Chanakya Niti In Hindi:जीवन जीने की कला - चाणक्य

Chanakya Niti In Hindi:जीवन जीने की कला – चाणक्य

That's why, Chanakya said, Feet, should not touch,

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Chanakya Niti In Hindi: अच्छे आचरण के बिना ज्ञान व्यर्थ है और अज्ञानी मनुष्य का तो जीवन ही व्यर्थ है। सेनापति के बिना सेना व्यर्थ है और पति के बिना पत्नी का जीवन व्यर्थ है।

यहां आचार्य चाणक्य कहते हैं कि ज्ञान की उपयोगिता उसके अनुरूप जीवन जीने तथा आचरण करने में है। ज्ञान के बिना जीवन उसी प्रकार व्यर्थ है जिस प्रकार सेनापति के बिना सेना का अस्तित्व और पति के बिना पत्नी का जीवन व्यर्थ है।

Chanakya Niti In Hindi: किसी वृद्ध पुरूष की पत्नी का देहान्त हो जाये तो अपने जीवन साथी के वियोग से उसे इतना दुःख होगा कि वह मृत समान हो जायेगा। किसी का कमाया धन उसके स्वयं के पास न रहकर बन्धु बान्धवों के पास चला जाये तो वह वापस नहीं मिलेगा, धनहीन होने का वह दुःख भी उसके लिए मृत्यु समान ही है। भोजन की पराधीनता भी मृत्यु तुल्य ही दुःख देने वाली है। इन तीनों विपत्तियों को वृद्ध पुरूष घुट-घुट कर सहन करते हुए ही मृत्यु को अतिशीघ्र प्राप्त हो जाता है।

Chanakya Niti In Hindi: सद्गुण रहित व्यक्ति की सुन्दरता व्यर्थ है। दुराचारी पुरूष का अच्छे वंश (उच्चकुल) में उत्पन्न होना, आजीविका सुलभ न करने वाली विद्या और उपभोग (इस्तेमाल) में न आने वाला धन भी व्यर्थ है। इनकी न तो कोई उपयोगिता ही है न ही महत्व है।

अभिप्राय यह है कि सद्गुण रहित सुन्दरता व्यर्थ है, सुन्दर होने से ही प्रशंसा नहीं होती, कुलीन होने से ही सराहना नहीं होती। अच्छी प्रशंसा पाने के लिए मनुष्य को शालीन भी होना चाहिए। विद्या द्वारा सिद्धि प्राप्त होने में ही विद्या की सार्थकता है। उसी प्रकार धन की सार्थकता उसके उपभोग में ही है।

आचार्य चाणक्य ने सात प्राणियों के लिए एक सा संदेश दिया है, विद्यार्थी, नौकर, राहगीर, भूखा, भय से त्रस्त भण्डारी तथा द्वारपाल यदि सो रहे हों तो इन्हें निःसंकोच भाव से जगा देना चाहिए, क्योंकि इनके कर्तव्य कर्म का निर्वाह इनके जागने में है, सोने में नहीं।

इन सातों का सोना प्रमाद का सूचक और हानिकारक है, अतः इन्हें सोने से जगाने में ही कृतज्ञता मिलती है।

यदि विद्यार्थी सोयेगा तो विद्या प्राप्ति में पिछड़ जायेगा, राहगीर सोयेगा तो लुट जायेगा, भूखे और भयातुर व्यक्ति को यूं तो नींद आती नहीं, किन्तु सो रहे हों तो जगा देना चाहिए।

इसी प्रकार स्टोर के रक्षक व पहरेदार के सोने से भी हानि सम्भावित है, अतः उन्हें असमय सोने नहीं देना चाहिए।

राजा, बालक, दूसरे का कुत्ता, मूर्ख व्यक्ति, सांप, व्याघ्र और सुअर इन सात सोते हुओं को कभी नहीं जगाना चाहिए, इन्हें जगाने से मनुष्य को हानि ही होगी लाभ नहीं। इनके आक्रमण करने से अपनी रक्षा करना कठिन होगा। अतः अच्छा यही है कि यदि ये सो रहे हैं तो इन्हें सोते देखकर आगे बढ़ जाना चाहिए।

जो व्यक्ति निस्तेज है, प्रभावहीन है, न तो उसके प्रसन्न होने पर किसी व्यक्ति को धन की प्राप्ति होती है और न ही नाराजगी पर किसी को भय प्रतीत होती है। जिसकी कृपा होने पर कोई पुरस्कार न मिलता हो और न ही जो किसी को दण्ड देने का अधिकारी हो, ऐसा व्यक्ति रूष्ट भी हो जाये तो कोई चिन्ता नहीं करता।

अभिप्राय यह है कि जो व्यक्ति आपका कुछ बिगाड़ नहीं सकता तो आप उसकी परवाह क्यों करें?

