Climate-Friendly Smart Crop : भारत को मोटे अनाजों का वैश्विक हब बनाना |

Climate-Friendly Smart Crop : भारत को मोटे अनाजों का वैश्विक हब बनाना

Climate-Friendly Smart Crop: Making India a Global Hub of Coarse Cereals

Climate-Friendly Smart Crop

डॉ.के.सी.गुम्मागोलम। Climate-Friendly Smart Crop : ज्यादातर वर्षा सिंचित भूमि में उगाए जाने वाले मोटे अनाजों को जलवायु-अनुकूल स्मार्ट फसल कहा जा सकता है। भारत में इन फसलों की खेती विशेष रूप से अर्ध-शुष्क जलवायु की परिस्थितियों वाले क्षेत्रों तक सीमित है। ये फसलें तापमान, नमी और विभिन्न इनपुट परिस्थितियों के उतार-चढ़ाव को सहन कर सकतीं हैं एवं शुष्क भूमि के लाखों किसानों को भोजन की आपूर्ति करने के साथ पशुओं को चारा भी प्रदान करतीं हैं।

औद्योगिक देशों में इनका उपयोग पीने योग्य अल्कोहल और स्टार्च उत्पादन के एक महत्वपूर्ण कच्चे माल के रूप में भी किया जाता है। भारतीय उपमहाद्वीप में, मोटे अनाजों को पोषक तत्वों के भंडार के रूप में एक उत्कृष्ट अनाज माना जाता है। मोटे अनाजों की सभी किस्मों में उच्च एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, ये ग्लूटेन-मुक्त होते हैं तथा इनसे एलर्जी भी नहीं होती है। परिणामस्वरूप, उपभोक्ता-मांग और आहार-पैटर्न में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है और हाल के दिनों में इन मोटे अनाजों के लिए बाजार की संभावना भी बन रही है।

उपभोक्ताओं के बीच बढ़ती स्वास्थ्य जागरूकता के कारण मूल्य वर्धित उत्पादों की मांग बढ़ रही है। भारत में मोटे अनाजों की खेती मुख्य रूप से कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, ओडिशा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड में की जाती है। राजस्थान (बाजरा क्षेत्र का 87 प्रतिशत), महाराष्ट्र (ज्वार क्षेत्र का 75 प्रतिशत) और कर्नाटक (रागी क्षेत्र का 54 प्रतिशत और बाजरा क्षेत्र का 32 प्रतिशत)। एफएओ के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में, मोटे अनाजों की खेती का क्षेत्रफल औसतन 108 लाख हेक्टेयर है और 2000 तथा 2019 के बीच इसमें 27 लाख हेक्टेयर की कमी आने की जानकारी मिली है।

विश्लेषण से पता चलता है कि मोटे अनाजों के क्षेत्रफल में 2000 से 2019 के बीच 2.25 प्रतिशत की दर से कमी दर्ज की गयी है, जबकि उत्पादन में वृद्धि केवल 0.08 प्रतिशत रही है। हालांकि, उत्पादकता 2.38 प्रतिशत सकारात्मक सीएजीआर दर्शाती है। विश्व स्तर पर मोटे अनाजों का बाजार 2019 में 9 बिलियन डॉलर था और इसके 12.5 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। भारत सबसे बड़ा उपभोक्ता है और वैश्विक मांग में 38 प्रतिशत हिस्से का योगदान देता है। भारत और विश्व स्तर पर कोविड-19 महामारी के दौरान पोषक तत्वों से युक्त भोजन की मांग में वृद्धि के कारण मोटे अनाजों और मोटे अनाजों के उत्पादों को बढ़ावा मिला है।

मोटे अनाजों का निर्यात किए जाने (Climate-Friendly Smart Crop) वाले प्रमुख देशों में नेपाल, सऊदी अरब, पाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात, ट्यूनीशिया, श्रीलंका, यमन गणराज्य, लीबिया, नामीबिया और मोरक्को हैं। डीजीसीआईएस के अनुसार, वर्ष 2019-20 में भारत से 8 लाख मीट्रिक टन मोटे अनाजों का निर्यात किया गया था, जिनकी कीमत 205.2 करोड़ रुपये (28.75 मिलियन डॉलर) थी। मोटे अनाजों की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में अत्यधिक अस्थिरता रहती है, जो मुख्यत: आपूर्ति की मात्रा से निर्धारित होती हैं और आमतौर पर अन्य प्रमुख फसलों की कीमतों से अप्रभावित रहती हैं। हालांकि, वैकल्पिक मूल्य श्रृंखला के विकास के साथ कीमतों में स्थिरता प्राप्त की जा सकती है।

