Navpradesh Indepth : Kisan bill 2020 पर भाजपा के अनुषांगिक संगठन भाकयू को भी आपत्ति, पढ़ें हर बिल के विरोध के पीछे की कहानी, कृषि मंत्री चौबे बोले- ईस्ट इंडिया...

Navpradesh Indepth : Kisan bill 2020 पर भाजपा के अनुषांगिक संगठन भाकयू को भी आपत्ति, पढ़ें हर बिल के विरोध के पीछे की कहानी, कृषि मंत्री चौबे बोले- ईस्ट इंडिया…

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Kisan Bill 2020 पर भारतीय किसान संघ, छग के संगठन महामंत्री तुलराम ने कहा- यह नहीं देता किसानों को एमएसपी की गारंटी

रायपुर/नवप्रदेश। किसानों से जुड़े तीन बिल (kisan bill 2020)  लोकसभा में पारित हो गए। और इनका विरोध (protest against kisan bill) भी बदस्तूर चलते आ रहा है। कोरोना काल में किसानों के हित का बताते हुए केंद्र सरकार की ओर से जून माह में ही इन बिलों से संबंधित अध्यादेश जारी किए गए थे। अध्यादेश जारी होने के साथ ही देशभर के किसान संगठनों ने इसका विरोध (protest against kisan bill) शुरू कर दिया था।

यहां तक कि भाजपा से जुड़े किसान संगठन  भारतीय किसान यूनियन ने भी इन अध्यादेशों पर आपत्ति जताते हुए कुछ सुझाव दिए थे। लेकिन केंद्र सरकार की ओर से इस विरोध को दरकिनार कर इन अध्यादेशों से जुड़े तीन किसान बिल (kisan bill 2020) लोकसभा में पेश कर दिए गए, जो पारित भी हो गए। नतीजा ये हुआ कि भाजपा के  सहयोगी दल शिरोमणी अकाली दल की सांसद व केंद्र में खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर ने बिलों के विरोध (protest against kisan bill) में अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

छत्तीसगढ़ के कृषिमंत्री रविंद्र चौबे (minister ravindra choubey) ने भी कहा है कि इन विधेयकों के खिलाफ राज्य सरकार कोर्ट जाएगी। कुछ अन्य राज्य भी कोर्ट जाने  की तैयारी में हैं।

भाजपा संसादों ने बताया किसानों के हित में, किसान संगठनों ने जताया विरोध   

इस पूरे घटनाक्रम के बीच नवप्रदेश ने छत्तीसगढ़ के किसान संगठनों व सांसदों से इन बिलों (kisan bill 2020) पर उनकी राय जाननी चाही। भाजपा सांसदों ने इन बिलों को किसानों के हित में बताया। वे इनकी तारीफ करते नहीं थके। वहीं किसान संगठनों ने इनका पूरजोर विरोध करते हुए कहा इन बिलों के कानून बन जाने के बाद  किसान और गर्त में चला जाएगा और बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों का नौकर  बनकर रहा जाएगा। भाजपा के आनुषांगिक संगठन-भारतीय किसान यूनियन की छत्तीसगढ़ इकाई के संगठन मंत्री श्री तुलाराम ने कहा कि इन बिलों से किसानों का शोषण होगा।

उन्होंने बताया कि संघ की ओर से प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी व प्रदेश के भाजपा सांसदों को पत्र लिखकर इन बिलों में संशोधन की मांग संसद में उठाने के लिए अपील की गई थी। कांग्रेस की राज्यसभा सांसद छाया वर्मा को भी पत्र लिखा गया था। लेकिन भाजपा सांसदों ने पार्टी लाइन को पकड़े रखा और किसानों  की लाइन को छोड़ दिया। जबकि छाया वर्मा ने नवप्रदेश  से बातचीत में कहा कि जब बिल राज्यसभा में पेश किया जाएगा तब वे इस पर अपनी बात रखेंगी।

