संपादकीय: राष्ट्र के माथे की बिंदी है राष्ट्रभाषा हिंदी

संपादकीय: राष्ट्र के माथे की बिंदी है राष्ट्रभाषा हिंदी

Editorial: National language Hindi is the dot on the forehead of the nation,

National language Hindi

National language Hindi: हर साल की तरह इस बार भी 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाया गया। भारत में भी विश्व हिंदी दिवस पर कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए गए। जिसमें ङ्क्षहदी भाषा के विकास पर बल दिया गया। गौरतलब है कि दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में हिंदी का पांचवां स्थान है न सिर्फ भारत के सबसे बड़े हिस्से में हिंदी सर्वजन की भाषा है। बल्कि नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान सहित विश्व के लगभग आठ देशों में हिंदी बोली जा रही है। दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका में भी हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार हो रहा है।

वहां लगभग 7 लाख लोग हिंदी बोलते हैं। अफ्रीकी देशों में भी हिंदी को अपनाया जा रहा है। दुनिया के कई देशों के विश्व विद्यायलयों में हिंदी में पाठ्यक्रम चल रहे हंै। किन्तु दुख की बात है कि हमारे अपने ही देश में आजादी के 7 दशकों के बाद भी हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा नहीं मिल पाया है। आज भी हमारे देश में ऐसे लोगों की बहुत बड़ी संख्या है जो हिंदी की जगह अंग्रेजी को ही ज्यादा महत्व देते हैं। कहते हैं न कि अंग्रेज चले गये लेकिन अंग्रेजी छोड़ गए हमारे देश की एक बड़ी आबादी आज भी अंग्रेजी के मोहपाश में जकड़ी हुई है। ऐसे लोग हिंदी भाषा को न सिर्फ हेय दृष्टि से देखते हैं।

बल्कि हिंदी को अनपढ़ और जाहिलों की भाषा मानते हैं। इन लोगों की मानसिकता बदलने की जरूरत है। जो अपने बच्चों को हिंदी माध्यम की पाठशालाओं में प्रवेश दिलाने की जगह इंग्लिश मीडियम स्कूलों में पढ़ाना अपने शान की बात समझते हैं। हिंदी का किसी से बैर नही हैं। लेकिन भारत की राष्ट्र भाषा बनने के लिए हिंदी के अलावा ऐसी और कोई भाषा नहीं। जिसे दुनिया में 80 करोड़ से ज्यादा लोग बोलते हैं। आजादी के आंदोलन के समय ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा दिलाने की मुहिम शुरू की थी।

महात्मा गांधी का कहना था कि जिस देश की कोई राष्ट्र भाषा नहीं होती वह देश गूंगा कहलाता है। आजादी के बाद हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने की दिशा में कोई कारगर पहल इसलिए भी नहीं हो पायी क्योंकि अहिंदी भाषी दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में इसका जमकर विरोध हुआ। यही वजह है कि आज भी हिंदी अपने ही घर में बेगानी बनी हुई है। भारतीय संविधान ने हिंदी को राज्य भाषा का दर्जा जरूर दे दिया है। केन्द्र सरकार हिंदी और अंगे्रजी दोनों में ही कामकाग कर सकते हैं। वहीं विभिन्न राज्यों मेें वहां की क्षेत्रीय भाषाओं में कामकाज की अनुमति दी गयी है।

किन्तु सरकारी काम काज में भी ङ्क्षहदी की जगह अंग्रेजी को ही ज्यादा अहमियत दी जाती है। हिंदी के विकास के लिए हिंदी दिवस और ङ्क्षहदी पखवाड़ा जैसे आयोजन कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है। हिंदी के विकास के लिए जैसी कारगर पहल होनी चाहिए थी। वैसी आज तक नहीं हो पायी है। ऐसे में ङ्क्षहदी को जो भारत के माथे की ङ्क्षबदी कही जाती है। उसे आखिर कब राष्ट्र भाषा का दर्जा मिलेगा। यह एक बड़ा यक्ष प्रश्न बन गया है।

अब समय आ गया हैै कि हम क्षेत्रवाद और भाषावाद के झगड़े से ऊपर उठकर राष्ट्रवाद पर चिंतन करें और हिंदी को राष्ट्र भाषा का सम्मान दिलाने के लिए एकजुट होकर समवेत प्रयास करें। हिंदी सबसे मीठी नम्र और ओजस्वी भाषा है। जिसकी श्रेष्ठता को अब विदेशों में भी स्वीकारा जा रहा है। हिंदी के बेशुमार शब्दों को अंगे्रजी में भी अपने में समाहित किया है। हिंदी भाषा की बढ़ती स्वीकार्यता यही दर्शाती है।

सिर्फ हिंदी ही एक मात्र ऐसी भाषा है जो अंग्रेजी का विकल्प बन सकती है। बशर्ते इसका अहिंदी भाषी राज्यों में व्यापक स्तर पर प्रचार प्रसार किया जाए। जब तक हिंदी को राष्ट्र भाषा का सम्मान नहीं मिल जाता। तब तक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का सपना साकार नहीं हो पाएगा जो हिंदी को राष्ट्र भाषा के रूप में देखना चाहते थे। पूरे देश को एक सूत्र में बांधे रखने की शक्ति सिर्फ हिंदी भाषा में ही है। इसलिए अब सरकार को चाहिए की हिंदी के चौमुखी विकास के लिए वह कारगर कदम उठाए।

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