Secular Politics : मुस्लिम गुंडागर्दी की फांस में फंसी सेक्युलर राजनीति |

Secular Politics : मुस्लिम गुंडागर्दी की फांस में फंसी सेक्युलर राजनीति

Secular Politics: Secular politics caught in the trap of Muslim hooliganism

Secular Politics

विष्णुगुप्त। Secular Politics : मुस्लिम गुंडावाद शब्द अप्रिय लग सकता है, बूरा लग सकता है, एकतरफा सोच लग सकती है, ऐसा लग सकता है कि इस शब्द के माध्यम से एक विशेष वर्ग को अपमानित करने या फि र एक वर्ग विशेष को बदनाम करने के लिए प्रयोग किया जा रहा है। पर जब कोई शब्द जनमानस की जुबान पर चढ़ कर बोलता है तब उस शब्द का प्रयोग अवश्यमभावी हो जाता है, उस शब्द की कसौटी पर जनमानस की भावनाओं को देखना और पड़ताल करना आवश्यक हो जाता है।

खासकर उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में मुस्लिम गुंडावाद शब्द लोगों की जुबान पर है और चुनावी राजनीति इसी शब्द पर गर्म हो रही है तथा हार-जीत की कसौटी बनाने के प्रयास हो रहे हैं। कहने का अर्थ है कि मुस्लिम गुंडावाद शब्द ही सत्ता बनायेगा और बिगाडेगा। पक्ष और विपक्ष इस शब्द को अपना हथकंडा बना चुके हैं और इस शब्द के माध्यम से ही जनता का मन जीतने की दौड़ जारी है।

उत्तर प्रदेश की जनता इस शब्द की कसौटी पर पक्ष या विपक्ष में किसका भाग्य चमकायेगी, अभी इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। पर यह सही है कि इस पर गोलबंदी होती दिखायी दे रही है। इधर दो-तीन दशकों से चुनावी राजनीति में जन समस्याओं की जगह संस्कृति से जुड़ी हुई भावनाएं और चिंताएं प्रमुख हुई हैं और हार-जीत को भी संस्कृति से जुड़ी हुई भावनाएं तय करने लगी।

चुंनावी राजनीति की हवा में मुस्लिम गुंडावाद का जहर घोलने के दोषी और कोई नहीं है बल्कि दोषी वही हैं जो अपने आप को मुस्लिम हितैषी घोषित करते हैं और दावे करते हैं कि उन्होंने मुस्लिम राजनीति को हवा देने और मुस्लिम राजनीति के बल पर जीतने की वीरता दिखायी है, इसीलिए मुस्लिम वोट बैंक पर उनका ही अधिकार है। सेक्युलर राजनीति दावे करती है कि मुस्लिम वोट बैंक पर उनका ही एक मात्र अधिकार है।

सेक्युलर राजनीति (Secular Politics) के कोई एक नहीं बल्कि कई दावेदार है। प्रदेशों के अनुसार सेक्युलर राजनीति के दावेदार बदल जाते हैं। जहां तक उत्तर प्रदेश की बात है तो यहां पर सेक्युलर राजनीति के कई दावेदार हैं। जिनमें कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी प्रमुख हैं। समाजवादी पार्टी के गठबंधन में शामिल रालोद भी मुस्लिम वोट के नये दावेदार के रूप में उभरा हुआ है। रालोद ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में जाट और मुस्लिम का नया समीकरण बनाया है।

रालोद ने पश्चिम उत्तर प्रदेश के कई प्रमुख जगहों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। रालोद के मुस्लिम उम्मीदवारों के संबंध में प्रचारित यह है कि ये बल और घृणा के बल पर राजनीति को अपना मोहरा बना कर रखते हैं और इनकी बहुसंख्यकों के प्रति घृणा भी स्पष्ट है। प्रचारित तथ्य पर उंगली उठायी जा सकती है। पर चुनाव के समय में ऐसे विषयों पर जवाब देना मुश्किल होता है।

सबसे ज्यादा प्रतिक्रिया मुख्तार अंसारी, आजम खान, नाहिद हसन, मसूद इमरान आदि को लेकर हुई है। समाजवादी पार्टी ने मुख्तार अंसारी, आजम खान और नाहिद हसन के कुनबे को उम्मीदवार बनाने की घोषणा की है। मसूद इमरान कांग्रेस छोड़कर समाजवादी पार्टी में गए पर उन्हें टिकट नहीं मिला। टिकट नहीं मिलने के बाद मसूद इमरान के बोल बड़े विभत्स थे और बहुजन समाज के लिए डरावने थे। मसूद इमरान ने कभी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बोटि-बोटि काट कर फेंकने की घोषणा की थी।

