भारत की शहरी अवसंरचना का एजेंडा: एक वैश्विक मानक की स्थापना

भारत की शहरी अवसंरचना का एजेंडा: एक वैश्विक मानक की स्थापना

India's urban infrastructure agenda: setting a global benchmark

India's urban infrastructure agenda

सोलोमन अरोकियाराज
India’s urban infrastructure agenda: शहर आर्थिक महाशक्तियों की तरह हैं, जो विश्व के जीडीपी में लगभग 80प्रतिशत का योगदान देते हैं। भारत भी अलग नहीं है, अकेले मुंबई और दिल्ली जैसे शहर कुछ देशों से अधिक जीडीपी पैदा करते हैं। अपने शहरों को समृद्ध और बेहतर बनाए रखने के लिए, हमें नयी अवसंरचना का निर्माण करने तथा वर्तमान अवसंरचनाओं को और बेहतर बनाने की जरूरत है। भारत के शहरों में निवास करने वाले लोगों की संख्या 2036 तक 600 मिलियन तक पहुंच जाने की उम्मीद है। यह भारी वृद्धि लाखों नागरिकों को सेवाओं की सुविधा देने और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए एक अवसर प्रदान करती है, लेकिन इसके साथ ही एक चुनौती भी पेश करती है।


इसलिए, हमें भविष्य के लिए उपयुक्त शहरी अवसंरचना के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण संसाधन समर्पित करने की आवश्यकता है। इसे स्वीकार करते हुए, भारत की जी-20 अध्यक्षता ने “भविष्य के शहरों का वित्तपोषण: सतत, समावेशी और सुदृढ़” विषय का चयन किया तथा नई दिल्ली नेताओं के घोषणापत्र ने ‘भविष्य के शहरों के वित्तपोषणज् विषय पर सिद्धांतों के एक समूह का समर्थन किया, ताकि शहरों के संदर्भ में एक सतत अवसंरचना निवेश इकोसिस्टम को आकार देने के लिए विकसित व विकासशील देशों के बीच एक साझी समझ को बढ़ावा दिया जा सके।


चूंकि, शहरी अवसंरचना को वित्तपोषित करने में सरकारों की क्षमता की अपनी सीमाएं हैं, इसलिए निजी पूंजी को आकर्षित करने की आवश्यकता बहुत महत्वपूर्ण हो गई है। तदनुसार, भारतीय अध्यक्षता के तहत जी-20 ने सतत, सुदृढ़ और समावेशी शहरी अवसंरचना के वित्तपोषण के परिप्रेक्ष्य में शहरों का मार्गदर्शन करने के लिए कुछ बहुत ही प्रासंगिक और उच्च गुणवत्ता वाली रिपोर्टों का समर्थन किया है। इस रणनीति में- शहरी नियोजन सुधार, स्वयं के राजस्व को बढ़ाना, निवेश दक्षता को अधिकतम करना, शहरों की साख में सुधार करना, निवेश योग्य परियोजनाओं को लक्षित करने वाले हरित, सामाजिक और सस्टेनेबल बॉन्ड जैसे अभिनव वित्तपोषण उपायों का उपयोग करना, नियामकीय व्यवस्था को सक्षम बनाना, जीआईएस जैसे सुविधाजनक उपकरणों का उपयोग व क्षमता वृद्धि करना और संस्थागत तैयारीशामिल हैं।


कई भारतीय शहरों ने दिखाया है कि अभिनव राजस्व सृजन और वित्तपोषण विकल्प की विभिन्न संभावनाएं मौजूद हैं। मध्य प्रदेश में रीवा नगर निगम (आरएमसी) अवसंरचना पर प्रति वर्ष औसतन 350 करोड़ रुपये खर्च करता है। इस धनराशि का केवल 34 प्रतिशत नगर पालिका के स्वयं के स्रोत राजस्व से आता है और शेष का वित्तपोषण केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न योजनाओं और अनुदानों के माध्यम से किया जाता है। हालांकि, अवसंरचना के लिए इस अल्प राजस्व योगदान के बावजूद, शहरी परिदृश्य के पुनर्घनत्व के आधार पर रणनीतिक शहरी योजना का लाभ उठाते हुए, आरएमसी ने हाल ही में पीपीपी तरीके से एक सफल शहरी अवसंरचना परियोजना- न्यू रीवा बस स्टैंड – का कार्यान्वयन किया है।

