Weekly Column By Sukant Rajput : दैनिक नवप्रदेश में प्रकाशित साप्ताहिक स्तंभ, बातों…बातों…में…!
Weekly Column By Sukant Rajput : दैनिक नवप्रदेश के लिए सुकांत राजपूत द्वारा इस साप्ताहिक स्तंभ बातों…बातों में देश से लेकर प्रदेश तक के सियासी और नौकरशाही से ताल्लुक रखती वो बातें हैं जिसे अलहदा अंदाज़ में पेश किया जा रहा है।
बारूद फैक्ट्री का अपराधी कौन…
घटना बेरला ब्लॉक के ग्राम बोरसी स्थित स्पेशल ब्लास्ट लिमिटेड बारूद फैक्ट्री की है। फैक्ट्री मालिक संजय चौधरी और प्रबंधक की गिरफ़्तारी तो दूर उनको आरोपी बनाने तक के लिए कलेक्टर-एसपी शायद मुहूर्त की इंतज़ार में है। अपनों की तलाश में रोते-बिलखते और आक्रोशित परिजन फैक्ट्री गेट में रोक दिए गए। जबकि बंद की गई फैक्ट्री के दुबारा शुरू किये जाने के पीछे जिनका हाथ था वो भी नदारद हैं। क्षेत्र के विधायक दीपेश साहू घटना के घंटों बाद पहुंचे और अपनी उपस्थिति दर्ज करवाकर चलते बने। नाराज ग्रामीणों ने जब रोककर पूछा कि हमारे साथ क्यों नहीं बैठते ?…तो माहौल समझते ही वो भी पुलिस सुरक्षा में दिखाई देने लगे और फैक्ट्री के अंदर घुस गए। फैक्ट्री के जिम्मेदार कहाँ और किसकी हिफाज़त में दुबककर बैठे कोई नहीं जानता। सत्तापक्ष ने केडिया डिस्टलरी बस हादसे की तर्ज पर ही मुआवजे की घोषणा की है और विपक्ष फ़िलहाल खामोश है।
लापता मजदूरों से भी बेखबर…
फैक्ट्री में चूक, खतरा अब भी बरक़रार होने के बाद ऐसे कई सवाल हैं जिनसे कलेक्टर, पुलिस, प्रशासन और एसडीआरएफ तक बेखबर है। हादसों की कोई पुख्ता वजह तो दूर लापता मजदूरों को लेकर प्रशासन के पास कोई जानकारी नहीं है। नाम और बॉडी नहीं मिली है बस 7 मजदूरों के लापता होने की पुष्टि की गई है। हादसे को 30 घंटे से ज्यादा बीत गए और मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। बताते हैं शनिवार सुबह साढ़े 7 बजे ब्लास्ट हुआ। ब्लास्ट की जगह 15-20 फीट का गड्ढा हो गया। मलबा हटाने के दौरान दिख रहे शरीर के अवशेष। टीएनटी, पीएटीएन जैसे खतरनाक विस्फोटक सामग्रियों का जखीरा अमोनियम नाइट्रेट के साथ अब भी लापरवाही से घटना स्थल पर बिखरा हुआ है। फिर भी ग्रामीणों को घटना स्थल में आने-जाने से कोई रोक नहीं पाया। मलबों में दबी और चीथड़े में तब्दील मजदूरों के अवशेष भी नहीं खोजे गए हैं।
मौत की कीमत सिर्फ 5 लाख…
उत्तर प्रदेश के किसानों को 50-60 लाख रूपये देने वाला छत्तीसगढ़ राज्य अपने लोगों की मौत की कीमत सिर्फ 5 लाख के लायक मानता है। कवर्धा सड़क हादसा के शिकार आदिवासी हों या फिर केडिया डिस्टलरी बस हादसे में मरे गए फैक्ट्री कर्मियों की असामयिक मौत की मुआवजा राशि। जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन, फैक्ट्री मालिक, परिवहन और उद्योग विभाग की लापरवाही का खामियाजा छत्तीसगढ़ के गरीब मजदूर अपने खून से चूका रहे हैं। चौंकाने वाली बात यह कि हादसे के घंटों बाद तक समुचित राहत, बचाव दाल के नहीं पहुंचने और जिम्मेदारों के नासमझ जवाबों का सिलसिला बारूद फैक्ट्री हादसे में भी देखने को मिला। ग्रामीणों की गुजारिश है साहब… अपनों की कीमत तो ज़रा बढ़ाइए।
बिना ग्लोब्स-मास्क के SDRF…
SDRF जब इतना फंड और जिम्मेदारियों वाला महकमा है और वो आपातकाल में बिना सुरक्षा इंतजाम के दिखाई दे तो हालात का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। अफसरों की उदासीनता और एसडीआरफ के पास संसाधनों का अभाव साफ दिखाई दिया। बारूद फैक्ट्री में राहत और बचाव के लिए भेजी गई SDRF की पूरी टीम बिना ग्लोब्स और मास्क के पहुंची थी। उन्हें देखकर यही लगा कि वो ग्लोब्स और मास्क होता तो पहनकर फैक्ट्री के अंदर जाते। क्योंकि पूरा दस्ता गमछानुमा कपड़ों से मुंह ढंककर बिना दस्ताना पहने अंदर घुसा। जहां अमोनियम नाइट्रेट, टीएनटी, पीइएनटी जैसे विस्फोटक पड़े हैं ब्लास्ट का खतरा बना हुआ है वहां यूं SDRF को भेजने वाले अफसर शायद टाइम पास या खानापूर्ति के मूड में हैं।
कहां गया मिडिया का चुनावी पैसा…
राहुल गांधी के मीडिया को ब्लैकमेलर और बिकाऊ कहे जाने वाले कथित पुराने वीडियो क्लिप पर आखिरकार आज ही क्यों मुख्यमंत्री विष्णु देव साय समेत भाजपा प्रदेश संगठन के नेताओं ने बयान जारी किया यह समझ से परे है। पार्टी नेताओं और प्रदेश संगठन समेत बीजेपी मीडिया सेल भी संभवतयः हड़बड़ी में गड़बड़ी कर गया। राहुल के 2022 और 2023 के पुराने वीडियो क्लिप में राष्ट्रीय नेतृत्व, संगठन के बदले प्रदेश भाजपा संगठन के नेता बड़बड़ करने लगे। बातों ही बातों में एक घर के भेदी ने बताया निजी होटल की छत और मिडिया सेल इंचार्ज की सिफारिश पर चेहरा देखकर कुछ लोगों को ही तिलक किया गया। नाराज़ पत्रकार फोन का इंतज़ार करते रह गए। ज्यादातर ऐसे चिल्हारों को रेजगारी दी गई जो पार्टी के बड़े नेताओं के बजाये तीन तिलंगों को प्रमुखता से छापते हैं। ये भी मुगालता है कि छत्तीसगढ़ की 11 की 11 ये आसानी से जीत रहे हैं इसलिए भी कइयों का हिस्सा गड़रगप कर गए तीन तिलंगे। अब बात ऊपर तक पहुँचने लगी है।