Controversial Statement : बंगाल में फिर बवाल

Controversial Statement : बंगाल में फिर बवाल

Controversial Statement: The ruckus in Bengal again

Controversial Statement

Controversial Statement : भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता रही नुपूर शर्मा के विवादास्पद बयान के विरोध में देश के १४ राज्यों में बवाल मचा था। उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में दंगा भड़काने की साजिश की गई थी जो प्रशासन की सतर्कता के चलते विफल हो गई। दंगाईयों के खिलाफ संबंधित राज्य सरकारों ने कार्यवाही भी शुरू कर दी है जिसके बाद किसी भी राज्य में कोई उत्पात नहीं मच रहा है लेकिन बंगाल में लगातार दो दिनों तक हिंसा की घटनाएं होना बंगाल की राज्य सरकार को सवालों के कटघरे में खड़ा करता है।

हावड़ा और मुर्शिदाबाद (Controversial Statement) में दो दिनों तक जमकर बवाल हुआ। लोगों की दुकाने लूट ली गई, अगजनी की घटनाएं हुई और पुलिसवालों पर भी जमकर पत्थर चले। इन घटनाओं पर रोक लगाने की जगह बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बेनर्जी ने बंगाल में मचे बवाल के लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहरा दिया है। उनका आरोप है कि भाजपा बंगाल में अशांति फैला रही है। इसे ही कहते है उल्टा चोर कोतवाल को डांटे। बंगाल के बारे में सबको पता है कि वहां बगैर ममता बेनर्जी के इशारे के पत्ता भी नहीं हिलता। बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान वहां जो हिंसा हुई थी और चुनाव जीतने के बाद भी बंगाल इस हिंसा की आग में जला था उसे सारे देश ने देखा है।

बंगाल में कानून और व्यवस्था की स्थिति लगातार बद से बदतर होती जा रही है। यही वजह है कि बंगाल के भाजपाई वहां राष्टपति शासन लगाने की मांग करने लगे है। दरअसल किसी भी मुद्दे को लकर जब हिंसा की आग सुलगती है तो कुछ राजनीतिक पार्टियां इस आग में अपने लिए राजनीतिक रोटियां सेंकने का काम शुरू कर देती है। जिन पर यह जिम्मेदारी होती है कि वे कानून और व्यवस्था की स्थिति को संभाले वे ही उसे बिगाडऩे में लग जाते है और हिंसा की आग को बुझाने के नाम पर आग में पानी डालने की जगह पेट्रेाल डाल कर आग को और भड़काते है।

होना तो यह चाहिए कि किसी भी संवदनशील मुद्दे (Controversial Statement) पर सभी राजनीतिक पार्टियों को अपनी दलगत भावनाओं को दरकिनार कर एकजूट होना चाहिए ताकि दो संप्रदायों के बीच आपसी सद्भाव और भाई चारा बना रहे लेकिन होता उल्टा है। राजनीतिक पार्टियां इसमें भी अपना नफा नुकसान देखने लगती है और उस हिसाब से अपना एजेंडा तय करती है। कुछ तो वोट बैंक के चक्कर में खुलकर दंगाईयों का समर्थन भी करने लगते है। ऐसे लोगों की वजह से ही तिल का ताड़ बनता है और तनाव का माहोल पैदा हो जाता है। व्यापक राष्ट्रीय हितों को मद्देनजर रख कर सभी राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे हिंसा की इस आग को और भड़कने से रोके और शांति कायम करने के लिए आगे आएं।

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