CORONA विशेष : इस रात की सुबह जरूर होगी : डॉ.संजय शुक्ला

CORONA विशेष : इस रात की सुबह जरूर होगी : डॉ.संजय शुक्ला

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कोरोना महामारी (Corona epidemic) के भयावहता (Horrors) के बीच देश में आत्महत्या के मामले लगातार बढ़ (Suicide in the country case of constantly growing) रहे हैं,  मार्च से लेकर अब तक हजारों लोगों ने खुदकुशी कर ली है। कोरोना संक्रमण के बारे में जानकारी घबराहट, निराशा, आधी-अधूरी व भ्रामक जानकारी के कारण देश में मानसिक रोगियों का इजाफा हो रहा है। दरअसल इस साल की शुरुआत से ही कोरोना संक्रमण का भय लोगों में बैठने लगा था और मार्च के अंतिम सप्ताह में लागू देशव्यापी लाॅकडाइन 0.1 के बाद लोगों में बैचेनी बढ़ने लगी जो संक्रमण और मौत के बढ़ते आंकड़ों के बाद अब चरम पर है।

Dr. sanjay shukla

इस संक्रमण से दुनिया को मुक्ति कब मिलेगी इसका जवाब फिलहाल चिकित्सा वैज्ञानिकों और चिकित्सकों के पास नहीं है और न ही विश्व स्वास्थ्य संगठन यानि डब्ल्यूएचओ कुछ बताने की स्थिति में है। इन परिस्थितियों के चलते देश और दुनिया में अवसाद जैसे मनोरोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही है जो चिंताजनक है। इन चिंताओं के बीच राहत भरी खबर यह भी है कि दुनिया के कई देशों में कोविड – 19 संक्रमण के बचाव के लिए वैक्सीन की ईज़ाद अंतिम दौर पर है और कुछ दवाओं का इस बीमारी में बहुत अच्छे परिणाम सामने आने लगे हैं वहीं इस महामारी में मृत्यु दर 1.73 फीसदी  है।

इन साकारात्मक खबरों के बीच वर्तमान परिदृश्य में कोरोना से बचाव ही इसका अचूक उपचार है इस दृष्टि से लोगों को स्वास्थ्य के प्रति सतर्कता, धैर्य,  इस संक्रमण के बारे में सही जानकारी, बचाव के लिए सावधानी, साकारात्मक विचार और आत्म अनुशासन जैसी आदतों को अपनी दिनचर्या में शामिल करना होगा तभी कोरोना हारेगा और जिंदगी जीतेगी। दरअसल कोरोनाकाल में शरीर को ही नहीं बल्कि दिमाग को भी मजबूत करना होगा। 

       विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के मुताबिक भारत की कुल जनसंख्या का 65 फीसदी हिस्सा किसी न किसी मानसिक तनाव से जूझ रहा है।इन दिनों वैश्विक महामारी कोरोना के कारण पैदा हुआ हालात लोगों के मानसिक तनाव को लगातार बढ़ा रहा है और  लोगों का साहस और धैर्य अब जवाब देने लगा है। आखिरकार विपरीत परिस्थितियों का सामना करने की भी एक सीमा होती हैं लेकिन जब प्रतिकूल परिस्थियां लगातार लंबी होने लगे तो दिमाग पर तनाव बढने लगता है।

बढ़ता दिमागी तनाव अनेक मनोरोगों में तब्दील हो रहा है, इनमें अवसाद यानि डिप्रेशन, एंग्जायटी, सिजोफ्रेनिया के आंकड़े देश और दुनिया में काफी तेजी से बढ़ रहे हैं।डबल्यूएचओ के अनुसार देश मेंं 19. 7 करोड़ लोग मानसिक रोगों से प्रभावित हैं, हर 20 लोगों मे से एक व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार है। दुनिया में सबसे ज्यादा अवसाद ग्रस्त भारत है इसके बाद चीन व अमेरिका है। कोरोनाकाल के दौरान अवसाद ने अनेकों होनहार और मेहनती डाक्टरों, नौकरीपेशा, व्यवसायी, युवा, छात्रों,मजदूरों और महिलाओं को खुदकुशी के लिए मजबूर कर दिया है।