नीति को प्रोत्साहन और कार्य योजना

हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने; 2023 को ‘अंतर्राष्ट्रीय मोटे अनाज वर्ष’ के रूप में घोषित करने के लिए बांग्लादेश, केन्या, नेपाल, नाइजीरिया, रूस और सेनेगल के साथ भारत द्वारा प्रस्तुत किए गए एक प्रस्ताव को सर्वसम्मति से मंजूरी दी। इस पृष्ठभूमि में, मोटे अनाज के निर्यात में दुनिया का अग्रणी देश बनने के लिए भारत द्वारा एक कार्य योजना शुरू किये जाने की आवश्यकता है। इस कार्य योजना में निम्न बातों को शामिल किया जा सकता है: मोटे अनाजों की उत्पादन प्रणालियों में अंतिम उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार करना और इसे लागत-प्रभावी बनाना। कृषि-पारिस्थितिकी की विभिन्न श्रृंखलाओं के तहत मोटे अनाजों की खेती को अत्यधिक लाभप्रद बनाना। मोटे अनाजों को पोषण-युक्त भोजन के रूप में प्रोत्साहन देना; पीने योग्य और औद्योगिक अल्कोहल, स्टार्च आदि के उत्पादन के लिए इन्हें कच्चे माल के रूप में बढ़ावा देना तथा मोटे अनाजों के डंठल सहित अन्य उत्पादों का प्रचार-प्रसार करना। कुशल मूल्य श्रृंखला के लिए उत्पादन-क्षेत्र के आसपास प्राथमिक और माध्यमिक प्रसंस्करण केंद्रों की स्थापना करना। एफपीओ द्वारा दी गयी सुविधा से संचालित व समुदाय के स्वामित्व वाली प्रसंस्करण इकाइयों को बड़े पैमाने का लाभ मिल सकता है। पोषण संबंधी लाभों के बारे में उपभोक्ता की जागरूकता को बढ़ाने के लिए; कॉरपोरेट और स्टार्ट-अप, खाद्य गुणवत्ता/सुरक्षा मानकों एवं बेहतर ब्रांडिंग के माध्यम से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को सहायता प्रदान कर सकते हैं।

मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार की पहल:

हाल ही में संशोधित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन परिचालन दिशानिर्देशों (एनएफएसएम) के माध्यम से, भारत सरकार ने मोटे अनाजों के लिए महत्वपूर्ण 14 राज्यों के 212 जिलों पर ध्यान केंद्रित किया है, ताकि किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीज उत्पादन/वितरण, क्षेत्र-स्तर पर प्रदर्शन, प्रशिक्षण, प्राथमिक प्रसंस्करण क्लस्टर और अनुसंधान सहायता के लिए प्रोत्साहन दिया जा सके।

कृषि अवसंरचना कोष (एआईएफ) ने मोटे अनाजों के उद्यमियों, अनाजों के प्राथमिक प्रसंस्करण और एफपीओ को मशीनरी उपलब्ध कराने आदि के लिए निवेश को बढ़ावा दिया है। ‘एक जिला, एक उत्पाद’ (ओडीओपी) पहल के तहत मोटे अनाजों के लिए 27 जिलों की पहचान की गयी है, जिन पर विशेष ध्यान दिया जायेगा। भारत में लगभग 80 एफपीओ हैं, जो ज्वार और मोटे अनाजों का उत्पादन कर रहे हैं। एफपीओ किसानों को एकत्रित करने और उनकी उपज का अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए एक सक्षम संस्था के रूप में कार्य कर सकते हैं।

मोटे अनाजों और इनके उत्पादों के निर्यात में वृद्धि की (Climate-Friendly Smart Crop) संभावना और पोषण-अनाज के रूप में मोटे अनाज क्षेत्र के विकास पर सरकार के विशेष जोर को ध्यान में रखते हुए, एपीडा आईसीएआर-आईआईएमआर एवं राष्ट्रीय पोषण संस्थान, सीएसआईआर-सीएफटीआरआई, एफपीओ जैसे अन्य हितधारकों के साथ एक रणनीति तैयार कर रहा है, ताकि मोटे अनाजों और मोटे अनाजों के उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए पांच साल की एक भावी कार्य-योजना को अंतिम रूप दिया जा सके।

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