बिल में समर्थन मूल्य का प्रावधान नहीं : भाकयू

भाजपा  के अनुषांगिक भारतीय किसान संगगठन (भाकयू) की छत्तीसगढ़ इकाई के संगठन मंत्री तुलाराम ने कहा कि किसान बिल (kisan bill 2020) में किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी का कोई प्रावधान नहीं है। जबकि बिल में होना ये चाहिए था कि इसमें यह उल्लेख होता कोई भी व्यापारी एमएसपी से कम पर किसान से उसकी उपज  नहीं खरीदेगा। जब तक एमएसपी की गारंटी नहीं होती तब तक बिल से  किसानों का शोषण ही होगा। उन्होंने कहा कि बिल में इस बात का प्रावधान है कि किसान किसी भी राज्य में अपनी फसल  बेच सकता है। लेकिन हकीकत ये है कि देश के अधिकतर किसान अल्प व सीमांत हैं। ऐसे में  वे अपनी उपज बेचने के लिए दूसरे राज्यों में कैसे जा सकते हैं। 

तीन बिल व इनके किसानों के साथ ही आम लोगों पर पड़ने वाले संभावित प्रतिकूल प्रभाव

(जैसा कि अखिल भारतीय  क्रांतिकारी किसान सभा के राज्य सचिव तेजराम विद्रोही ने बताया)

  • कोरोना काल के नमक जैसी घटनाएं हो जाएंगी आम

आवश्यक वस्तु संशोधन बिल : केंद्र सरकार  के किसान  बिल (kisan bill 2020) किसान व उपभोक्ता विरोधी हैं। आवश्यक वस्तु संशोधन बिल में सरकार ने  दाल , आलू, प्याज अनाज आदि का आवश्यक वस्तु अधिनियम से बाहर कर इसकी स्टॉक की सीमा समाप्त कर दी है। इससे व्यापारी इन चीजों की जमाखोरी करेगा और चीजों की कृत्रिम कमी निर्माण कर अनाप शनाप दाम में चीजें बेचेगा। जैसा कि हम कोरोना काल में देख चुके हैं। कुछ व्यापारियों ने कोरोना काल बहाना बनाकर नमक की कृत्रिम कमी निर्माण कर दी थी। जिससे नमक ऊंचे दामों पर बिका। जब व्यापारियों पर नियंत्रण ही नहीं होगा तो ऐसी घटनाए नए कानून के बाद आम हो जाएंगी।  

  • किसानों को मंडी के बाहर माल बेचने की रोक तो अब भी नहीं

कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल : यह बिल कहता है कि अब किसान मंडी के बाहर व्यापारी को और यहां तक कि दूसरे राज्यों में भी अपनी उपज बेचने के लिए स्वतंत्र होगा। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि किसान को अपनी उपज कहीं भी बेचने पर रोक तो अब भी नहीं है। ऐसा कोई कानून भी नहीं है। यह 1972 के मंडी एक्ट व मंडी व्यवस्था को खत्म करने की साजिश है। जिससे मंडियों के तोलैया हमाल, रेजा आदि बेरोजगार हो जाएंगे। जो बड़े व्यापारियों मनमानी ढंग से व्यापार की छूट देता है।

जबकि मंडी  व्यवस्था में किसानों को इस बात की सुविधा थी कि वह तय कोटे पर एमएसपी  पर  बेची गई फसल के बाद बची फसल को मंडी में बेच लेता था। यहां उसे अपनी उपज की राशि का भुगतान हो जाता था। लेकिन नया कानून  बनने के बाद व्यापारियों से किसान को उसकी राशि के भुगतान की गारंटी भी नहीं रह जाएगी। जबकि इस बिल में यह प्रावधान होना चाहिए था कि मंडी में एमएसपी से कम पर कोई भी व्यापारी किसान की उपज की बोली नहीं लगाएगा।  

-कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से किसानों को ही नुकसान, छग-गुजरात में सामने आ चुके उदाहरण 

मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (संरक्षण एवं सशक्तिकरण बिल): इसे कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग  भी कहा जाता है। इसके तहत अब बड़े औद्योगिक घराने किसानों से अनुबंध कर उनसे अपने मर्जी की  खेती करा सकेंगे। संबंधित किसान को इससे मिलने वाली राशि पहले ही तय कर ली जाएगी। सरकार का कहना है कि इससे किसानों को काफी फायदा होगा। कॉन्ट्रैक्ट कराने वाले समूह को ज्यादा लाभ होने पर उसका हिस्सा किसानों को भी मिलेगा। लेकिन हकीकत यह है कि अब तक ऐसे मामलों में किसानों को नुकसान ही झेलना पड़ा है। छत्तीसगढ़ के महासमुंद में 2019 में एक फर्म ने किसानों से सुगर फ्री आर्गेनिक चावल की खेती कराई।

