Paddy Parched: क्या धान लाने पर प्रतिबंध हटेगा और मंडी टैक्स कम करेगी सरकार ?

Paddy Parched: क्या धान लाने पर प्रतिबंध हटेगा और मंडी टैक्स कम करेगी सरकार ?

Will the ban on planting paddy be lifted and the government will reduce mandi tax?,

paddy parched

paddy parched: धान खरीदी का लक्ष्य नहीं हो पाया पूरा, बावजूद पिछले साल से धान खरीदी अधिक, कई रिकॉर्ड टूटे

रायपुर नवप्रदेश/प्रमोद अग्रवाल। paddy parched: राज्य में समय बढ़ाने के बावजूद धान खरीदी का जो लक्ष्य रखा गया था वह पूरा नहीं हो पाया है। हालांकि राज्य में पिछले वर्ष के 94 लाख टन धान खरीदी के रिकार्ड को तोड़ दिया है और कुल 98 लाख टन धान खरीदा है। यह माना जा रहा है कि राज्य के लगभग 95 प्रतिशत से भी ज्यादा किसानों ने अपना संपूर्ण धान सरकार को बेच दिया है। सवाल अब यह उठ रहा है कि क्या राज्य सरकार राईस मिल उद्योग के संरक्षण हेतु अन्य राज्यों से धान लाने पर लगाया गया प्रतिबंध हटाएगी और मंडी टैक्स में जो वृद्धि की गई थी क्या उसे वापस लिया जाएगा।

नए सीजन की धान खरीदी (paddy parched) करने के पूर्व राज्य शासन में राईस मिलर्स के साथ एक समझौता किया था कि राज्य में अब कस्टम मिलिंग की दरें 40 रूपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 120 रूपए प्रति क्विंटल कर दी जाएगी। इस निर्णय का पूरे राज्य में बहुत स्वागत किया गया था। यह माना जा रहा था कि इस निर्णय से राज्य में खरीदे जाने वाले धान की कस्टम मिलिंग तेजी से होगी और वर्ष के अंत में जो धान खराब हो जाता है उससे बचा जा सकेगा।

बाद में यह पता चला कि धान खरीदी की यह जो बढ़ी हुई दर है उसमें राज्य सरकार के कुछ नियम व शर्ते भी है। जिसमें कहा गया है कि राज्य में इस वर्ष उपार्जित पूरा धान तथा पिछले वर्ष का बचा हुआ लगभग 15 लाख मिट्रिक टन धान कुल मिलाकर लगभग 115 लाख मिट्रिक टन धान की मिलिंग निर्धारित समय पर होने पर ही मिलर्स को 120 रूपए प्रति क्विंटल का भुगतान किया जाएगा। अन्यथा भुगतान की दर आधी याने 60 रूपए प्रति क्विंटल होगी।

इस दर को बढ़ाने के बाद राज्य सरकार ने मंडी टैक्स में जबर्दस्त वृद्धि कर दी थी और उसे दो प्रतिशत से बढ़ाकर पांच प्रतिशत कर दिया गया। इस वृद्धि की वजह से केन्द्र सरकार से राज्य ने धान खरीदी के नाम पर पिछले वर्ष के मुकाबले 3 प्रतिशत ज्यादा टैक्स वसूल लिया। आंकड़ों में समझे तो राज्य में समर्थन मूल्य पर धान खरीदी की दर लगभग 1980 रूपए औसतन है जिसका पूर्व के अनुसार मंडी टैक्स 39.50 रूपए प्रति क्विंटल देना होता था लेकिन राज्य सरकार ने इस बार इसे बढ़ाकर 5 प्रतिशत कर दिया है और लगभग 100 रूपए प्रति क्विंटल मंडी टैक्स के रूप में केन्द्र से वसूल लिए है।

याने की राईस मिलर्स (paddy parched) को जो दरे मिलिंग की बढ़ाई गई है उतने मान का पैसा राज्य ने मंडी टैक्स के रूप में केन्द्र से पहले ही वसूल कर के रखा हुआ है और यदि राईस मिलर्स राज्य में उपार्जित धान की मिलिंग पूरी नहीं कर पाता है तो राज्य को टैक्स के रूप में 20 रूपए प्रति क्विंटल का अतिरिक्त लाभ होगा। दूसरी ओर इस मंडी टैक्स को बढ़ाए जाने के बाद राईस मिलर्स के लिए एक समस्या और खड़ी हो गई है। पहली तो यह है कि राज्य में धान खरीदी बंद होने के बाद भी अभी तक बाहर से आने वाले धान पर से प्रतिबंध नहीं हटाया है जिसके कारण राज्य में उच्च किस्म का चांवल उत्पादन बंद है और राज्य में ऊंचे किस्म के चांवल खाने वालों के लिए चांवल की आपूर्ति अन्य राज्यों से करनी पड़ रही है।

यदि धान लाने की अनुमति मिल जाएं तो वह चांवल यहां भी उत्पादित हो सकता है। जिससे राज्य में श्रमिको को काम मिलेगा और राज्य के व्यापारी कम दरों पर चांवल विक्रय कर सकेंगे। दूसरी परेशानी यह है कि केन्द्र से अतिरिक्त मंडी टैक्स वसूली के कारण जो दरें पांच प्रतिशत तक बढ़ाई गई है यदि वह वापस नहीं ली जाती है तो राज्य में अब धान लाना भी लगभग 60 रूपए प्रति क्विंटल महंगा पड़ेगा।

राज्य के बहुत सारे राईस मिलर्स का चांवल ब्रांड नेम से पूरे देश में बिकता है लेकिन यदि मंडी टैक्स वापस नहीं लिया गया तो वो जो धान लाकर चांवल बनाएंगे उसमे उन्हे 60 रूपए का अतिरिक्त उत्पादन लागत बढ़ जाएगी और इसके कारण उन्हे देशभर में चांवल की दरों में जो प्रतिस्पर्धा है उसमें नुकसान होगा और राज्य का चांवल विक्रय में जो ख्याति है उसमें कमी आएगी।


कुल मिलाकर धान और चांवल केन्द्र और राज्य सरकार की राजनीति में बुरी तरह फंसा हुआ है जहंा केन्द्र इस बात से परेशान है कि छत्तीसगढ़ शासन धान का समर्थन मूल्य पिछले तीन वर्षो से 2500 रूपए प्रति क्विंटल दे रहा है और जिसके कारण पूरे देश में इस सरकार की ख्याति है उससे भाजपा को पूरे देश में किसानों के सामने जवाब नहीं सूझ रहा है।

दूसरी ओर केन्द्र द्वारा बारदाना संकट, खाद संकट उत्पन्न करने और एफसीआई के माध्यम से खरीदे जाने वाले चांवल में तरह तरह के रोढ़े अटकाने, उसना चांवल नहीं लिए जाने के जवाब में राज्य ने एक मुश्त तीन प्रतिशत टैक्स बढ़ाकर केन्द्र से 60 रूपए क्विंटल अतिरिक्त वसूल लिए है। इन दोनों की इस राजनीतिक लड़ाई में राज्य का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण उद्योग राईस मिल लगातार संकट से घिर रहा है।

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