Vermi Compost : ऐसा क्या व्यवसाय जिसमें महिलाओं ने मात्र 6 माह में 6 लाख का किया रोजगार…?
मनरेगा से बने 30 टांकों में वर्मी कंपोस्ट और केंचुआ का उत्पादन
रायपुर/नवप्रदेश। Vermi Compost : छत्तीसगढ़ सरकार की महती सुराजी योजना ने बेरोजगारों को रोजगार दिया है। इसके तहत सबसे ज्यादा प्रदेश में महिला स्वसाशी संस्थाओं को सफलता मिलते दिखाई दे रही है। प्रदेश सरकार ने गौठान निर्माण के साथ-साथ गोधन योजना के अंतर्गत गोबर खरीदी को महत्व दिया है। जिससे ग्रामीणों को आय का एक साथ मिला है। एकत्र गोबर को वर्मी कंपोस्ट बनाकर खेतों में खाद के रूप में उपयोग में लाया जा रहा है, जिससे खेतों में उत्पादन की मात्रा भी बढ़ेगी और किसानों को अधिक आय भी होगा।
इसी कड़ी में महिला स्वसहायता समूह ने वर्मी कंपोस्ट और केंचुआ उत्पादन कर मात्र 6 महीनों में 6 लाख रूपए का रोजगार किया।
दोनों जगह मोर्चा संभाल रही हैं महिलाएं
महिलाएं घर के भीतर और बाहर दोनों जगह मोर्चा संभाल रही हैं। घर के काम निपटाने के बाद वे स्वसहायता समूह बनाकर स्वरोजगार कर आर्थिक तौर पर भी स्वावलंबी बन रही हैं। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) से जुड़ीं धमतरी जिले के कुरूद विकासखंड की गातापार (को) की महिलाएं अपनी उद्यमिता से सफलता की नई इबारत लिख रही हैं।
वहां की कामधेनु कृषक अभिरूचि महिला स्वसहायता समूह (Vermi Compost) की महिलाओं ने वर्मी कंपोस्ट और केंचुआ उत्पादन का काम शुरू किया और छह महीनों में ही छह लाख रूपए की कमाई कर लीं। गांव में वर्मी कंपोस्ट निर्माण के लिए मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) से बनाए गए 30 टांकों ने उनकी सफलता की बुनियाद रखी। अपनी सीखने की ललक, हुनर और मेहनत से उन्होंने इसे परवान चढ़ाया।
30 टांके ने रखी सफलता की नींव
कामधेनु कृषक अभिरूचि महिला स्वसहायता समूह की अध्यक्ष मालती यादव बताती हैं कि उनके 11 सदस्यों वाले समूह ने पंचायत से टांका मिलने के बाद वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन शुरू किया था। प्रत्येक टांका में भराव की क्षमता 30 से 35 क्विंटल की है। समूह ने पिछले छह माह में 320 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट बनाया है, जिसमें से 295 क्विंटल बेचा जा चुका है। इससे समूह को दो लाख 95 हजार रूपए मिले हैं। लागत एवं अन्य खर्चों को काटकर एक लाख 33 हजार रूपए की शुद्ध आमदनी हुई है।
मनरेगा ने महिलाओं को दिया आत्मनिर्भरता का भरोसा
सामान्य बचत से शुरूआत कर समूह के माध्यम से आत्मनिर्भर बनने वाली इन महिलाओं का सफर वित्तीय वर्ष 2020-21 में तब शुरू हुआ, जब पंचायत की पहल पर मनरेगा से गांव में आठ लाख रूपए की लागत से सामुदायिक वर्मी कम्पोस्ट इकाई का निर्माण हुआ। ग्राम पंचायत ने चरणबद्ध तरीके से 30 टांके बनवाएं।
इस काम में 88 मनरेगा (Vermi Compost) श्रमिकों को सीधा रोजगार मिला। इस दौरान 561 मानव दिवसों का सृजन कर श्रमिकों को एक लाख रूपए से अधिक का मजदूरी भुगतान किया गया। टांकों के निर्माण के दौरान ही समूह की महिलाओं ने कृषि विभाग की मदद से जैविक खाद उत्पादन का प्रशिक्षण भी प्राप्त कर लिया था।
केंचुआ बेचकर कमाया 4 लाख 62 हजार का शुद्ध मुनाफा
टांके बनने के बाद वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन के लिए पंचायत ने तत्काल इन्हें कामधेनु कृषक अभिरूचि महिला स्वसहायता समूह को सौंप दिया। समूह ने इसी साल (2021 में) जैविक खाद बनाने का काम शुरू किया और पिछले छह महीनों में ही 295 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट की बिक्री कर एक लाख 33 हजार रूपए कमाए। जैविक खाद के साथ ही महिलाएं इसे तैयार करने में सहयोगी केंचुएं भी बेच रही हैं। बीते छह महीनों में 24 क्विंटल केंचुआ बेचकर महिलाओं ने चार लाख 62 हजार रूपए का शुद्ध मुनाफा कमाया है।
लाभ राशि से शुरू हुआ बकरी पालन व्यवसाय
समूह की सचिव निर्मला साहू बताती हैं कि वे लोग मनरेगा से निर्मित सामुदायिक वर्मी कम्पोस्ट इकाई में जैविक खाद के साथ ही केंचुआ उत्पादन भी कर रही हैं। उन्होंने अब तक 50 क्विंटल केंचुआ का उत्पादन कर लिया है। इनमें से 24 क्विंटल की बिक्री भी हो चुकी है, जिससे समूह को चार लाख 80 हजार रूपए प्राप्त हुए हैं। इकाई के संधारण एवं केंचुआ खरीदी पर हुए खर्चों को काटने के बाद समूह को इससे चार लाख 62 हजार रूपए की शुद्ध आय हुई है।
समूह की सदस्य गौरी ने बताया कि वर्मी कंपोस्ट (Vermi Compost) से हुई कमाई से समूह ने बकरीपालन शुरू किया है। इसके लिए 70 हजार रूपए की बकरियां खरीदी गई हैं। उनका समूह भविष्य में पशुपालन के काम को आगे बढ़ाना चाहता है। इसके लिए 50 हजार रूपए अलग से रखे गए हैं। वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन के लिए गौठान में भी 50 हजार रूपये लगाए हैं।