संपादकीय: भारत की एक और बड़ी कूटनीतिक जीत
Another big diplomatic victory for India: भारत और चीन के बीच सीमा विवाद बहुत पुराना है अब एलएसी पर पिछले पांच सालों से चला आ रहा तनाव खत्म हो गया है। भारत और चीन के बीच सैन्य स्तर पर चली लंबी बातचीत के बाद चीन लद्दाख क्षेत्र में डेपसांग और डेमचोक क्षेत्र से अपनी सेना पीछे हटाने के लिए सहमत हो गया है
और अब इस क्षेत्र में भारत और चीन की सेना फिर से गश्त कर सकेंगी। गौरतलब है कि डेपसांग और डेमचोक सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। यही वजह है कि चीन वहां से अपनी सेना को पीछे हटाने के लिए तैयार नहीं था।
जबकि भारत इसी बात पर अड़ा हुआ था कि वहां से चीनी सैनिक पीछे हटे। इस मुद्दे को लेकर एलएसी पर तनाव बना हुआ था। जिसे दूर करने के लिए सैन्य स्तर पर कई दौर की बातचीत हुई थी लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकल रहा था।
इसके पहले गलवान घाटी और डोकलाम में भी भारत और चीन की सेना के बीच संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हुई थी। जहां 1962 के बाद पहली बार भारत और चीन के सेना के बीच सीधी भिड़ंत हुई थी।
गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच हुए खूनी संघर्ष में भारत के एक करनल सहित 20 जवान शहीद हुए थे। इस संघर्ष में भारतीय सेना के जांबाजों ने चालीस चीनी सैनिकों को मार गिराया था।
भारतीय सेना का रौद्र रूप देखकर चीनी सैनिक दुम दबाकर भागे थे। इस घटना के बाद से ही भारत और चीन के बीच संबंध और खराब हो गए। भारत ने चीन के साथ अपना व्यापार कम कर दिया और हमारे देशवासियों ने भी चीनी सामानों के बहिष्कार की मुहिम चला दी थी।
नतीजतन चीन की अर्थव्यवस्था जो कोरोना काल के बाद डगमगा गई थी। वह चौपट होने की कगार पर पहुंच गई। यही वजह है कि चीन को भारत की बढ़ती ताकत का एहसास हुआ और अंतत: वह अपनी जिद छोड़कर भारत के सामने झुकने के लिए बाध्य हो गया।
ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के पूर्व ही चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने यह घोषणा कर दी कि पूर्वी लद्दाख में 2020 वाली स्थिति बहाल करने पर चीन सहमत हो गया है।
उनका कहना है कि भारत और चीन दोनों देशों की सीमा से संबंधित मुद्दों पर समझौते के निकट पहुंचे हैं। जिसकी चीन सराहना करता है। अब इस समझौते को लागू करने के लिए चीन भारत के साथ मिलकर काम करेगा।
निश्चित रूप से यह भारत की एक बड़ी कूटनीतिक जीत है। किन्तु इस समझौते के बाद भी भारत को चालबाज चीन से सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि वह पहले भी भारत की पीठ पर छुरा भोंक चुका है।
चीन अभी भी अपनी विस्तारवादी नीति पर अमल कर रहा है। यही वजह है कि उसके पड़ोसी देशों के साथ संबंध खराब हो चुके हैं। यूरोपीय देशों से भी उसके संबंध बिगड़ चुके हैं।
अमेरिका के साथ तो उसकी दुश्मनी जग जाहिर है। चीन के साथ सिर्फ रूस है और वह रूस भी भारत का अभिन्न मित्र है।
यही वजह है कि वक्त की नजाकत को देखते हुए चीन इस समझौते पर बाध्य हुआ है लेकिन वह इस पर कब तक कायम रहेगा। यह कह पाना मुहाल है। इसलिए भारत को चीन से सावधान रहना होगा।