Supreme Court : राजनीति का अपराधीकरण चिंतनीय

Supreme Court : राजनीति का अपराधीकरण चिंतनीय

Supreme Court: Criminalization of politics is a matter of concern

Supreme Court

Supreme Court : चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट के भरपूर प्रयासों के बावजूद राजनीति का अपराधीकरण नहीं रूक पा रहा है जो चिंता की बात है। राजनीति का अपराधीकरण रोकने के लिए जो नियम कानून बनाएं गए है उसमें भी धूर्त राजनेता कोई न कोई रास्ता ढूंढ ही निकालते है। बिहार देश का एक ऐसा राज्य है, जिसने विकास कम और बाहुबली नेताओं का उदय ज्यादा देखा है. फिर चाहे वो बाहुबली नेता अनंत सिंह हों, सूरजभान सिंह, सुनील पांडेय या फिर रामा सिंह हों. इन बहुबली नेताओं के नाम से आज भी बिहार के लोगों में एक डर पैदा होता ह। माया मैगजीन के 31 दिसंबर 1991 के एक कवर पेज पर बाहुबली पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह बंदूकधारी गुर्गों के साथ कुर्सी पर बैठे तस्वीर छपी थी.

उनके हाथ में एक रिवॉल्वर है और कवर पर लिखा है ये बिहार है। इन्हीं बहुबलियों में से एक आनंद मोहन सिंह बीते 15 सालों से बिहार की जेल में बंद हैं। सत्ता में रहने वाली राजनीतिक पार्टियां तो इसके लिए कानून में भी संशोधन कर देती है। ऐसा ही बिहार में हुआ है जहां एक बाहुबली नेता आनंद मोहन को जेल से रिहा कराने के लिए कानून में संशोधन कर दिया गया। सांसद रह चुके आनंद मोहन पर एक दलित आईएएस अधिकारी की हत्या कराने का आरोप लगा था। जिसके लिए उसे आजीवन कारावास की सजा दी गई थी। जेल में वह पिछले डेढ़ दशक से बंद है।

लोकसभा चुनाव के पूर्व इस बाहुबली नेता की मदद लेने के लिए बिहार सरकार ने कानून में संसोधन कर दिया और उक्त बाहुबली नेता सहित २७ अपराधियों की जेल से रिहाई का रास्ता साफ कर दिया। अब इस मामले को लेकर बवाल मच गया है। बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी बिहार सरकार के इस फैसले का विरोध कर रही है लेकिन बिहार सरकार यह तर्क दे रही है कि अन्य राज्यों की सरकारों ने भी इसी तरह कानून में बदलाव कर कई अपराधियों को रिहा कराया था इसलिए इसमें कोई गलत बात नहीं है। वास्तव में हर राजनीतिक पार्टी जब सत्ता में होती है तो अपने चुनावी लाभ के लिए अपराधियों को या तो पैरोल पर बाहर कराती है या उनकी सजा माफ कराती है।

यहंां तक कि कानून में बदलाव भी कर देती है। इन राजनीतिक पार्टियों के लिए चुनाव जीतना ही सबसे महत्वपूर्ण होता है और इसके लिए वे किसी भी हद तक नीचे गिरने से कुरेज नहीं करतीं। इस मामले में सभी राजनीतिक पार्टियो कोई भी राजनीतिक पार्टी दूध की धुली हुई नहीं है सभी एक ही थैली के चट्टे बट्टे है। हर पार्टियों में बहुबलियों, दागियों और अपराधिक पृष्ठ भूमि वाले नेताओं की भरमार है। दागियों से किसी को कोई दिक्कत नहीं है।

यदि उन्हे चुनाव (Supreme Court) में लाभ मिलता है तो उनके लिए दाग अच्छे है। जिस तेजी से राजनीति का अपराधीकरण हो रहा उसे देखते हुए कोई ताज्जुब नहीं होगा जब आने वाले समय में अपराधी ही प्रजातंत्र के मंदिरो में जा बिराजेंगे। अब समय आ गया है कि राजनीति का अपराधीकरण रोकने के लिए केन्द्र सरकार, चुनाव अयोग और सर्वोच्च न्यायालय कड़े से कड़े कदम उठाए ताकि राजनीतिक शुचिता बनी रहे और जिन्हे जेल की सलाखों के पीछे होना चाहिए वे प्रजातंत्र के मंदिरों में प्रवेश न कर पाएं।

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