National Achievement : राष्ट्रीय उपलब्धि है टीकाकरण के आंकड़ें

National Achievement : राष्ट्रीय उपलब्धि है टीकाकरण के आंकड़ें

National Achievement: National Achievement Vaccination Statistics

National Achievement

डॉ. ओ.पी. त्रिपाठी। National Achievement : वैश्विक महामारी कोरोना पर नियंत्रण के लिए कोविड वैक्सीनेशन का विकास एवं उत्पादन भारतवर्ष के खाते में दर्ज है। उसी तरह टीकाकरण की सालगिरह भी कोई कम बड़ी उपलब्धि नहीं है। बीती 16 जनवरी को कोरोना रोधी टीकाकरण अभियान का एक वर्ष बीत गया। टीका बनने से टीकाकरण शुरू होने तक का सफर आसान नहीं रहा। खासकर विपक्ष के कई राजनीतिक दलों ने जिस तरह स्वदेशी वैक्सीन को लेकर अफवाहें व भ्रम फैलाये, उसको देखते हुए टीकाकरण की विशाल संख्या और एक वर्ष की सफलता ऐतिहासिक ही है। सफर फिर भी जारी है।

देखा जाए तो इस अभियान पर राजनीतिक टीका-टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि एक ही साल में भारत की 138 करोड़ से अधिक की आबादी को दोहरा टीकाकरण कोई आसान लक्ष्य नहीं है। यह कोरोना सरीखी वैश्विक महामारी के खिलाफ एक महायुद्ध था, जिसे लडऩे के अस्त्र-शस्त्र भी दुनिया के पास नहीं थे। महान और योग्य वैज्ञानिकों ने कोरोना रोधी टीकों के अनुसंधान किए, नतीजतन कोरोना की लगातार लहरों के बावजूद दुनिया बहुत कुछ सुरक्षित है। संक्रमण फैला है, तो उसका उपचार भी संभव हुआ है।

भारत सरीखे विविध संस्कृतियों, रीति-रिवाजों और रूढियों के देश में 18 जनवरी तक देश में कुल वैक्सीनेशन डोज की संख्या 158 करोड़ से ज्यादा हो चुकी है। कोरोना वायरस के खिलाफ टीकाकरण अभियान का एक साल पूरा होने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने देशवासियों को बधाई दी थी। एक साल में देश की 93 प्रतिशत वयस्क आबादी को टीके की पहली डोज लगाई जा चुकी है जबकि 69.8 प्रतिशत से अधिक का पूर्ण टीकाकरण किया जा चुका है।

क्या ये आंकड़े राष्ट्रीय उपलब्धि नहीं हैं? इस मामले में मोदी सरकार की जितनी तारीफ की जाए वो कम है। थोड़ी चिंता करने वाली बात यह है कि देश में 8 फीसदी आबादी ऐसी है, जिसे अब तक एक भी टीका नहीं लगा। वहीं, 31 फीसदी आबादी ऐसी है, जिन्हों अब तक दोनों टीके नहीं लगे। जो दो टीके भारतीयों को लगाए जा रहे हैं, कमोबेश उनमें से कोवैक्सीन पूरी तरह ‘स्वदेशी’ है। क्या यह अनुसंधान प्रशंसा के लायक नहीं है? कोवैक्सीन को न केवल विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मान्यता दी है, बल्कि कई देश उस टीके का इस्तेमाल भी कर रहे हैं।

करीब 90 फीसदी लोग टीके की एक खुराक ले चुके हैं। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि पहली खुराक शरीर को एंटीबॉडीज बनाने के लिए तैयार करती है, जबकि दूसरी खुराक एंटीबॉडीज तैयार करती है। उसी से मानव-शरीर को एक हद तक ‘संजीवनी’ प्राप्त होती है। देश में हिमाचल ही एकमात्र राज्य है, जहां 100 फीसदी आबादी को दोनों खुराकें दी जा चुकी हैं, लेकिन उसके अलावा, जम्मू-कश्मीर, मध्यप्रदेश, गुजरात और कर्नाटक ऐसे पांच सर्वश्रेष्ठ राज्य हैं, जहां सर्वाधिक टीकाकरण (National Achievement) किया गया है। वे शीघ्र ही 100 फीसदी का ‘मील का पत्थर’ स्थापित कर सकते हैं। सवालिया यह है कि पंजाब और झारखंड सबसे पिछड़े राज्य क्यों हैं?

