Quad Conference : क्वाड सम्मेलन में दिखा भारत का प्रभाव

Quad Conference : क्वाड सम्मेलन में दिखा भारत का प्रभाव

Quad Conference: India's influence was visible in the Quad Conference

Quad Conference

नीरज मनजीत। Quad Conference : मंगलवार को टोक्यो जापान में क्वाड देशों के शिखर सम्मेलन में भारत के नज़रिए से दो बातें साफ़ तौर पर उभरकर सामने आईं, पहली–वैश्विक बिरादरी के सभी ताक़तवर मुल्क भारत को एक तेजी से उभरती हुई महाशक्ति के रूप में देख रहे हैं। दूसरी–क्वाड समूह में भारत को एक भरोसेमंद लीडर का सम्मान दिया जा रहा है। क्वाड (क्वाड्रिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग यानी चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता) समूह में चार देश–ऑस्ट्रेलिया, जापान, भारत और अमेरिका– शामिल हैं।

जापान की मेजबानी में इन देशों के प्रमुख एंथोनी अल्बनीज़, फोमियो किशिदा, नरेन्द्र मोदी और जो बाइडेन ने क्वाड सम्मेलन में हिस्सा लिया। क्वाड की स्थापना जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने 2007 में अमेरिका के उपराष्ट्रपति डिक चेनी, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री जॉन हावर्ड और भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सहयोग से की थी। शुरुआत में इसका उद्देश्य इंडो-पैसिफि क रीजन में समुद्री रास्तों से आपसी व्यापार को आसान बनाने का था। साथ ही जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निबटना, स्वतंत्र-खुला-हिन्द-प्रशांत महासागर क्षेत्र और वैश्विक लोकतंत्र को मजबूत करना भी लक्ष्य था।

शुरू में इसे एक सांस्कृतिक (Quad Conference) और कारोबारी संगठन की तरह पेश किया गया। किंतु जल्दी ही इसके सदस्यों के बीच सामंजस्य की कमी नजऱ आने लगी और इस पर चीन विरोधी गठबंधन होने के इल्ज़ाम लगने लगे। इस बात में कुछ सच्चाई भी थी। दरअसल हिन्द-प्रशांत इलाके में चीन की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं से जापान काफी परेशान था। हर कीमत पर जापान इस चीनी विस्तारवाद को रोकना चाहता था। ऑस्ट्रेलिया भी चीन की हरकतों से परेशान था। अमेरिका और भारत चूंकि स्वाभाविक तौर पर चीन के खि़लाफ़ हैं, इसलिए उन्हें क्वाड का महत्वपूर्ण कारक माना गया। क्वाड का गठन होते ही सरकारी चीनी मीडिया ने लगातार इसे चीन के विरुद्ध एक साजि़श बताकर प्रचारित किया।

इधर इन्हीं वर्षों में भारत की कांग्रेस सरकार का झुकाव चीन की ओर बढ़ता चला जा रहा था। नतीजतन क्वाड आगे बढऩे से पहले ठंडे बस्ते में चला गया। आखिऱ, 2017 में चीन के बढ़ते खतरे के मुक़ाबले क्वाड को पुनर्जीवित किया गया। इसके उद्देश्यों को व्यापक और स्पष्ट बनाकर एक तंत्र का निर्माण किया गया, जिसका उद्देश्य धीरे-धीरे एक नियम-आधारित न्यायसंगत अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था स्थापित करना था।

2017 में हालात पूरी तरह बदल चुके थे। दिल्ली में भाजपा सरकार थी, जो चीन का दबाव बर्दाश्त करने के मूड में नहीं थी। भारत चीन सरहद पर कई बार फ़ौजों के बीच फेस ऑफ हो चुका था। चीन की बढ़ती विस्तारवादी आक्रामकता ने तकऱीबन पूरी विश्व बिरादरी के कान खड़े दिए थे। ऐसे में क्वाड को ताक़तवर समूह के रूप में खड़ा करना सभी के लिए जरूरी था। 2017 से 2020 तक क्वाड समूह के देशों के बीच मंत्री स्तरीय कूटनयिक वार्ताओं के साथ सैन्य अभ्यास भी हुए। आखिऱ सितंबर 2021 में राष्ट्रपति जो बाइडेन की मेजबानी में वाशिंगटन में पहला शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया।

पूरी दुनिया की निगाहें इस सम्मेलन के नतीजों पर टिकी हुई थीं। व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने सम्मेलन से पहले कहा कि जलवायु परिवर्तन की चुनौती और स्वतंत्र-खुला हिन्द-प्रशांत महासागर इस वार्ता का मुख्य एजेंडा है। साथ ही क्षेत्रीय और आपसी रिश्तों को मजबूत बनाने तथा आपसी कारोबार पर भी चर्चा होगी। इधर चीन ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे “दक्षिण एशिया का नाटो” करार दे दिया। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान का कहना था कि इस गुटबाजी से क्षेत्रीय ताकतों के बीच तनाव बढ़ेगा। ज़ाहिर है कि इस शिखर सम्मेलन के बाद दोनों पक्षों में तलवारें खिंच चुकी थीं।

उसी हफ़्ते ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका ने मिलकर एक नए रणनीतिक संगठन “आसुक” का ऐलान भी कर दिया। घोषित तौर पर चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव” का मुकाबला करने के लिए इसका गठन किया गया है। साफ़ था कि चीन पर रणनीतिक-सामरिक-मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना ही इन समूहों का लक्ष्य था। टोक्यो में दूसरे शिखर सम्मेलन में क्वाड समूह ज़्यादा मुखर अंदाज़ में चीन के खि़लाफ़ आक्रामक दिखा।

जो बाइडेन ने टोक्यो पहुँचते ही चीन को कड़ी चेतावनी दी कि अगर चीन ने ताइवान पर हमला किया तो अमेरिका सैन्य हस्तक्षेप करने से नहीं चूकेगा। बाइडेन के बयान से अब बिल्कुल साफ़ हो गया है कि चीन चाहे कुछ भी कहे क्वाड समूह बड़े ही मज़बूत इरादों से चीनी विस्तारवाद का प्रतिरोध करने के लिए खड़ा हो चुका है। दक्षिण कोरिया और वियतनाम को क्वाड का आमंत्रित सदस्य बनाकर उसे क्वाड प्लस नाम दिया गया है।

एक और महत्वपूर्ण बात (Quad Conference) टोक्यो में उभरकर आई–रूस यूक्रेन युद्ध के बीच भारत की तटस्थ प्रभावशाली कूटनीति को पूरी वैश्विक बिरादरी में सम्मान की नजऱ से देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच जबरदस्त भरोसेमंद केमिस्ट्री देखी गई। स्पष्ट है कि क्वाड, नाटो, अमेरिका और यूरोपीय यूनियन भारत की दूरदृष्टा विदेशनीति की गहराई को समझ चुके हैं। चीन पर दबाव बनाए रखने के लिए क्वाड को भारत की जरूरत है। और भारत को रूस की भरोसे की दोस्ती की जरूरत है, ताकि चीन से तनाव के बीच रूस को तटस्थ रखा जा सके।

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