मुख्यतार अंसारी की कैसी गुंडागर्दी रही है, यह सिर्फ उत्तर प्रदेश के लोग ही नहीं बल्कि पूरा देश जानता है। जहां तक आजम खान की बात है तो इन्होंने पहले से ही उफान की राजनीति की है, विभाजन की राजनीति की है और घृणा की भी राजनीति की है। इन्होंने कभी भारत माता को डाइन कहा था। मुजफ्फरनगर दंगे में आजम खान की भूमिका नकारात्मक और खतरनाक बतायी गयी थी।

इन्होंने अपने समुदाय के आरोपियों को थाने से छुड़वाया था। जिसकी प्रतिक्रिया में मुजफ्फ रनगर में भयंकर हिंसा हुई थी और दंगे हुए थे। नाहिद हसन कैराना से विधायक हैं, इन्हें रालोद ने अपना प्रत्याशी बनाया है। कैराना में बड़ी संख्या में हिन्दुओं ने पलायन किया था। नाहिद हसन के परिजनों के संरक्षण में मुस्लिम गुंडागर्दी हिन्दुओं पर निशाना साधती थी। ऐसा आरोप आम है। समाजवादी पार्टी के संभल से सांसद शफीर्कूर रहमान घृणात्मक और तालिबानी बयान देकर बहुजन आबादी को डराने-धमकाने में लगे रहते हेैं।

योगी आदित्यनाथ मुस्लिम गुंडागर्दी पर प्रहार और नकेल डालने के लिए जाने जाते हैं। मुख्तार अंसारी से लेकर आजम खान और नाहिद हसन तक लंबी सूची हैं जो लंबे समय तक जेलों में रहें हैं। अन्य मुस्लिम गुंडे भी जेल में सड़ रहे हैं। योगी आदित्यनाथ ने बडी संख्या में मुस्लिम गुंडों का एनकांउटर कराया है। इसलिए योगी आदित्यनाथ इस उपलब्धि को अपना प्रताप मानते हैं, अपनी सरकार की जीत मानते हैं और कहते हैं कि हमने उत्तर प्रदेश की राजनीति को गुंडा मुक्त बनाया है।

योगी आदित्यनाथ फिर से जनादेश की मांग इसी को आधार बनाकर कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात अमित शाह की कैराना यात्रा की है। अमित शाह ने कैराना की गलियों में घूमघूम कर हिन्दुओं को सुरक्षा का अहसास कराया है और कहा है कि वोट डालने जरूर निकलना, हम सुरक्षा देंगे। अमित शाह की कैराना से प्रचार शुरू करने का सीधा अर्थ यह है कि मुस्लिम गुंडागर्दी के खिलाफ अपनी पार्टी की प्रतिबद्धता को दिखाना है और यह अहसास कराना है कि अगर चूक हुई तो फिर कैराना जैसी स्थिति उत्तर प्रदेश में हर जगह बनेगी।

सेक्युलर राजनीति (Secular Politics) पर एक बड़ा प्रश्न है। बड़ा प्रश्न यह है कि सेक्युलर राजनीति मुस्लिम गुडागर्दी पर ही दांव क्यों लगाती है? मुस्लिम वर्ग में एक से एक प्रतिभाशाली और शांति प्रिय लोग हैं, पर उन्हें सेक्युलर पार्टियां आगे क्यों नहीं बढ़ाती हैं? मुख्तार अंसारी, अफजल अंसारी, आजम खान, नाहिद हसन जैसों को ही अपना आईकॉन क्यों बनाती हैं? एक समय था जब ऐसों पर सेक्युलर राजनीति दांव खेलकर अपनी सरकार बना लेती थी। पर अब वह समय चला गया।

अब मुस्लिम गोलबंदी के खिलाफ भी प्रतिक्रिया होती है। दूसरे समुदाय में इस तरह की गोलबंदी के खिलाफ चिंता होती है। मुस्लिम वोटों की गोलबंदी को देखते-देखते दूसरे समुदाय के वोट भी प्रतिक्रिया में एक होते जा रहे हैं। इसलिए इस तरह की सेक्युलर राजनीति अब फायदे का नहीं बल्कि घाटे का चुनावी हथकंडा बन गया है। क्या उत्तर प्रदेश देश को चुनावी रणनीति का नया मार्ग दिखा रहा है?

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