कोण्डागांव: कचरे के ढेर से अनाज के दाने चुनकर कर रहे अपना जीवन यापन

कोण्डागांव: कचरे के ढेर से अनाज के दाने चुनकर कर रहे अपना जीवन यापन

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Ration card

Ration card: राशनकार्ड बनाने में आई दिक्कत तो बुर्जूग ने छोड़ दी आश

कोण्डागांव। Ration card: केंद्र व राज्य सरकार अपने-अपने योजनओं की अच्छाई बताते थकते तो नहीं है, वही जनता के वोटो से बनी ये दोनों ही सरकारे समय-समय पर अपने को गरीब, किसान और मजदूरों का हितौशी बताने में भी कोई कमी नहीं करती और चुनावों के दौरान इन्हें गले लगाने से भी कोई परहेज नहीं।

लेकिन जिला मुख्यालय (Ration card) के गांधीनगर वार्ड रहने वाले कुछ परिवार आज भी कचरे के ढेर से अनाज के दाने चुनने को मजबूर है। और उसी चुने हुए दानों को वे बेचकर अपने लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ बड़ी मुश्किल से कर पाते है।

राष्ट्रीय राजमार्ग पर नारंगी नदी के किनारे हमेशा कुछ लोग भूसा आदि को कचरे के ढेर में इसे खराब समझकर फेक जाते है। और इसी कचरे के ढेर से गरीब तबके के लोग अपने लिए रोटी की तलाश करते रोजाना सुबह से शाम तक देखा जा सकता है।

हम बात कर रहे है सूबाय बाई उसने बताया कि, घर वो स्वंय और उसका पति रहते है। परिवार के पास खेती किसानी की जमीन नहीं होने के चलते वे पहले कूली-मजूदरी करते थे, लेकिन अब बूढ़ापा के चलते वे काम करने में अपने को असमर्थ पाते है।

लेकिन जीवन चलाने के लिए कही काम मिलने पर चले भी जाते है, और इस बीच जब समय बचता है तो वे पुल के किनारे कचरे के इस ढेर में पहुंचकर अपने लिए अनाज का जुगाड़ करने में लग जाते है।

बुजूर्ग दंपत्ति के साथ ही अन्य लोग भी पहुंचते है

बुजूर्ग ज्ञानसिंह व उसकी पत्नी सुबाई ने बताया कि, वे लॉकडाउन के पहले अन्य जगह मजदूरी करने गए थे। लेकिन जब वहॉ से आए तो पता चला कि, राशनकार्ड से उनका नाम ही कट गया है।

इसके बाद वे अधिकारी-कर्मचारियों से कार्यालयों में मिलते रहे, लेकिन जब कार्ड नहीं बन पाया तो वे थक गए और राशन कार्ड (Ration card) बन पाने की आश छोड़कर वे इसी तरह से अपना जीवन यापन करने में जुट गए। उन्होने बताया कि, वृद्वा पेंशन भी नहीं मिल रहा।

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