कोरोनाकाल के  तनाव भरे दौर ने अवसाद जैसे मानसिक बीमारी को एक बार में फिर से चर्चा में ला दिया है। दरअसल इस मनोरोग से समाज का हर हिस्सा जिसमें सेलेब्रिटी, बिजनेस टायकून, राजनेता से लेकर सीमा व नक्सली मोर्चे पर तैनात सेना का जवान या सुरक्षा बल, व्यवसायी, बेरोजगार युवक, अच्छे कैरियर व परीक्षा परिणाम के लिए दबाव में रहने वाला छात्र, नौकरी खो चुका बेरोजगार, नौकरीपेशा या घरेलू महिला, किसान और दिहाड़ी मजदूर प्रभावित है।

दुखद यह है कि अवसाद ग्रस्त व्यक्ति और उसके परिजन इस रोग के शुरूआती लक्षणों से अनजान हैं फलस्वरूप परिस्थितियां दिनों – दिन गंभीर हो रही है। आईसीएमआर के अनुसार देश में 4.57 करोड़ आबादी अवसाद और 4.49 करोड़ आबादी एंग्जायटी से पीड़ित है। भविष्य में हृदयरोग के बाद  सबसे ज्यादा मौत मनोरोगों से होगी।                     

एक शोध के मुताबिक आत्महत्या के मामले में ज्यादातर संख्या उन लोगों की होती है जो अवसाद सहित अन्य मनोरोगों के शिकार होते हैं। दरअसल बीमारी,प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़, कम समय में ज्यादा हासिल करने की भूख, इम्तिहान में असफलता, अपने प्रिय को खोने का दुख, बिखरते संयुक्त परिवार, अभिभावकों का अपने बच्चों से ज्यादा अपेक्षा व बच्चों को समय न दे पाना तथा लगातार तिरस्कार, इंटरनेट, शराब व अन्य मादक पदार्थों की लत, हार्मोनल बदलाव,लगातार  नकारात्मक विचार, आर्थिक बोझ, अकेलापन, बेरोजगारी, घरेलू कलह और कर्ज का बोझ समाज के एक बड़े तबके को अंदर से तोड़ रहा है।

इन दिनों कोरोना और लाॅकडाउन के कारण पैदा हुए हालात ने समाज के बड़े हिस्से को काफी प्रभावित किया है खासकर महिलाओं, नौकरीपेशा और मजदूरों में इसका मानसिक प्रभाव ज्यादा देखा जा रहा है। महिलाओं की संवेदनशीलता और भावुकता, नौकरीपेशा तथा मजदूरों के हाथ से छीनती नौकरी व रोजगार की समस्या उन्हें आसानी से तनाव का शिकार बना रही है। कोरोनाकाल की अनिश्चितता, आर्थिक असुरक्षा, भविष्य की चिंता के फलस्वरूप पैदा हुआ तनाव अवसाद जैसे मनोरोग में बदल सकता है। इंडियन साइकियाट्रिक सोसायटी के अनुसार इन दिनों मानसिक अवसाद के नये मामले काफी तेजी से बढ़ रहे हैं।

दुनिया भर में हो रहे अध्ययन से पता चल रहा है कि इस समय कोरोना संक्रमण के भय के साथ – साथ सतर्कता व सावधानियों के कारण लोगों को घर में रहना पड़ रहा है फलस्वरूप शारीरिक गतिविधियां कम हो गयी है जिसकी परिणति चिड़चिड़ापन, गुस्सा और हताशा के रूप में सामने आ रहा है। दरअसल मनुष्य जन्म से ही सामाजिक होता है उसके जीवन का ताना-बाना त्योहार, उत्सव, परिवार, रिश्तेदारों और दोस्तों में गूंथा होता है।

वह उत्सव और पर्व मनाकर, लोगों से मेल – मुलाकात और बाहर घूमकर अपने दैनंदिन तनाव से मुक्ति पा लेता है लेकिन हालिया बंदिशों के कारण यह फिलहाल संभव नहीं है। डब्ल्यूएचओ के रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 के आखिर में भारत की 20 फीसदी आबादी मानसिक रोगों के चपेट में आ जाएगी। यह स्थिति भारत जैसे कमजोर अर्थव्यवस्था और लचर स्वास्थ्य सुविधाओं वाले देश के लिए चिंताजनक है। देश में मनोरोग विशेषज्ञों और मनोवैज्ञानिक काउंसलर्स की भारी कमी है, देश में दो लाख आबादी पर एक मनोरोग विशेषज्ञ है।

