संपादकीय: आईएनडीआईए टूट की कगार पर
INDIA on the verge of collapse: 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को कड़ी चुनौती देने के लिए यूपीए ने अपना कुनबा बढ़ाते हुए आईएनडीआईए के नाम से एक नया गठबंधन बनाया था। लोकसभा चुनाव में आईएनडीआईए को भारी सफलता भी मिली थी इस गठबंधन के प्रमुख घटक दल कांग्रेस ने लोकसभा में अपनी सीटों की संख्या बढ़ाने में सफलता हासिल की थी।
कांग्रेस को 99 सीटों पर जीत मिली थी और पूरे एक दशक बाद वह लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद हासिल करने में कामयाब हुई थी। वहीं समाजवादी पार्टी ने भी इस गठबंधन के चलते पहली बार 37 सीटें जीतने में सफलता पाई थी। और वह कांग्रेस के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। इस नये गठबंधन ने भले ही भाजपा को तीसरी बार सरकार बनाने से नहीं रोका।लेकिन भाजपा की सींटे जरूर कम कर दी।
भाजपा ने अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा छू पाई वहीं अब की बार चार सौ पार का नारा लगाने वाले एनडीए को भी पिछले दो चुनाव के मुकाबले कम सीटों पर संतोष करना पड़ा। इस तरह आईएनडीआईए का गठन कांग्रेस सहित इसमें शामिल सभी विपक्षी पार्टियों के लिए बेहद लाभदायक रहा। किन्तु इसके बाद हुए हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान आईएनडीआईए में शामिल घटक दलों के बीच मतभेद उभरने लगे जो नई दिल्ली विधानसभा चुनाव की घोषणा होने तक मनभेद में बदल गये।
आम आदमी पार्टी ने नई दिल्ली विधानसभा चुनाव अकेले अपने दम पर लडऩे की घोषणा करके कांग्रेस को बड़ा झटका दे दिया और हरियाणा का हिसाब बराबर कर दिया। गौरतलब है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने भी एकला चलो रे कि नीति अपनाई थी और आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन करने से इंकार कर दिया थ।
नतीजतन आम आदमी पार्टी ने हरियाणा की सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े कर दिये थे और इन दलों की लड़ाई में तीसरी पार्टी भाजपा को फायदा मिल गया था और वह तीसरी बार हरियाणा में अपनी सरकार बनाने में कामयाब हो गई। इसी का बदला लेते हुए आम आदमी पार्टी ने नई दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से किनारा कर लिया और दोनों ही पार्टियों के बीच तल्खी इस कदर बढ़ी कि आम आदमी पार्टी के नेताओं ने कांग्रेस को आईएनडीआईए से अलग करने की मुहिम चला दी।
अब स्थिति यह है कि बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष तेजस्वी यादव ने यह बयान दे दिया है कि आईएनडीआईए का गठन सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए ही था और लोकसभा चुनाव निपटने के बाद यह गठबंधन खत्म हो गया है। इसी तरह का बयान नेशनल कांफ्रेन्स के नेता और जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी दिया है उनका कहना है कि लोकसभा चुनाव के बाद आज तक आईएनडीआईए की एक भी बैठक नहीं हुई है ऐसे में इस गठबंधन का कोई औचित्य नहीं रह जाता।
गौरतलब है कि हाल ही में आईएनडीआईए के नेतृत्व को लेकर भी इसके घटक दलों के बीच विवाद खड़ा हो गया था। तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने कांग्रेस की जगह बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को आईएनडीआईए की कमान सौपने की मांग उठाई थी। जिसका अन्य घटक दलों के नेताओं अखिलेश याद,व लालू यादव, शरद पवार और उद्धव ठाकरे आदि ने समर्थन किया था। इसके बाद से ही आईएनडीआईए में नेतृत्व के प्रश्न को लेकर कांग्रेस और अन्य घटक दलों के बीच खींचतान शुरू हो गई थी। कुल मिलाकर आईएनडीआईए अब टूट की कगार पर पहुंच गया है।
वैसे भी यह गठबंधन कभी मजबूत नहीं रहा है। बंगाल में ममता बनर्जी ने लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस और वामपंथी दलों के साथ सीटों के बटवारे से इंकार कर दिया था। इसी तरह हरियाणा विधानसभा चुनाव में भी यह गठबंधन टूट गया था ऐसी स्थिति में वाकई अब इस गठबंधन का कोई औचित्य नहीं रह गया है। जिस गठबंधन में शामिल हर पार्टी अपनी अपनी ढफली पर अपना अपना राग अलापती रही हो वह गठबंधन सिर्फ नाम का ही रह गया है।
दरअसल इस गठबंधन के लिए शुरू से ही विवाद की स्थिति बनी रही थी। जिस नीतीश कुमार ने आईएनडीआईए का गठन करने में सबसे अग्रणी भूमिका निभाई थी और अलग-अलग विचारधारा वाली राजनीतिक पार्टियों को एकजुट किया था उसी नीतीश कुमार को इस गठबंधन में महत्व नहीं दिया गया। कायदे से नीतीश कुमार ही इस गठबंधन का संयोजक बनने के प्रबल दावेदार थे लेकिन उनकी उपेक्षा की गई। नतीजतन नीतीश कुमार इस गठबंधन से बाहर हो गये और एनडीए में शामिल हो गये। नीतीश कुमार का यह कदम आईएनडीआईए के लिए पहला और सबसे बड़ा झटका था। उसके बाद से लगातार यह गठबंधन कमजोर पड़ता गया और अब इसके टूटने का खतरा मंडराने लगा है।
उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव के पूर्व जब यह गठबंधन बना था उसी समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह भविष्यवाणी कर दी थी कि लोकसभा चुनाव निपटते ही आईएनडीआईए भी खत्म हो जाएगा। एनडीए के अन्य नेता इस बेमेजल गठबंधन को ठगबंधन कहकर इसकी खिल्ली उडाते रहे हैं। बहरहाल आईएनडीआईए में शामिल विपक्षी पार्टियों के नेता आईएनडीआईए के भविष्य को लेकर जो बयान दे रहे हैं उससे अब यह बात स्पष्ट हो गई है कि आईएनडीआईए एक कागज की नाव बनकर रह गया है। जिसका दूर तक और देर तक चल पाना असंभव हद तक कठिन काम है। देखना होगा कि कब आईएनडीआईए को खत्म करने की अधिकृत घोषणा होती है या फिर इस गठबंधन को कोई नेतृत्व कब तक मिलता है।