Jagdeep Dhankhar Wins : जगदीप धनखड़ की जीत के मायने |

Jagdeep Dhankhar Wins : जगदीप धनखड़ की जीत के मायने

Jagdeep Dhankhar Wins: Meaning of Jagdeep Dhankhar's victory

Jagdeep Dhankhar Wins

Jagdeep Dhankhar Wins : उपराष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में एनडीए के उम्मीद्वार जगदीप धनखड़ ने 74 प्रतिशत सांसदों का समर्थन प्राप्त कर एक बड़ी जीत दर्ज की है। उन्होंने यूपीए की उम्मीद्वार मार्गेट अल्वा को पराजीत किया है। लोक सभा और राज्यसभा में भाजपा और उसके सहयोगी दलों की संख्या को देखते हुए जगदीप धनखड़ की जीत सुनिश्चित थी।

किन्तु उन्हें और ज्यादा वोट मिले। बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमों मायावती ने राष्ट्रपति चुनाव की तरह ही उपराष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए भी एनडीए प्रत्याशी (Jagdeep Dhankhar Wins) का समर्थन किया वहीं बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने उपराष्ट्रपति पद के लिए हुए मतदान से अपनी पार्टी को अलग कर के यूपीए की राह और आसान कर दी।

तृणमूल कांग्रेस के दो सांसदों ने पार्टी लाईन से बाहर जाकर जगदीप धनखड़ को वोट दिया। इसी तरह वाईएसआर कांग्रेस और तेलगुदेशम के सांसदों का भी जगदीश धनखड़ को वोट मिला। शिवसेना के उद्धव गुट ने भले ही यूपीए प्रत्याशी मार्गेट अल्वा को वोट दिया लेकिन शिवसेना शिंदे गुट के सांसदों का वोट एनडीए के पक्ष में गया। इस तरह जगदीप धनखड़ ने भारी मतों से जीत दर्ज की। उनकी जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वे ओबीसी वर्ग के है।

राष्ट्रपति पद के लिए आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मु की ऐतिहासिक जीत के बाद अब उपराष्ट्रपति पद के लिए ओबीसी वर्ग के जगदीप धनखड़ की जीत पीएम मोदी की सोशल इंजिनियरिंग को दर्शाता है। उन्होंने दोनों ही चुनाव में एक तीर से कई निशाने साधकर विपक्ष को करारी शिकस्त दी है। जिस तरह राष्ट्रपति चुनाव में पूरा विपक्ष एनडीए के खिलाफ एक जुट नहीं हो पाया उसी तरह उपराष्ट्रपति चुनाव में भी विपक्षी पार्टियों की एक जुटता धराशाही हो गई।

जगदीप धनखड़ ओबीसी वर्ग के है साथ ही जाट समुदाय से आते है। जिनकी संख्या हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा है। इस तरह जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति बनवाकर केन्द्र मोदी ने जाट समुदाय के वोटों पर भी अपनी पकड़ मजबूत कर दी है जो हालहि में हुए किसान आंदोलन के चलते थोड़ी कमजोर पड़ी थी।

बहरहाल जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar Wins) का प्रचंड मतों से उपराष्ट्रपति चुना जाना विपक्ष के लिए एक बड़ा झटका है। जो पहले ही हताश और निराश चल रहा है। उसकी एकजूटता भी कमजोर पड़ रही है। जिसका उसे आगामी लोकसभा चुनाव में खामियाजा भूगतना पड़ सकता है।

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