अधिकांश सरकारी अस्पतालों में मनोरोग विशेषज्ञों के पद नहीं है अथवा खाली हैं, महज एक फीसदी हेल्थ वर्कर्स मेंटल हेल्थ से जुड़े हैं।  देश मेंं मानसिक स्वास्थ्य सुधारों मेंं बड़ी बाधा बहुत कम बजटीय आबंटन है।अधिकांश राज्यों मेंं मेंटल हेल्थ का बजट एक प्रतिशत से भी कम है,यह हर भारतीय के हिस्से मेंं महज चार रूपये है। विडंबना  कि भारत मेंं मनोरोगों को सामाजिक रूप से गंभीरता से नहीं लिया जाता और  इलाज पर ध्यान न  देकर भूत-प्रेतबाधा मान कर झाड़ -फूंक जैसे अंधविश्वास का सहारा लिया जाता है।         

बहरहाल आत्महत्या किसी समस्या का हल नहीं है बल्कि यह कदम देश और समाज की क्षति है व पीड़ित परिवार के लिए असीम दुखदायी। इसलिएअवसाद के लक्षणों के प्रति स्वयं और परिवार को जागरूक व सतर्क होना जरूरी है। आमतौर पर डिप्रेशन ग्रस्त व्यक्ति मेंं  भूख,नींद और यौनेच्छा में कमी, वजन में कमी,मन दुखी रहना,भविष्य के प्रति नकारात्मक विचार, पढ़ाई और काम मेंं मन नहीं लगना, दिल की धड़कन बढ़ जाना, घबराहट और सांस लेने मेंं दिक्कत,तेज प्यास लगना,हिचकी आना, मांसपेशियों में ऐंठन या दर्द , अचानक जोर से हंसना या रोना जैसे लक्षण मिलते हैं।

यदि इनमें कुछ लक्षण दिखाई दे तो मनोविशेषज्ञ से तुरंत संपर्क करना चाहिए। अवसाद और अन्य मनोरोगों का सफल उपचार मौजूद है लेकिन इसके प्रति व्यक्ति और समाज को इन रोगों के बारे में प्रचलित भ्रम को मिटा कर संवेदनशील और सतर्क होना आवश्यक है। हर  मनोरोग पागलपन जैसी बीमारी नहीं है बल्कि यह भी अन्य जीवनशैली गत रोगों जैसे विकार है जिससे छुटकारा संभव है।

अवसाद ग्रस्त रहे पूर्व मनोरोगियों के संस्मरण के अनुसार नियमित दवाई, चिकित्सा परामर्श, दृढ़ इच्छाशक्ति, साकारात्मक विचार, अच्छी नींद, पौष्टिक भोजन, काम में व्यस्तता, परिवार और आसपास का खुशनुमा माहौल और साथ,  नशे का त्याग कर , नियमित ध्यान, योग  और व्यायाम से इस बीमारी से निश्चित रूप से उबरा जा सकता है। बहरहाल जिंदगी अनमोल है, मानव समाज ने अतीत में भी ऐसे अनेक आपदाओं और चुनौतियों पर सफलता पायी है जरूरत साकारात्मक बने रहने की है।

आखिरकार हर आपदा हमें संघर्ष का जज्बा सीखाती है और नयी सीख भी देती है इसलिए यह मन में ठान लें कि भले ही अभी लोगों के जीवन में घनी स्याह रात है लेकिन इस रात की सुबह जरूर होगी, बस धीरज रखें। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि न्यूजीलैंड सहित दुनिया के 25 देश कोरोना से मुक्त हो चुके हैं वहीं इस संक्रमण के जनक चीन का वुहान शहर कोरोना महामारी से उबर कर वापस अपनी जिंदगी जीने लगी है और शेष चीन मेंं भी परिस्थितियां बड़ी तेजी से सामान्य हो रही है।

(लेखक शासकीय आयुर्वेद कालेज रायपुर में सहायक प्राध्यापक हैं।)  94252 13277 

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