Weekly Column By Sukant Rajput : दैनिक नवप्रदेश में प्रकाशित साप्ताहिक स्तंभ, बातों…बातों…में…!

Weekly Column By Sukant Rajput : दैनिक नवप्रदेश में प्रकाशित साप्ताहिक स्तंभ, बातों…बातों…में…!

Weekly Column By Sukant Rajput :

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Weekly Column By Sukant Rajput : दैनिक नवप्रदेश के लिए सुकांत राजपूत द्वारा इस साप्ताहिक स्तंभ बातों…बातों में देश से लेकर प्रदेश तक के सियासी और नौकरशाही से ताल्लुक रखती वो बातें हैं जिसे अलहदा अंदाज़ में पेश है।

नौकरशाहों की लालफीताशाही….

सत्ता बदल गई लेकिन व्यवस्था अब भी अफसरशाहों के कृपण हाथों में ही है। आलम यह है कि शासन से अनुमति मिलने के बाद भी निगम ने उपयोग किये गए खाद्य तेलों की खरीदी शुरू नहीं की है। बता दें कि साय सरकार ने बाकायदा आदेश जारी कर दिया था कि होटलों, ठेले और खोमचों में यूज़्ड फ़ूड ऑयल को निगम को खरीदना है। इस दूरदर्शी और जनस्वास्थ्य के हितार्थ होटलों में उपयोग किये जा चुके जले तेलों के लिए सरकारी दरें भी तय की जा चुकी हैं। प्रति लीटर 27 रूपये में निगम को होटल, ठेलों, खोमचों से इसे खरीदकर बायोडीजल का विकल्प बनाने की योजना है। बातों ही बातों में एक अफसर के मुंह से निकल गया कि बार-बार बड़ा. भजिया और नॉन वेज तलने के लिए उपयोग करने वाले जले तेल से कई असाध्या बीमारी का खतरा रहता है। स्वास्थ्यगत कारणों के अलावा इस जले तेल का उपयोग करके गाड़ियां चलाने की महती योजना है। लेकिन आदेश के बाद भी प्रदेश के एक भी नगरीय निकायों ने खरीद तो दूर इस संबंध में कोई पुख्ता कार्रवाई भी नहीं किये हैं। लगने लगा है नया मंत्रालय और विभागों में तत्कालीन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल-रायपुर के बीच जैसी दुरी थी वैसे ही अब भी है।

कोल्डड्रिंक में पेस्ट्रेसाइट्स…

मामला है देश में खासकर युवाओं में कोल्डड्रिक की लत का। बदलती लाइफ स्टाइल और देश में मधुमेह के रोगियों की संख्या में भी कोल्डड्रिंक फैशन का असर पड़ने लगा है। बातों ही बातों में एक अदद जानकार कांग्रेसी ने बताया कि तात्कालीन सेंट्रल फ़ूड मिनिस्टर शरद पवार ने एक खबर के खुलासे के बाद कोल्डड्रिंक से खतरे को भांपते हुए बैन का फैसला लिया था। हालांकि खुद को जनसेवक जताने वालों ने अंतराष्ट्रीय बाजार के दबाव में इसे देश की गरीब जनता से ज्यादा वीआईपी के लिए घातक मानकर लोकसभा की कैंटीन में प्रतिबंधित कर दिया। लेकिन खुले बाजार में सॉफ्ट ड्रिंक और कोल्डड्रिंक अब भी धड़ल्ले से बिक रही है। बताते हैं कि देश में जितनी भी सॉफ्टड्रिंक-कोल्डड्रिंक बिक रही है उसमें पेस्ट्रेसाइट्स की काफी मात्रा है जो जहर के मुतल्लिक है। खैर चिंता की बात नहीं कम से कम कथित सेवकों ने जनता नहीं देश के नेताओं को तो इस जहर से बचाने का फैसला लिया। लोकसभा की कैंटीन में वीआईपी अब ताजे फलों का जूस मामूली से रेट में छककर पीते हैं और युवा पीढ़ियों को कमजोर करने के लिए 27 फीसदी कैफेन परसेंट वाली नई एनर्जी ड्रिंक स्टिंग बेरोकटोक बाजारों में बिक रही है।

फैसले के बाद सिंग इस बैक….

आम चुनाव का फैसला आने और आचार संहिता समाप्त होने की सभी बाट जोह रहे हैं। वजह साफ़ है सभी को अपनी फरमाइशी जगह मिलेगी…ज्यादातर को मलाईदार विभाग, निगम, मंडल और आयोग की चाह है तो कुछ खौफजदा किसी कोने-काने में वक्त बिताएंगे। इसमें वो एक पुलिस अफसर भी शामिल है जिसकी नौकरी तो तक़रीबन जा ही चुकि थी, लेकिन रब्बा खैर करे वो फिर एसीबी-ईओडब्ल्यू की कमान सम्हालेंगे। फ़िलहाल रब ने सब्र रखने और ठांड रक्खण वास्ते कित्ता सी…! वैसे भी डीएम मना कर दिए थे लेकिन जाते जाते मिश्रा की सिफारिश कर गए थे। वैसे मिश्रा जी की कार्यशैली पर कोई संदेह नहीं लेकिन सिंग की तुलना में तो…हैं। बातों ही बातों में महकमे के नारद ने फुसफुसाया ‘रब के बंदे’ की नौकरी पर बन आई थी तब भी वो एसीबी-ईओडब्ल्यू और 21 नख वाले कछुआ की बात करते घिर गए थे अब एक बार फिर महकमे में सिंग इज़ बैक की चर्चा है।

रायपुर में सिंह राज….

छत्तीसगढ़ की जनता ने 15 साल ठाकुर राज देख चुके है। चौड़ी और चिकनी सड़कें, चाउंर वाले बाबा की देन थी। लेकिन 5 साल में रोड इंफ्रास्ट्रक्चर कोलेप्स हो गया था। अब एक बार फिर जर्जर सड़कें दुरुस्त की जा रही है। बीते पांच साल में तो राजधानी रायपुर की सड़कें भी किसी गांव की पगडंडी की तरह हो गई थीं। गड्ढों ने लोगों का अस्थि-पंजर हिलाकर रख दिया था। हालांकि प्रदेश में ठाकुर राज तो नहीं आया पर राजधानी रायपुर में सिंहों का वर्चस्व है। कलेक्टर गौरव सिंह और एसएसपी संतोष सिंह के बीच बेहतरीन समन्वय है। एक ठाकुर रायपुर में बेपटरी हो चुकि कानून व्यवस्था को रास्ते में लाने में लगभग कामयाब माने जा रहे हैं तो वहीँ जिला प्रशासन की कार्यशैली को ज्यादा यूज़ टू बनाने के लिए दूसरा ठाकुर दिन-रात एक किये है। इसमें अतिश्योक्ति नहीं कि लोकसभा चुनाव में जिला निर्वाचन अधिकारी और कलेक्टर के सारे फ़र्ज़ ऐडा करने वाले अफसरों में गौरव सिंह का नाम भी शुमार हो गया है। आखिर में यह कहा जा सकता है कि फिल्म वालों ने जिन ठाकुरों की छवि को बुरी तरह ख़राब किया था वो सिर्फ गॉसिप था… क्योंकि एससी, एसटी और ओबीसी बहुल राज्य को फ़िल्मी नहीं अच्छे ठाकुर मिले।

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