Law Students Attendance Rule : दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला – ‘अटेंडेंस की कमी पर परीक्षा से रोकना गैरज़रूरी’, BCI को नियम बदलने के निर्देश
Law Students Attendance Rule
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी भी लॉ स्टूडेंट को सिर्फ अटेंडेंस की कमी के आधार पर परीक्षा (Law Students Attendance Rule) देने से नहीं रोका जा सकता। अदालत ने इस आदेश के साथ बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) को निर्देश दिया है कि वह अनिवार्य उपस्थिति संबंधी नियमों में संशोधन करे ताकि छात्रों को अनावश्यक मानसिक दबाव का सामना न करना पड़े।
यह आदेश सुषांत रोहिल्ला आत्महत्या मामले से जुड़े स्वत: संज्ञान के तहत दिया गया है – जो कई वर्षों से कानून विद्यार्थियों के अधिकारों और विश्वविद्यालयों की कठोर नीतियों पर सवाल उठाता रहा है।
“कठोर अटेंडेंस नीति छात्रों की ज़िंदगी से बड़ी नहीं” – हाईकोर्ट
जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह की एकल पीठ ने टिप्पणी की कि “किसी युवा जीवन की हानि, उपस्थिति नियमों (Law Students Attendance Rule) की कीमत पर नहीं हो सकती।” अदालत ने कहा कि कई बार अत्यधिक सख्त उपस्थिति मानदंड विद्यार्थियों में मानसिक तनाव, अवसाद और आत्महत्या जैसी घटनाओं को जन्म देते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शैक्षणिक संस्थान अब यह सुनिश्चित करें कि पढ़ाई में अनुशासन तो रहे, लेकिन वह छात्रों की भलाई पर भारी न पड़े।
‘कम कठोर नियमों की तलाश जरूरी’ – अदालत की नसीहत
हाईकोर्ट ने कहा कि कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को चाहिए कि वे छात्रों को परीक्षा से रोकने की बजाय, ऐसे लचीले और मानवीय विकल्प तलाशें, जिनसे पढ़ाई की गुणवत्ता भी बनी रहे और विद्यार्थियों पर अनावश्यक दबाव (Law Students Attendance Rule) भी न पड़े। कोर्ट ने यह भी कहा कि फिजिकल अटेंडेंस की अनिवार्यता पर पुनर्विचार और संशोधन जरूरी है, क्योंकि आज ऑनलाइन और हाइब्रिड लर्निंग दोनों ही शिक्षा के अहम हिस्से बन चुके हैं।
“हर लॉ कॉलेज बनाए शिकायत निवारण समिति”
दिल्ली हाईकोर्ट ने देश के सभी लॉ कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को UGC गाइडलाइंस के तहत शिकायत निवारण समिति (Grievance Redressal Committee) बनाना अनिवार्य किया है। इससे छात्रों को अपने संस्थानों के फैसलों पर आपत्ति जताने और राहत पाने का अवसर मिलेगा।
साथ ही कोर्ट ने कहा कि कोई भी संस्थान BCI द्वारा तय न्यूनतम उपस्थिति सीमा से अधिक कठोर नियम लागू नहीं कर सकता। यानी, अब कोई कॉलेज यह नहीं कह सकेगा कि 75% के बजाय 90% अटेंडेंस जरूरी है।
कानून शिक्षा में बदलाव का संकेत
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला भारत में लीगल एजुकेशन सिस्टम के मानवीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम है। अब कॉलेजों को छात्रों की मानसिक स्थिति और व्यक्तिगत परिस्थितियों को भी ध्यान में रखना होगा। यह निर्णय आगे चलकर न केवल लॉ कॉलेजों बल्कि अन्य व्यावसायिक शिक्षण संस्थानों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है।
