भाजपा के उदय, ढलान और शीर्ष के साक्षी रहे कल्याण सिंह

भाजपा के उदय, ढलान और शीर्ष के साक्षी रहे कल्याण सिंह

Kalyan Singh was witness to the rise, fall and top of BJP

Kalyan Singh

लखनऊ। Kalyan Singh : उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राममंदिर आंदोलन के पोस्टर ब्याव रहे कल्याण सिंह का शनिवार देर शाम संजय गांधी स्नात्कोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान में निधन हो गया। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री और राजस्थान के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह का लंबी बीमारी के बाद 89 की उम्र में निधन हो गया। उन्हें 4 जुलाई को संजय गांधी पीजीआई में भर्ती कराया गया था। लंबी बीमारी के बाद उनके सभी अंग धीरे-धीरे फेल होने के कारण उन्होंने अंतिम सांस ली।

भाजपा के एक युग का अंत

भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक कल्याण सिंह का पार्टी के साथ ही भारतीय राजनीति में कद काफी विशाल था। अयोध्या के विवादित ढांचा के विंध्वस के समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह भाजपा के कद्दावर नेताओं में से एक थे। हालांकि अयोध्या कांड कल्याण सिंह को इस्तीफा सौंपना पड़ा था। कल्याण सिंह का जन्म 6 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था। उनके पिता का नाम तेजपाल लोधी और माता का नाम सीता देवी था। कल्याण सिंह दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और अतरौली के विधानसभा के सदस्य थे। वह बुलंदशहर तथा एटा से लोकसभा सदस्य भी रहने के साथ राजस्थान तथा हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल रहे। राज्यपाल के रूप में अपना कार्यकाल समाप्त करने के बाद कल्याण सिंह ने लखनऊ में आकर एक बार फिर से भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी।

भाजपा के प्रथम पंक्ति के थे नेता

राममंदिर आंदोलन के पुरोधा कहे जाने वाले कल्याण सिंह भाजपा के संस्थापक सदस्यों में एक थे। उत्तर प्रदेश की राजनीति में उनका कद काफी बड़ा था। वह भाजपा के उदय, ढलान और शीर्ष के साक्षी रहे। उनके कार्यकाल में पार्टी फर्श से अर्श पर पहुंची। उन्होंने अपने अंतिम समय में भाजपा को शीर्ष स्तर पर पहुंचते देखा हैं। कांग्रेस पार्टी के वर्चस्व के दौरान कल्याण सिंह की छवि प्रखर हिंदूवादी नेता के तौर पर हुई। जनसंघ से जनता पार्टी और फिर भारतीय जनता पार्टी के नेता के तौर पर वे विधायक और यूपी के मुख्यमंत्री भी बने।

Kalyan Singh was witness to the rise, fall and top of BJP
Kalyan Singh

1991 में यूपी की कमान संभाली

पहली बार कल्याण सिंह (Kalyan Singh) उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वर्ष 1991 में बने और दूसरी बार यह वर्ष 1997 में मुख्यमंत्री बने थे। यूपी के प्रमुख राजनैतिक चेहरों में एक इसलिए माने जाते हैं, क्यूंकि इनके पहले मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान ही बाबरी मस्जिद की घटना घटी थी। कल्याण सिंह भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश में सत्ता में आने के बाद जून 1991 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इसके बाद अयोध्या में विवादित ढांचा के विध्वंस के बाद उन्होंने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुये छह दिसम्बर 1992 को मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया।

कल्याण सिंह भाजपा के उदय के साथ अपनी पारी खेलनी शुरू की थी। 90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था और इस आंदोलन के सूत्रधार कल्याण सिंह ही थे। उनकी बदौलत यह आंदोलन यूपी से निकला और देखते-देखते पूरे देश में बहुत तेजी से फैल गया।

कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा के पास पहला मौका था जब यूपी में भाजपा ने इतने प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई थी। जिस आंदोलन की बदौलत भाजपा ने यूपी में सत्ता पाई उसके पीछे भी कल्याण सिंह ही थे। इसलिए मुख्यमंत्री के लिए कोई अन्य नेता दावेदार थे ही नहीं। उन्हें ही मुख्यमंत्री का ताज दिया गया। कल्याण सिंह के कार्यकाल में सबकुछ ठीक-ठाक चलता रहा। कल्याण सिंह के शासन में राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर पहुंच रहा था। इसका नतीजा यह हुआ कि वर्ष 1992 में बाबरी विध्वंस हो गया। इस घटना ने पूरे राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया इसके बाद केंद्र से लेकर यूपी की सरकार की जड़ें हिल गईं।

कल्याण सिंह ने इसकी नैतिक जिम्मेदारी ली और 6 दिसंबर 1992 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे के बाद उनका कद और सुदृढ़ और नामचीन हो गया। उनके प्रधानमंत्री तक बनाए जाने की चर्चा चलने लगी।

सभी के साथ फिट बैठने वाले नेता थे

जानकारी के मुताबिक कल्याण सिंह जिस समय भाजपा में आए थे। उन्होंने इसे ओबीसी से जोड़ा। उन्होंने ढांचा गिरने की जिम्मेंदारी ली। इसके बाद वह नायक बनकर उभरे जहां जाते थे लोग उनकी मिट्टी को माथे लगा लेते थे। कल्याण सिंह राममंदिर के दौरान शहादत दी और अपनी सरकार कुर्बान की।

वरिष्ठ पत्रकार योगेष मिश्रा कहते हैं कल्याण सिंह विकास के पर्याय रहे। कल्याण सिंह (Kalyan Singh) पहले नेता हैं जिन्होंने हिंदुत्व और विकास का एक कॉकटेल तैयार किया। इस कॉकटेल को परवान चढ़ाया गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने। कल्याण ने ईमानदार प्रषासन की छवि दी थी। कल्याण को एक-एक विधानसभा के बारे में पता था एक-एक कार्यकर्ता को नाम से जानते थे। उन्हें यह भी पता था कौन से पार्टी किस विधानसभा में कौन लड़ रहा है। यही कारण रहा कि 2014 में जब मोदी चुनाव लड़ने आए तो उन्होंने अपने दूत के रूप अमित शाह को कल्याण सिंह के पास भेजा उन्होंने घंटो मंत्राणा की थी। इसके बाद वह आगे बढे थे। 2017,19 में उसी का लाभ मिला।

कल्याण संगठन और सरकार दोनों में दक्षता हासिल थी। कल्याण सिंह की प्रासंगिता ऐसे में समझे जा सकता है कि उन्होंने पार्टी को छोड़ा तुरंत ग्राफ नीचे गिर गया। वह भाजपा से निकलने के बाद उन्होंने अपना अस्त्वि बना रखा। भाजपा को मजबूर होकर उन्हें दोबारा पार्टी में लाना पड़ा। भाजपा के वह एकलौते नेता हैं, जिनकी तीनों पीढ़ियां किसी न किसी पद पर रहीं। वह राज्यपाल रहे। बेटा सांसद, पोता राज्यमंत्री रहे। कल्याण मोदी और अमित शाह की भाजपा के हर खांचे में फिट हो गए।

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