आज के युग भी में आडम्बर का अपना अलग ही महत्व है। वह झूठ हो तो भी प्राणी को उसका कुछ न कुछ लाभ मिल ही जाता है। सर्प के मुख में विष न हो तो भी वह अपना फन फैला देता है, जिससे लोग भयभीत होकर पीछे हट जाते हैं। उसकी फुफकार ही दूसरों को डराने और उसकी रक्षा के लिए पर्याप्त होती है। यदि सर्प फन न फैलाये तो कोई बच्चा भी उसे मार डालेगा। इसलिए कुछ न कुछ आडम्बर करना हर प्राणी के लिए आवश्यक है।

Chanakya Niti In Hindi: इस सम्बन्ध में एक कथा प्रसिद्ध है। कहते हैं कि एक वार सर्प ने भगवान शिव से शिकायत की कि सभी व्यक्ति उससे घृणा करते हैं। शिव ने इसका कारण सर्प का सबको डसना बताते हुये कहा कि, यदि वह सबका लोकप्रिय बनना चाहता है तो डसना छोड़ दे। उसने वैसा ही किया और जब लोगों को विश्वास हो गया कि उसने सच में ही डसना छोड़ दिया है तो लोग उसे पत्थर मारने लगे। अपनी हालत से दुःखी होकर सर्प फिर भगवान शिव के पास गया और उनसे अपनी व्यथा कही तो भगवान बोले, वत्स! मैंने तुम्हें डसने से मना किया था, फुफकारने से नहीं। तुम्हें अपने बचाव के लिए यानी लोगों को डराने के लिए फुफकारना चाहिए, भले ही तुम्हारे दांत भी नष्ट हो जायें। इससे हिंसा भी नहीं होगी, और तुम्हें हानि भी नहीं होगी।

आचार्य चाणक्य का कथन है कि मलयाचल पर्वत से आने वाली वायु के स्पर्श मात्र से सामान्य वृक्ष भी चन्दन जैसे सुगन्धित बन जाते हैं। एकमात्र बांस का वृक्ष ऐसा है जो खोखला होता है और जिस पर हवा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसी तरह से आंतरिक गुणों से हीन व्यक्तियों पर सदुपदेशों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अभिप्राय यह है कि मन्द बुद्धि व्यक्तियों के न समझने पर उन्हें दोष नहीं देना चाहिए, क्योंकि समझने की शक्ति के अभाव में ही वे बेचारे चाहते हुए भी कुछ नहीं समझ पाते, क्योंकि ऐसे व्यक्तियों का मस्तिष्क बुद्धि के नाम पर खोखले बांस के समान ही होता है।

वेद आदि शास्त्र भी उसका कल्याण नहीं कर सकते, जो व्यक्ति बुद्धिहीन है। ठीक उसी तरह जैसे अन्धे व्यक्ति के लिए दर्पण भी बेकार है, क्योंकि दर्पण उसकी आंखों की ज्योति तो ला नहीं सकता।

अभिप्रायः यह है कि महान्-शास्त्र, वेद आदि जिस तरह बुद्धिमान व्यक्ति के लिए व्यर्थ की चीज हैं, ठीक उसी तरह नेत्र न होने पर व्यक्ति के लिए दर्पण भी व्यर्थ की चीज है। जबकि सामान्य व्यक्ति के लिए उक्त दोनों चीजों का अपना अलग ही महत्व है।

जिस प्राणी के पास बुद्धि है उसके पास सभी तरह का बल भी है। वह सभी कठिन परिस्थितियों का मुकाबला सहजता से करते हुए उन पर विजय पा लेता है। बुद्धिमान का बल भी निरर्थक है, क्योंकि वह उसका उचित उपयोग ही नहीं कर पाता। बुद्धि के बल पर ही एक छोटे से जीव खरगोश ने महाबली सिंह को कुएं में गिराकर मार डाला था। यह उसकी बुद्धि के बल पर ही सम्भव हो सका था।

