Lok Sabha Elections : विपक्षी एकता में कवायद पेंच

Lok Sabha Elections : विपक्षी एकता में कवायद पेंच

Lok Sabha Elections: An exercise in opposition unity

Lok Sabha Elections

Lok Sabha Elections : 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा की कड़ी चुनौती का सामना करने के लिए सभी विपक्षी पार्टियां एकजुट होने की कवायद कर रही है लेकिन प्रधानमंत्री पद को लेकर पेंच फंस रहा है। विपक्षी पार्टियों का हर दूसरा नेता खुद को प्रधानमंत्री पद का प्रबल दावेदार मानकर चल रहा है। यही वजह है कि विपक्षी एकता की कोशिश अभी तक किसी मुकाम पर नहीं पहुंच पाई है जिसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि इस तेल का मुंडेर का पेड़ पर चढ़ पाना नामुकिन नहीं तो बहुत मुश्किल जरूर है।

आम तौर पर पिछले कई लोकसभा चुनावओं में यूपीए और एनडीए के बीच ही मुकाबला होता रहा है। बीच-बीच में कभी तीसरे मोर्च के गठन की भी कोशिश हुई लेकिन तीसरा मोर्चा निष प्रभावी ही साबित हुआ है। इसके बाद भी कुछ क्षेत्रिय दलों के क्षत्रप एक बार फिर यूपीए से अलग हटकर तीसरा मोर्चा बनाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन वे यह भूल रहे है कि आज भी कांग्रेस देश की दूसरी सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी है जिसकी देश की तीन प्रदेशों में सरकारें है। कांग्रेस को दरकिनार करके यदि तिसरा मोर्चा बन भी गया तो वह भाजपा की चुनौती का सामना नहीं कर पाएगा। इस बारे में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार ने एकदम सही कहा है कि कांग्रेस को अलग करके तीसरा मोर्चा भाजपा की चुनौती का सामना नहीं कर सकता। गौरतलब है कि विपक्षी एकता के सबसे बड़े सुत्रधार शरद पवार ही है।

जिन्होंने हालहिं में अडानी मामले को लेकर जेपीसी की मांग का विरोध भी कर दिया है। उनका कहना है कि जब सुप्रीम कोर्ट इस मामले को देख रहा है तो जेपीसी मांग करना उचित नहीं है। शरद पवार ने भले ही ऐसा बयान देकर विपक्षी दलों के नेताओं की हवा निकाल दी हो लेकिन उन्होंने विपक्षी दलों को आइना दिखा दिया है। यदि शरद पवार यह कहते है कि बगैर कांग्रेस के विपक्षी पार्टियां भाजपा की चुनौती का सामना नहीं कर सकती तो उनकी बात में दम है। उनकी बात को गंभीरता से लेना चाहिए।

क्षेत्रिय पार्टियों को अपनी-अपनी डपली पर अपना अपना राग अलापने की जगह कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के साथ महागठबंधन बनान चाहिए, तभी वे भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के सामने कड़ी चुनौती पेश कर पाएंगे। भावि प्रधानमंत्री पद को लेेकर अभी से विवाद करना या अपनी खिचड़ी अलग पकाना ठीक नहीं है। यह तो वहीं बात हो गई है की सुत ना कपास और जुलाहों में लम ला। बेहतर होगा कि शरद पवार की नसीहत को तीसरा मोर्चा बनाने के ख्वाहिश मंद नेता गंभीरता से लेंगे तभी वे 2024 में कुछ कर पाएंगे। वरना इनकी आपसी लड़ाई का भाजपा को ही फायदा मिलना लगभग तय है।

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