किसानों को बीज व आर्गेनिक खाद भी उपलब्ध कराया। किसानों ने फसल को फर्म को सौंप दिया, लेकिन जब राशि के लिए गए तो फर्म ने यह कह दिया कि आपके चावल में रसायन की मात्रा पाई गई है इसलिए भुगतान नहीं होगा। आप अपनी राशि के बदले चावल लेकर चले जाएं। मैं (तेजराम विद्रोही) खुद इसका भुक्तभोगी हूं। वहीं गुजरात में एक चिप्स कंपनी ने अपने पेटेंट किए हुए आलू एफएल 1867 की खेती किसानों से कराई। जब फसल निकली तो चिप्स कंपनी ने स्टोरेज के अभाव का हवाला देते हुए किसानों से कुछ दिन फसल अपने पास ही रखने को कहा। जब किसानों ने यह आलू दूसरी जगह बेच दिया तो कंपनी ने अपने पेटेंट के उल्लंघन का हवाला  देते हुए कोर्ट में ऐसे किसानों से 1 करोड़ 5 हजार के जुर्माने के लिए अर्जी लगा दी। काफी जद्दोजहद व सरकार के हस्तक्षेप  के बाद यह मामला सैटल हो सका था।         

किसानों को मिलने वाली सब्सिडी पर बड़े औद्योगिक घरानों की नजर, इसलिए ही बिल :  साहू 

छत्तीसगढ़ संयुक्त किसाना मोर्चा के संचालक मंडल के सदस्य बेगेंद्र सोनबेर साहू ने कहा कि बड़े औद्योगिक घरानों की नजर अब किसान को खाद, बीज आदि पर मिलने वाली सब्सिडी  पर है। और उक्त बिलों के जरिए इसका रास्ता साफ हो जाता है। आज कोरोना संकट में केवल कृषि क्षेत्र ही ग्रोथ कर रहा है। इसलिए कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग जैसा प्रावधान केंद्र सरकार ने किया है। यह  किसान को उसकी ही भूमि पर मजदूर बना देगा। रहा सवाल दूसरे राज्यों में अनाज बेचने का तो इसमें किसान को जगह-जगह इंस्पेक्टर राज का सामना करना होगा। किसान को तमाम तरह के सवाल पूछकर उसे डकैत घोषित कर दिया जाएगा। फिर किसान को खुद को निर्दोष साबित करने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी होगी।

बिलों से मंडी सिस्टम खत्म हो जाएगा, अडाणी-अंबानी जैसे उद्योगपति तय करेंगे रेट : डॉ. सुनीलम

जाने-माने किसान नेता व पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम ने कहा कि ये बिल (kisan bill 2020) मंडी सिस्टम को खत्म करने की साजिश हैं। बिहार में मंडी सिस्टम को पहले ही खत्म किया जा चुका है। आलम ये है कि वहां अन्य राज्यों की तुलना में किसान को उसकी उपज का काफी कम रेट मिल रहा है। नए विधेयकों के कानून बनने के बाद कृषि क्षेत्र में अडाणी-अंबानी जैसे औद्योगिक घरानों का बोल-बोला होगा। वे ही किसानों की उपज के रेट तय करेंगे। अभी  ही किसानों को उनकी उपज का एमएसपी नहीं मिल  पा रहा है तो व्यापारियों को छूट देने वाले इन बिलों से किसानों को एमएसपी कैसे  मिलेगा। मंडी में कम से कम किसान को उसकी राशि मिलने की गारंटी रहती है। लेकिन इसके बाहर यदि कोई व्यापारी ज्यादा दाम देकर उपज खरीद भी ले तो वह किसान को राशि का भुगतान करेगा ही, इसकी क्या गारंटी होगी। क्योंकि तब उसके ऊपर किसी का भी नियंत्रण नहीं होगा। 