इतने भारी शरीर वाला हाथी छोटे से अंकुश से वश में किया जाता है। सब जानते है कि अंकुश परिमाण में हाथी से बहुत ही छोटा होता है। प्रज्जवलित दीपक आसपास के अन्धकार को खत्म कर देता है। जबकि परिमाण में अन्धकार दीपक से बहुत ज्यादा विस्तृत एवं व्यापक होता है। वज्र के प्रहार से बड़े-बड़े पर्वत टूट जाते हैं। जबकि वज्र पर्वत से बहुत छोटा होता है।

अभिप्राय यह है कि अंकुश से इतने बड़े हाथी को बांधना, छोटे से वज्र से विशाल एवं उन्नत पर्वतों का टूटना, इतने घने अन्धकार का छोटे से प्रज्जवलित दीपक से समाप्त हो जाना इसी सत्य के प्रमाण हैं कि तेज ओज की ही विजय होती है। तेज में ही शक्ति रहती है। मोटे, लम्बे व ऊंचे व्यक्तियों को बलवान समझना निरर्थक है।

यह एक कटु सच्चाई है कि किसी ढंग से समझाने पर भी कोई दुष्ट सज्जन नहीं बन जाता, जैसे घी-दूध से सींचा गया, नीम का वृक्ष मीठा नहीं हो जाता।

कहने का तात्पर्य है कि जिस प्रकार दूध-घी से सींचा गया नीम का वृक्ष मीठा नहीं हो जाता, ठीक उसी प्रकार दुर्जन पुरूष को किसी भी ढंग से समझ लो, वो अपनी दुष्टता नहीं छोड़ सकता। अतः किसी भी दुष्ट पुरूष को समझाने-बुझाने तथा सुधारने की चेष्टा करना व्यर्थ है।

मानव मन हमेशा पवित्र होना चाहिए। जिसका मन अपवित्र है वह मनुष्य अनेक बार गंगा स्नान करने पर भी शुद्ध नहीं होता। ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार कि जलाये जाने के बाद भी मदिरा का पात्र शुद्ध नहीं होता।

Chanakya Niti In Hindi अभिप्राय यह है कि मदिरा पात्र आग में तपाये जाने के बाद उपरान्त यदि उसका दूसरी बार भी मदिरा सेवन के लिए उपयोग किया जाये, तो उसे तपाने का कोई लाभ नहीं होता। इसी प्रकार गंगा स्नान के बाद यदि अपवित्र मनुष्य पुनः पाप कर्म करता है तो उसे सैकड़ों तीर्थ-स्थान करने के बाद भी न कोई लाभ होता है न ही वह कभी पवित्र हो सकता है।

यह मानव का स्वभाव है कि यदि वह दूसरे के गुणों की श्रेष्ठता को नहीं जानता तो वह हमेशा उसकी निन्दा करता रहता है। इस बात से जरा भी आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए।

उदाहरणार्थ-यदि भीलनी को गजमुक्ता (हाथी के कपाल में पाया जाने वाला काले रंग का बड़ा भारी मूल्यवान मोती) मिल जाये तो उसका मूल्य न जानने के कारण वह उसे फेंककर साधारण घुघचियों (लाल रंग की रत्तियों) की माला गले में पहनती है। तो इसमें उसका क्या दोष है? जब उसे गजमुक्ता और धुंधचियों के अन्तर का ज्ञान ही नहीं। उसके फैंकने से गजमुक्ता का मूल्य तो नहीं घट जाता।

अतः कहने का तात्पर्य यह है कि अनजान व्यक्ति द्वारा की गयी उपेक्षा से वस्तु या मानव का मूल्य कम नहीं हो जाता।

एक बटोही (पथिक) ने यात्रा करते हुए मार्ग में पड़ने वाले किसी एक नगर में ब्राह्मण से उसे नगर की जानकारी लेने के लिए पूछा हे ब्राह्मण इस नगर में बड़ा कौन है?

ब्राह्मण ने उत्तर दिया–ताड़ के वृक्षों का समुद्र ही सबसे बड़ा व उत्तम माना जाता है। अन्य किसी की यहां कोई महत्ता नहीं है। बटोही ने फिर पूछा-यहां पर दाता कौन है?

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