कुल 12 राज्यों में करीब 2.80 करोड़ लोगों ने दूसरी खुराक नहीं ली। पंजाब में तो 50 लाख से अधिक लोग इस जमात में हैं। नतीजतन आज करीब 11 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्होंने टीके की एक भी खुराक नहीं ली है। वे संक्रमण के हर दौर में ‘सुपर स्प्रेडर’ साबित हो सकते हैं। टीके को लेकर आज भी लोगों में मतिभ्रम है कि टीके सेे उनकी मौत हो सकती है! टीका उन्हें नपुंसक या विकलांग बना सकता है! टीके में सूअर की चर्बी या गाय के बछड़े का खून है! येे भ्रांतियां बेबुनियाद हैं। एक लेखक के साथ-साथ में एक चिकित्सक भी हूं। मैं और मेरा परिवार टीके की दोनों खुराकें ले चुका है, और सामान्य और स्वस्थ है। ऐसे में एक चिकित्सक के नाते भी मैं ये बात पूरे दावे के साथ कह सकता हूं कि टीका कोरोना से लडऩे में पूरी तरह सक्षम है।

सरकार को इन गलतफहमियों के निवारण पर, विभिन्न स्तरों से, काम करना होगा, क्योंकि कोरोना संक्रमण फैलने की रत्ती भर भी गुंजाइश छोड़ी नहीं जा सकती। संक्रमण के खिलाफ सबसे ‘सुरक्षित कवच’ टीका ही है। अब तो किशोर बच्चों में भी टीका लगाया जा रहा है। 15 से 18 साल तक के किशोरों के लिए वैक्सीनेशन अभियान प्रोग्राम की शुरुआत इस महीने की तीन तारीख को शुरू किया गया है। इन सबके बीच एक और बड़ी जानकारी सामने आ रही है। देश में मार्च महीने से 12 से 14 साल तक के बच्चों का भी कोविड टीकाकरण शुरू किया जा सकता है। टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह के प्रमुख एनके अरोड़ा ने यह जानकारी दी है।

भारत के सबसे बड़े राज्य यूपी में अब तक 22 करोड़ से भी अधिक लोगों को कोविड टीके की दोनों डोज दी जा चुकी है। देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में वैक्सीनेशन की रफ्तार अबतक अन्य राज्यों के मुकाबले सबसे तेज रहा है। यहां वैक्सीनेशन के एक साल पूरे होने तक 22,59,26,829 टीके की दोनों डोज लगाई जा चुकी है। उत्तर प्रदेश में एक साल में 14,33,14,725 को पहली खुराक और 8.67 करोड़ से अधिक का पूर्ण टीकाकरण किया जा चुका है। वहीं राज्य में 3 जनवरी से शुरू हुए बच्चों के लिए वैक्सीनेशन में यूपी में 15-18 वर्ष के आयु वर्ग के 5,137,027 बच्चों को वैक्सीनेशन किया जा चुका है।

कोरोना वैक्सीनेशन में यूपी सबसे तेज रहा है। राज्य के अबतक 30 जिलों में 95 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन की पहली खुराक दी जा चुकी है। वहीं राज्य के छह जिलों लखनऊ, गौतमबुद्ध नगर, शाहजहांपुर, गाजियाबाद, मैनपुरी और इटावा में 100 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन की पहली खुराक दी जा चुकी है। योगी सरकार के कोरोना प्रबंधन की तारीफ देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में हो रही है। जिस तरह योगी सरकार ने कोरोना महामारी पर प्रभावी रोक लगायी है, उस मॉडल को अन्य प्रदेशों को भी अपनाना चाहिये।

टीकाकरण की सालगिरह (National Achievement) पर सरकार और आम नागरिक को दोबारा मंथन करना चाहिए कि कोरोना जैसी महामारी में एक टीका ही हमें कितनी सुरक्षा दे सकता है? टीकाकरण का इतिहास करीब 200 साल पुराना है और इस अवधि में टीकों ने ही हमें चेचक, प्लेग, पोलियो सरीखी महामारियों से बचाया है। अब कोरोना के प्रति सचेत और सतर्क होकर सभी पात्र नागरिकों को टीका लगवाना चाहिए। सरकार ये टीके सभी को नि:शुल्क लगा रही है।

(-चिकित्सक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार।)

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