संपादकीय: राजनीति का अपराधीकरण रोकेगा कौन
Who will stop criminalization of politics?: राजनीति का अपराधीकरण गहन चिंता विषय है। समय-समय पर राजनीति के अपराधीकरण को रोकने की मांग उठती रही है। इसके लिए चुनाव आयोग ने पहल भी की है किन्तु राजनीति का अपराधीकरण रूक नहीं पा रहा है। यदि किसी व्यक्ति को किसी भी जुर्म में तीन साल से अधिक की सजा मिल जाती है तो उसे ही चुनाव आयोग चुनाव लडऩे से अयोग्य ठहरा पाता है।
जबकि गंभीर मामलों में जेल में निरूद्ध दागी छवि वाले नेताओं को चुनाव लडऩे से चुनाव आयोग रोक नहीं पाता। ऐसे मामलों में कई सालों तक अदालती कार्यवाही चलती रहती है और इस बीच वे लोग चुनाव लडऩे के लिए स्वतंत्र रहते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में ही जम्मू कश्मीर और पंजाब से दंगों के आरोपी चुनाव लडऩे और जीतने में सफल हो गये। जबकि वे देशद्रोह के मामलों में जेल में बंद है।
देश की संसद और विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं में ऐसी दागी छवि वाले माननीयों की भरमार है जिनके खिलाफ लूट, रेप और हत्या जैसे जघन्य मामले दर्ज हैं ऐसे लोगों को राजनीतिक पार्टियां अपना प्रत्याशी बनाती हैं और वे बाहुबल की बदौलत चुनाव जीतने में भी सफल हो जाते हैं। जिन आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को कायदे से जेल में रहना चाहिए वे माननीय बनकर प्रजातंत्र के मंदिरों में जा विराजते हैं और देश के लिए कानून बनाने का काम करते हैं।
यह भी विडंबना ही है कि जेल में बंद आरोपी को मतदान करने का अधिकार नहीं होता लेकिन उसे चुनाव लडऩे की छूट रहती है। नई दिल्ली दंगों का आरोपी आम आदमी पार्टी का पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन जो जेल की हवा खा रहा है। उसे अस्सुद्दीन ओवैसी ने नई दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए अपनी पार्टी का प्रत्याशी घोषित किया है। ताहिर हुसैन ने विधानसभा चुनाव लडऩे के लिए सुप्रीम कोर्ट में अंतरिम जमानत की याचिका दाखिल की है।
जिस पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह तल्ख टिप्पणी की है कि ऐसे लोगों को तो चुनाव भी नहीं लडऩे देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी से स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट यह नहीं चाहता कि दागी छवि वाले लोग चुनाव लड़े। किन्तु ऐसे लोगों को चुनाव लडऩे से रोकने में चुनाव आयोग सक्षम नहीं है। उसके अधिकार सीमित है। ऐसे में तो सुप्रीम कोर्ट को ही इस मामले मेें दखल देना होगा और राजनीति का अपराधीकरण रोकना के लिए दिशा निर्देश जारी करने होंगे।
रही बात राजनीतिक दलों की तो वे बाहुबलि और धनबलि लोगों को ही टिकट देने में प्राथमिकता देते हैं। उनके लिए प्रत्याशी चयन का एक ही पैमाना होता है कि वे चुनाव जीतने के योग्य व्यक्ति का चयन करते हैं। भले ही वह अपराधिक पृष्ठभूमि वाला क्यों न हो। ऐसे में जबकि सभी राजनीतिक दलों के लिए दाग अच्छे हैं तो दागी लोगों को चुनाव लडऩे से कौन रोक पाएगा। बेहतर होगा कि सुप्रीम कोर्ट ही इस बारे में कड़े दिशा निर्देश जारी करे।