इस परियोजना में, 3.5 एकड़ की बंजर भूमि को एक वाणिज्यिक परिसर के निर्माण के साथ एक आधुनिक बस स्टैंड में बदल दिया गया, जिससे 10.5 करोड़ रुपये का प्रीमियम और 35 लाख रुपये का वार्षिक किराया सुनिश्चित हुआ। इसी प्रकार, भारत के अन्य शहर भी शहरी अवसंरचना में सुधार के लिए अभिनव राजस्व प्रारूप का सफलतापूर्वक लाभ उठाने में सक्षम हुए हैं, जैसे ग्रेटर विशाखापत्तनम नगर निगम (जीवीएमसी) द्वारा कार्यान्वित शोधित अपशिष्ट जल परियोजना से औद्योगिक जल आपूर्ति। इस परियोजना से जीवीएमसी अतिरिक्त राजस्व के रूप में प्रति वर्ष लगभग 30 करोड़ रुपये की आय प्राप्त करने में सक्षम हुआ है।

यह आय औद्योगिक उपयोग के लिए निजी क्षेत्र के साथ रणनीतिक सहयोग से शोधित अपशिष्ट जल की बिक्री से प्राप्त होगी। परियोजना के लिए वित्तपोषण को सुव्यवस्थित करने के क्रम में, जीवीएमसी को लगातार राजस्व संग्रह और सेवा अदायगी मानक प्रदर्शित करना पड़ा, जिससे इसकी साख बढ़ी तथा एए की क्रेडिट रेटिंग हासिल करने में मदद मिली। इसी तरह, सूरत शहर ने भी वित्त वर्ष 2022 में औद्योगिक पुनरुपयोग के लिए शोधित अपशिष्ट जल की बिक्री से 140 करोड़ रुपये के एक नए राजस्व स्रोत का सृजन किया। स्थायी वित्तपोषण के अग्रणी के रूप में, गाजियाबाद नगरपालिका 150 करोड़ रुपये मूल्य के हरित बॉन्ड जारी करने वाला भारत का पहला यूएलबी बन गया है। इन सभी उदाहरणों से पता चलता है कि बेहतर शहरी नियोजन और अभिनव वित्तपोषण प्रारूप का उपयोग करके, छोटे शहर भी अवसंरचना के विकास और अपने नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए निजी निवेशकों को आकर्षित कर सकते हैं।


जी-20 परिणाम दस्तावेज बहुत प्रासंगिक हैं और ये हमारे शहरों को उच्च गुणवत्ता वाली अवसंरचना के विकास में मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं। भारत के अनुभवों ने भी वैश्विक अवसंरचना के एजेंडे में बहुत योगदान दिया है। अटल कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन (अमृत), स्मार्ट सिटी मिशन, सभी के लिए आवास (पीएमएवाई), मेट्रो रेल परियोजनाएं, आवागमन आधारित विकास, स्मार्ट सिटी मिशन के तहत एकीकृत नियंत्रण और आदेश केंद्र, विभिन्न शहरों द्वारा नगरपालिका बॉन्ड जारी करना और 2018 में तैयार की गयी भारत की राष्ट्रीय शहरी नीति रूपरेखा (एनयूपीएफ) आदि के कार्यान्वयन से सीखे गए सबक ने चर्चा को काफी समृद्ध किया है और समूह का मार्गदर्शन इस संदर्भ में किया है कि विभिन्न आकारों के व विकास के विभिन्न चरणों वाले शहरों की आकांक्षाओं को पूरा करने के क्रम में विभिन्न क्षेत्रों के शहरों के लिए एक साझे दृष्टिकोण को किस प्रकार विकसित किया जा सकता है।


स्थायी वित्त जुटाने हेतु अन्य साधनों का लाभ उठाने के लिए, यह जरूरी है कि भारतीय शहर अपनी संस्थागत क्षमता बढ़ाएं, एक डिजिटल लेखा प्रणाली अपनाएं, निवेश योग्य परियोजनाओं को तैयार करें तथा शहरी अवसंरचना परियोजनाओं के लिए निजी पूंजी को आकर्षित करने के क्रम में अनुकूल वातावरण के निर्माण के लिए अपनी साख और राजस्व संग्रह दक्षता में सुधार करें। यह बदलाव, अवसंरचना की कमी को पूरा करने और शहरी अवसंरचना विकास की गति को तेज करने के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध होगा।

(श्री सोलोमन अरोकियाराज भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं और श्री अमन गर्ग भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी हैं। ये लेखक-द्वय के निजी विचार हैं।)

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