State Economy : धान बना राजनीति का खेल, छिपा हुआ नियम और शर्तो का मेल |

State Economy : धान बना राजनीति का खेल, छिपा हुआ नियम और शर्तो का मेल

State Economy: Paddy became a game of politics, hidden terms and conditions

State Economy

रायपुर/नवप्रदेश/प्रमोद अग्रवाल। State Economy : राज्य में अर्थव्यवस्था और राजनीतिक रीढ़ धान को लेकर राज्य सरकार कंपनी की तरह कार्य कर रही है। जहां राज्य में सर्वाधिक कीमत पर धान खरीदी का रिकार्ड बना हुआ है। वहीं धान से हो रहे नुकसान का भी रिकार्ड बनते जा रहा है। हाल ही में सरकार ने राज्य में धान की मीलिंग की दर को 40 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ाकर 120 रुपए किए जाने का निर्णय लिया है और जिसका पूरर्जोर समर्थन राईस मिल एसोशिएन ने भी किया है लेकिन वास्तविकता में इस नियम में नियम और शर्ते लागू है। यह छुपा लिया गया है।

धान की यह मिलिंग की दर राईस मिलर को उसी समय मिलेगी जब राज्य में सरकारी खरीदी किया गया धान पूरा समाप्त हो जाएगा और यदि यह धान बच जाता तो मिलर्स को सिर्फ 60 रुपए क्विंटल ही मिलेगी। इस बात को छिपाकर राज्य सरकार राजनैतिक लाभ ले रही है और मिलर्स स्वप्न लोक में विचरण कर रहे हैं। राज्य की विपक्षी पार्टी इस बात पर उसी तरह मौन है जैसे वे हर मुद़्दे पर मौन धारण किए हुए है। या तो उन्हें पता नहीं है या फिर विपक्ष इस हालत में नहीं है कि वह राज्य सरकार की इस नीति का विरोध दर्ज करा सके।

राज्य सरकार ने विगत वर्ष कुल 94 लाख टन धान (State Economy) की खरीदी की थी जिसका भूगतान किसानों को 2500 रुपए क्विंटल की दर से किया गया। यह दर पूरे देश में सबसे ज्यादा है। लेकिन खरीदे गए धान को निपटा पाने में सरकार असफल रही है। सरकार की एजेंसियां आज दिनांक तक पिछले वर्ष खरीदे गए धान का हिसाब नहीं बता पा रही है। जबकि नए धान का अनुबंध और मिलिंग प्रारंभ हो गई है और उसका चांवल भी उर्पाजित होना शुरू हो गया है। पुराने धान की स्थिति इसलिए साफ नहीं की जा रही है क्योंकि अभी तक 94 लाख टन धान में से लगभग पांच लाख टन धान शासन के पास पड़ा हुआ है।

इसीलिए जो नए धान के एग्रीमेंट किए जा रहे हैं उनमें यह शर्त लगाई जा रही है कि मिलर्स को अपनी उत्पादन क्षमता के अनुसार अलग-अलग जिलों में अलग-अलग अनुपात में नए धान के साथ पुराना धान भी उठाना पड़ेगा। इस अनुपात में सबसे ज्यादा अनुपात राज्य के चांपा जिले में है जहां पर 7:1 टन का अनुपात तय किया गया है और दुर्ग में 3:1 टन का अनुपात तय किया गया है कि मतलब यह है कि मिलर्स को नया धान तब ही मिलेगा जब वह एक टन क्षमता के पीछे कम से कम पांच सौ क्विंटल पुराना धान उठाए।

मिलर्स का मानना है कि जो पुराना धान है वह पूरी तरह से खराब हो चुका है और उसे बना चांवल व्यापारीक भाषा में पाखड़ कहलाता है जो बाजार में बिकने योग्य नहीं है और ना ही उसे सरकार उर्पाजित करती है। इसलिए इससे बना चांवल उन्हें मजबुरन शराब बनाने वाली कंपनियों को देना पड़ रहा है। जिसमें प्रति क्विंटल लगभग एक हजार रुपए का सीधा नुकसान राईस मिलर्स को हो रहा है लेकिन व्यवसायगत मजबूरी के कारण वे राज्य शासन का दबाव झेलने को तैयार हो रहे हैं।

राज्य और केन्द्र की राजनीति के बीच फंसा छत्तीसगढ़ का धान के चांवल लेने के नीति केन्द्र शासन लगातार बदलता रहा है और इस बार उसने छत्तीसगढ़ से उसना चांवल लेने से मना कर दिया है। फलस्वरूप यह तय हो गया है कि राज्य में खरीदे जा रहे धान से अरवां चांवल ही बनेगा। राज्य में जो धान हो रहा है उसमें सर्वाधीक मात्रा मोटे धान की होती है जिसका अरवा चांवल बनाना बहुत ही मुश्किल काम है। क्योंकि शासन एक क्विंटल धान पर 67 किलो चांवल का अनुपात मानता है।

जबकि मोटे धान से वास्तविकता में 52 से 55 किलो चांवल ही निकलता है। यदि ऐसा होता है तो मिलर्स को 60 रुपए प्रति क्विंटल मिलिंग रेट भी बड़ा नुकसान (State Economy) करेंगा। राज्य में एफसीआई ने कुल 60 लाख टन चांवल लेने का अनुबंध राज्य सरकार से किया है। इसके अनुसार राज्य में लगभग 91 लाख टन धान से बनने वाला चांवल एफसीआई ले लेगा।

लेकिन शेष इस वर्ष का 14 लाख टन और पिछले वर्ष का पांच लाख टन धान से बनने वाला चांवल कौन लेगा यह निर्णय अभी नहीं हुआ है और यदि यह चांवल लेने वाला कोई नहीं होगा तो पूरे धान का निपटान संभव नहीं होगा और सरकार 120 रुपए प्रति क्विंटल मिलिंग चार्ज देने से बच जाएंगी। जिसका भी सीधा नुकसान राज्य के मिलर्स को होगा।

राज्य सरकार अपने धान के निपटान के चक्कर में धान की कीमत के ब्लैंक चैक राईस मिलर्रों से ले रही है। जबकि अब तक बैंक गारंटी के आधार पर धान राईस मिलर्स को दिया जाता रहा है। यह भी कुल मिलाकर राज्य के राईस मिलर्स का शोषण है। क्योंकि अंत में जब धान की मिलिंग नहीं हो पाएंगी तब सरकार के पास तो बचे हुए धान की कीमत का चैक भी मौजूद होगा और धान भी मौजूद होगा तब वह राईस मिलर्स को बाध्य कर सकेंगी की वह जहां है जैसा है कि स्थिति में भी धान का निपटान करें।

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