Environment Day CG: जिसे पागल कह छोड़ा, वो आज पर्यावरण के 'ब्रांड एंबेसडर'

Environment Day CG: जिसे पागल कह छोड़ा, वो आज पर्यावरण के ‘ब्रांड एंबेसडर’

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  • दुर्ग के गेंदलाल देशमुख अब तक लगा चुके लाखों पेड़, पंचायत उन्हें दे चुकी पांच एकड़ जमीन
  • कभी चाचा ने बहरूपिया कहकर छोड़ दिया, पर गेंदलाल ने नहीं छोड़ी अपनी तपस्या


चंद्रशेखर धोटे/दुर्ग। पर्यावरण (environment day cg) संरक्षण के लिए काम करने वाले कई लोगों केे संघर्ष की प्रेरक कहानियों को तो हम और आप पढ़ ही चुके होंगे। इस फेहरिस्त मेंं एक  नाम प्रदेश (chhattisgarh) के दुर्ग (durg) जिले से भी है, वो है गेंदलाल देशमुख (gendlal deshmukh) ।

आज पर्यावरण (environment day cg) दिवस के मौके पर नवप्रदेश आपको रूबरू करा रहा है दुर्ग (durg) के इन्हीं गेंदलाल देशमुख (gendlal deshmukh) की कहानी से। पर्यावरण प्रेम के प्रति उनका संघर्ष भी अपने आप में एक मिसाल है। पर्यावरण प्रेम व वृक्षारोपण के प्रति उनकी ललक को देखत हुए कभी उनकेे चाचा ने उन्हें बहरूपिया और पागल कहकर छोड़ दिया था, लेकिन उन्होंने अपनी ललक नहीं छोड़ी।

उम्र के 90 साल पूरे कर चुके गेंदलाल देशमुख जड़ी बूटी से लोगों का इलाज तो करते ही हैं साथ में इन जड़ी बूटियों की व्यवस्था व पर्यावरण संरक्षण के लिए वे अब तक लाखों पेड़ भी लगा चुके हैं। पंचायत ने उनके कामों के महत्व को देखते हुए उन्हें पांच एकड़ जमीन भी दी है। इस भूमि पर व अन्य जगह मिलाकर वे वे लाखों की संख्या में पेड़ लगा चुके  हैं।

रामायण की चौपाई से मिली प्रेरणा

नवप्रदेश से बातचीत में गेंदलाल ने पर्यावरण के प्रति अपने इस समर्पण भाव को लेकर बताया कि  उन्हें इसकी प्रेरणा रामायण से मिली। गेंदलाल बताते हैं- गांव में उनके बाबाजी रामायण सुनते थे। उनके चाचा उन्हें रामायण सुनाते थे। रामायण की चौपाई- ‘परहित सरिस धर्म नहिं भाई। पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।।Ó ने उन्हें इतना प्रेरित किया कि वे जनहित के काम जुट गए और इसके लिए उन्होंने वृक्षारोपण को ही इसका विकल्प बना लिया। गेंदलाल कहते हैं, ‘मेेरे पिता की करीब

140 एकड़ जमीन थी। मालगुजार का बेटा हूं। लेकिन रामायण की चौपाई ने मुझे जीवन का सार समझा दिया और मैं जनहित के काम में लगा हूं।    

कुछ करने के लिए पागल बनना ही पड़ता है

गेेंदलाल ने अपने शुरुआती संघर्ष के बारे में नवप्रदेश को बताया कि उनका काम उनके चाचा को पसंद नहीं थी। चाचा उन्हें बहरूपिया व पागल तक कहने लगे। आखिर में चाचा ने गेंदलाल को अकेला छोड़ दिया। पर बकौल गेंदलाल, समाज केे लिए कोई भी अच्छी चीज करनी है तो पागल बनना ही पड़ता है। गेंदलाल ने अपना मनोबल टूटने नहीं दिया और लगे रहे प्रकृति प्रेम व पर्यावरण संरक्षण की अपनी साधना में।

सरपंच की नहीं सुनी तो जमीन वापसी की मिली धमकी

गेंदलाल बताते हैं कि पंच रहते जिस शख्स ने उन्हें पांच एकड़ जमीन दिलाने के लिए जद्दोजहद की थी, सरपंच बनने के बाद वह शख्स उनके कामों में खामियां गिनाने लगा। जमीन वापसी की बात कहने लगा। बकौल गेंदलाल सरपंच उनसे नियम विरुद्ध काम कराना चाह रहा था, लेकिन उन्होंने  उसकी नहीं सुनी। लेकिन बाद में कलेक्टर के हस्तक्षेप पर जमीन गेंदलाल के ही कब्जे में रही। और आज इस भूमि पर अनगिनत पेड़ हैं। इस जमीन पर गेंदलाल ने खमेर, पीपल, बरगद, जाम, हर्रा, बेहड़ा, आंवला समेत करीब 50-55 प्रजाति के पड़ लगा चुके हैं। गेंदलाल बताते हैं कि बोरसी से कोडिय़ा तक सड़क किनारे भी उन्होंने 300 से ज्यादा पेड़ लगाए।   

सरकार से आधिकारिक तौर पर नहीं मिला पुरस्कार

गेंदलाल से यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें सरकार ने अब तक किसी पुरस्कार से सम्मानित किया है?  उन्होंने नहीं का जवाब दिया। हालांकि ये भी बताया कि निजी संस्थाओं से उन्हें पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। उन्होंने यह भी बताया कि कई बार वे निर्माण कार्यों के दौरान काटे गए पेड़ों को लेकर कोर्ट भी गए वहां जीते भी। वसूली गई जुर्माने की राशि से फायदा सरकार को हुआ। 

सबसे बड़ा धर्म पेड़ लगाना

पर्यावरण (environment day cg) दिवस पर लोगों को दिए अपने संदेश में गेंदलाल ने कहा कि पेड़ लगाना ही सबसे बड़ा धर्म है। उन्होंने कहा कि जैसा कि रामायण में वर्णित है- दूसरों के हित के जैसा कोई धर्म नहीं है, उसी प्रकार जनहित के लिए पेड़ लगाना सबसे बड़ा धर्म है।  

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