ईस्ट इंडिया कंपनी के वक्त जैसा हुआ था वैसा होने का खतरा : मंत्री चौबे

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प्रदेश के कृषि मंत्री रवींद्र चौबे (minister ravindra choubey) ने कहा कि इन बिलों से ईस्ट इंडिया कंपनी के वक्त जैसा अन्याय देश के साथ हुआ वैसा ही अन्याय किसानों के साथ होने का खतरा है। जब ये बिल लाए गए थे तभी हमने अपनी आपत्तियों से केंद्र सरकार को अवगत करा दिया था। केंद्रीय कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से बातचीत के दौरान भी हमने बिलों में सुधार की मांग की थी। लेकिन इन बिलों में सुधार नहीं हुआ। इसलिए अब गैर भाजपा शासित राज्यों की सरकारें इन बिलों के विरोध में कोर्ट जाएंगी। इसको लेकर पंजाब के किसान नेताओं से भी बातचीत चल रही है। केंद्र सरकार इन बिलों के जरिए कॉर्पोरेट घरानों को बढ़ावा देकर प्राइवेट मंडिया स्थापित करना चाहती है। कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग को कानूनी जामा पहनाया जा  रहा है। जिसमें किसानों की सुरक्षा का कोई प्रावधान नहीं है। ईस्ट इंडिया कंपनी  ने जैसा अन्याय  कभी देशवासियों के साथ किया था वैसी ही स्थिति किसानों के सामने खड़ी हो जाएगी।

प्राइवेट मंडियों में किसान को उसकी राशि की भुगतान  की गारंटी कौन देगा। अभी तो मंडियों में मंडी लाइसेंस की तहत व्यापारी सीमाओं में हैं, जिससे किसानों का हित सुनिश्चित होता है। नियमों के उल्लंघन करने पर संबंधित व्यापारी पर मंडी एक्त के तहत कार्रवाई होती है। लेकिन प्राइवेट मंडियों में कार्रवाई कौन सुनिश्चित करेगा। कोरोना काल में मंदी  से अछूते कृषि क्षेत्र पर यदि कॉर्पोरेट सेक्टर अपना कब्जा जमाना चाहता है तो इस षड्यंत्र को केंद्र सरकार  को समय रहते भांप लेना चाहिए। उम्मीद है कि हरसिमरत कौर के इस्तीफे के बाद सरकार इस पर पुनर्विचार करेगी।

भाजपा सांसदों का तर्क – किसानों के फायदे के लिए बिल क्रांतिकारी

तीनों बिल किसानों के हित में केंद्र सरकार की क्रांतिकारी पहल है। विरोध करने वाले लोग अभी इन्हें समझ नहीं पा रहे हैं। जहां तक शिरोमणी अकाली दल की सांसद हरसिमरत कौर के मंत्रिपद से इस्तीफे का सवाल है तो यह उनकी पार्टी की सोच। सिर्फ उन्हींकी सोच के आधार पर  सरकार व एनडीए नहीं चल सकते। पंजाब में सबसे ज्यादा मंडी टैक्स 8.5 फीसदी  वसूला  जाता है। वो लोग पंजाब के नजरिए से सोच रहे हैं। छत्तीसगढ़  के भाजपा सांसद दिल्ली से लौटने के बाद इस मामले पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे।

-विजय बघेल, सांसद भाजपा

विरोध केवल राजनीति के लिए हो रहा है। इन बिलों से किसानों को फायदे ही फायदे हैं। वे कहीं भी  अपनी फसल बेचने  के लिए स्वतंत्र होंगे। पहले इस संबंध के नियम नहीं थे। अब एमएसपी भी मिलेगा केवल दुष्प्रचार  के लिए किसान बिलों का विरोध किया जा  रहा है। जहां तक बात पंजाब की है तो वहां किसानों से सबसे ज्यादा मंडी टैक्स वसूला जाता है। लेकिन अब नए विधेयकों से किसानों की आमदनी बढ़ेगी। भारतीय किसान संघ  ने बलों का विरोध नहीं किया है। सिर्फ सुझाव दिए हैं। सुझाव देने का अधिकार सभी को है।

-सुनील सोनी, सांसद, भाजपा     

 

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