संपादकीय : गरीबी के अभिशाप से मुक्ति की दिशा में ठोस कदम

संपादकीय : गरीबी के अभिशाप से मुक्ति की दिशा में ठोस कदम

Editorial: Concrete steps towards freedom from the curse of poverty

navpradesh

navpradesh Editorial: भारत में पिछले एक दशक के दौरान गरीबों को गरीबी रेखा से बाहर निकालकर देश को गरीबी के अभिशाप से मुक्ति दिलाने की दिशा में जो ठोस कदम उठाए गए हैं। उसके सुखद परिणाम सामने आने लगे है। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक दशक में 24.8 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले है। 2013-14 में गरीबी दर 29.17 प्रतिशत थी जो अब घट कर 11.28 प्रतिशत रह गई है। इस अवधि में 17.89 प्रतिशत की कमी आई है।

गौरतलब है कि गरीबों की स्थिति में सुधार का आंकलन शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन शैली जैसे मानदंडों के आधार पर तय किया जाता है। भारत में आजादी के बाद से गरीबी एक जटिल समस्या रही है। आजादी के बाद से तात्कालीन सरकारों ने गरीबों को केन्द्र बिंदु में रखकर ही तमाम योजनाएंं और कार्यक्रम क्रियान्वित किये लेकिन गरीबी हटने की जगह और भी बढ़ती गई। इस मामले में यही मसल चरितार्थ हुई की दर्द बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों दवा की गरीबों के कल्याण के लिए बनाई जाने वाली योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती रही।

गरीबी हटाओ के नारे तो खूब लगे लेकिन गरीबी हटाने की दिशा में कोई कारगर पहल नहीं की गई। इस बीच गरीबों को मुफ्त में अथवा न्यूनतम दरों पर अनाज देने सहित कई लोक लुभावन घोषणाएं की गई जिसका गरीबों को लाभ तो मिला लेकिन गरीबों को मिलने वाली इन सुविधाओं का अनुचित फायदा उठाने के लिए फर्जी गरीबों की बाढ़ सी आ गई। नतीजतन गरीबी रेखा से बाहर निकलने के बाद भी लोग बीपीएल कार्डधारी बने रहे और ऐसे फर्जी गरीब आज भी कथरी ओढ़कर मजे से घी खा रहे हैं। ऐसे फर्जी गरीबों की पहचान बेहद जरूरी है।

वास्तव में ऐसे फर्जी गरीब वास्तविक गरीब हितग्राहियों के सबसे बड़े दुश्मन हैं। जो उनके हिस्से को हड़प रहे हैं। केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनने के बाद ऐसे लाखों फर्जी गरीबों के बीपीएल कार्ड रद्द भी किए गए हैं लेकिन आज भी बड़ी संख्या में साधन संपन्न लोग भी बीपीएल कार्डधारी बने हुए हैं। गरीबी के इस अजीबों गरीब गोरखधंधे े का खात्मा निहायत जरूरी है। इसके लिए केन्द्र सरकार को ही ठोस कदम उठाने होंगे तभी बात बनेगी। राज्य सरकारें तो इस मामले में कोई ठोस कदम उठाना भी नहीं चाहती।

सभी के अपने अपने वोंट बैंक हैं। इसलिए राजनीतिक पार्टियां भी फर्जी गरीबों के खिलाफ किसी भी तरह की कोई कार्यवाही करने से कतराती है। बीपीएल कार्ड भी असानी से बन जाता है। शहरी क्षेत्रों में संबंधित वार्ड पार्षदों और ग्रामीण क्षेत्रों में पंच सरपंच की मिलीभगत से बड़ी आसानी से बीपीएल कार्ड बन जाते हैं। क्योंकि अभी तक गरीबी रेखा की परिभाषा ही स्पष्ट नहीं हो पाई है। इसलिए गरीबी का गोरखधंधा बेरोकटोक जारी है।

अब तो स्थिति यह है कि बंगाल और नई दिल्ली जैसे राज्यों में घुसपैठियों और रोहिंग्याओं के भी थोक के भाव में बीपीएल कार्ड बन गए हैं। जब तक ऐसे कुपात्रो को अपात्र घोषित नहीं किया जाएगा। तब तक गरीबों की संख्या में उल्लेखनीय कमी नहीं आएगी। वैसे केन्द्र सरकार ने पिछले १ दशक में गरीबों के कल्याण के लिए जो योजनाएं लागू की हैं और उसे पारदर्शी बनाया है। उससे वास्तविक गरीबों को समुचित लाभ मिलने लगा है।

गरीबों के बैंक खाते खोले गए हैं। जिसमें सीधे राशि आ जाती है। इस लिए अब सरकारी मदद में बिचौलिए सेंध नहीं लगा पा रहे हैं। नतीजतन गरीबों के जीवन स्तर में लगातार सुधार परिलक्षित हो रहा है। सरकार वास्तविक गरीबों के हितों का संरक्षण जरूर कर रही है। लेकिन उनके हक पर डाका डालने वाले फर्जी गरीबों के खिलाफ उतनी तेजी से अभियान नहीं चला रही है जैसी अपेक्षित है। उम्मीद की जानी चाहिए कि फर्जी गरीबों की पहचान कर उन्हें गरीबी रेखा की सूची से बाहर करने के लिए केन्द्र सरकार कड़े कदम उठाएगी।

JOIN OUR WHATS APP GROUP

डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *