता की कसौटी पर परखकर सरकारी औपचारिकताओं तथा प्रयोगशाला परीक्षण के बाद ही बाजार में उतारा जाता हैं। आधुनिकीकारण के चलते अधिकांश आयुर्वेदिक दवायें अब टेबलेट, कैप्सूल या सिरप के रूप में भी उपलब्ध है।

इन तथ्यों से आयुर्वेद दवाओं के बारे में जारी भ्रम का निराकरण होता है। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति जहांॅ सस्ती और निरापद है वहीं लोगो के पहुंॅच में भी है। भारत जैसे विकासशील और कमजोर अर्थव्यवस्था वाले दश में जहां कि दो तिहाई आबादी खर्चीली चिकित्सा का बोझ उठाने में असमर्थ हो रहा हो तथा ऐसे दौर में जब एलोपैथिक एंटीबायोटिक दवाएं अपना असर खो रही हो तब रोगों से बचाव ही एकमात्र उपाय हो सकता है, इन उद्देश्यों में आयुर्वेद शत-प्रतिशत खरा उतरता है।

बहरहाल आयुर्वेद (National Ayurveda Day) चिकित्सा पद्धति का वैज्ञानिक आधार है लेकिन इसके नुस्खों को विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरना भी होगा ताकि आयुर्वेद भ्रम और दुष्प्रचार के चक्रव्यूह से मुक्त हो सके आखिरकार यह भारत के विरासत का सवाल है। राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस की सार्थकता तभी है जब हम अपने सदियों पुरानी चिकित्सा पद्धति पर विश्वास करें आखिरकार यह जीवन का विज्ञान है जो संपूर्ण मानव समाज के लिए हितकर है। वर्तमान परिवेश में आयुर्वेद को राष्ट्रीय चिकित्सा पद्धति घोषित किया जाना सामयिक निर्णय होगा।

(लेखक शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय, रायपुर में सहायक प्राध्यापक हैं।) मोबा.नं. 94252-13277

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *