Vat Savitri Vrat : सौभाग्य और संतान प्राप्ति का व्रत वट सावित्री

Vat Savitri Vrat : सौभाग्य और संतान प्राप्ति का व्रत वट सावित्री

Vat Savitri Vrat: Vat Savitri fasting for good luck and having children

Vat Savitri Vrat

अशोक पटेल आशु। Vat Savitri Vrat : पर्व की दृष्टि से भारत का ,पूरे विश्व मे एक अलग पहचान है।हमारे भारत मे पूरे साल भर नाना प्रकार के व्रत,उत्सव जयंतियाँ मनायी जाती है। जिसका अपना अलग-अलग महत्व और उपयोगिता है।इन पर्वों का धार्मिक दृष्टि से महत्व तो है ही,इनका सामाजिक और साँस्कृतिक महत्व भी कम नही है। यह पर्व कहीं न कहीं हमारे जीवन की आस्था, विश्वास, सुख, शांति, उन्नति और मनोकामना को प्रगाढ़ करती है। और इसी कारण हमारे देश मे प्रति वर्ष पूरे बारह मास में कोई न कोई पर्व,व्रत और जयंती अवश्य मनायी जाती हैं।और हम अपनी धार्मिक भावना को सुदृढ कर पाते हैं। इस कड़ी में ग्रीष्म ऋतु के जेष्ठ मास की कृष्ण अमावश्या को “वट सावित्री” का पर्व मनाया जाता है।जिसको सौभाग्य और संतान प्राप्ति में सहायता प्रदान करने वाला माना जाता है। भारतीय सँस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का पर्याय बन चुका है।

इस व्रत को मनाने के पीछे सौभाग्य की वृद्धि,पतिव्रता सँस्कार को पुष्ट करना,और उसको आत्मसात करना है।वट सावित्री व्रत में ‘वटÓ और ‘सावित्रीÓ दोनों की साथ-साथ पूजा की जाती है।और दोनों का अपना विशिष्ट महत्व भी है।हिन्दू सँस्कृति में जिस प्रकार पीपल का विशेष महत्व होता है ठीक उसी प्रकार बरगद वृक्ष का भी विशेष महत्व है।इस सम्बंध में पराशर मुनि ने यह कहा है कि-

“वट मुले तपोवासा।”अर्थात वट वृक्ष जप,तप, ध्यान,आराधना का पवित्र स्थल है। पुराणों में यह उल्लेख है कि वट वृक्ष में त्रिदेव ब्रम्हा,विष्णु,महेश का वास है।वट वृक्ष अपनी अक्षयता और विशालता के लिए भी प्रसिद्ध है।इसके नीचे बैठकर पूजा करने,कथा सुनने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।और अंतत: सारी मनोकामनाएँ पूर्ण भी हो जाती है।इसके पीछे एक मनोवैज्ञानिक कारण यह भी माना जाता है।कि कालांतर में ग्रीष्म की भीषण गर्मी में जप तप ध्यान के लिए वट वृक्ष की शीतल छाया को ही उचित समझा गया।और हमारे ऋषि मुनि वहीं पर ध्यान करने लगे।और फिर यह एक परम्परा बन गई।जिसको आज भी निर्वहन करते आ रहे हैं।दार्शनिक दृष्टि से भी यह वट वृक्ष दीर्घायु,और अमरत्व बोध का प्रतीक माना जाता है।इसके अलावा वट वृक्ष को ज्ञान और निर्वाण का भी प्रतीक माना गया है।इसी वट वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इसी कारण सौभाग्यवती स्त्रियाँ वट वृक्ष की पूजा,अपने पति की लंबी आयु की कामना के लिए करती हैं।और फिर वट के तने में सफेद सुत परिक्रमा करते हुए लपेटती हैं। ताकि उनको अखंड और अक्षय सौभाग्य का फल मिले।

इस व्रत को करने के लिए पूजा स्थल को साफ सुथरा करके रंगोली बनायी जाती है।फिर एक चौकी में लाल कपड़े बिछाकर भगवान लक्ष्मीनारायण और शिव पार्वती की मूर्तियों को स्थपित की जाती है।पास में तुलसी के पौधे भी रखे जाते हैं।और फिर सबसे पहले भगवान श्री गणेश और माता गौरी की पूजा की जाती है। ततपश्चात अक्षयता,विशालता,का प्रतीक बरगद की पूजा की जाती है। उक्त पूजा सम्पन्न होने के बाद सावित्री और सत्यवान की कथा शुरू की जाती है।कथा का प्रसंग अद्भुत और रोचक है जिसमें पुराणों के अनुसार यह उल्लेख है कि सावित्री का पति अल्पायु था।ऐसे समय मे देवर्षि नारद आकर यह बताते हैं कि तुम्हरा पति अल्पायु है।अत: तुम दूसरा वर मांग लो।

तब सावित्री कहती है-“मैं हिन्दू नारी हूँ।और हिन्दू नारी,पति का चुनाव एक बार ही करती हैं।”इधर उसके पति के सर में पीड़ा शुरू हो जाती है।तब सावित्री ने वट के नीचे बैठकर उसे अपने गोदी में लिटा लेती है।इसी समय यमराज अपने गणों के साथ आए और उसके पति सत्यवान को दक्षिण दिशा की ओर ले जाने लगे।इसे देख सावित्री भी पीछे-पीछे जाने लगी।इसको देख यमराज ने कहा-“हे पतिव्रता नारी कोई भी स्त्री अपने पति का साथ पृथ्वी तक ही दे पाती है।अब तुम वापस लौट जाओ।”तव सावित्री ने कहा-“जहाँ मेरे पति रहेंगे उनके साथ मैं भी रहूँगी।यही मेरा पतिव्रता धर्म है।”सावित्री के ऐसे धर्म निष्ठ बातों को सुनकर यमराज प्रसन्न हो जाते हैं। और कहते है-“तुम मुझसे तीन वर मांग सकते हो।”

तब सावित्री ने अपने सास और ससुर के नेत्र की ज्योति माँगी।उसका खोया हुआ राज्य मांगा।और अपने पति सत्यवान से सौ पुत्रों की माँ बनने का वरदान मांगा।यमराज आशीर्वाद देकर तथास्तु कह दिया। सावित्री वट के नीचे अपने पति के पास आती है।उसके मृत पति में जीवन शक्ति का संचार होने लगता है।इस प्रकार से सावित्री अपने पतिव्रता धर्म को पालन करके अपने पति की जान यमराज से वापस तो लायी ही।

साथ ही साथ सौ पुत्रों का वरदान, अपने सास-ससुर के नेत्र की ज्योति और खोया हुआ साम्राज्य भी वापस ले आती है। इस प्रकार से यह कहा जा सकता है कि वट सावित्री के व्रत से सौभाग्यवती स्त्रियों की मनोकामनाएँ पूर्ण होती है। और उनका सौभाग्य अखंड हो जता है। अत: प्रत्येक स्त्री को एक निष्ठ होकर पतिव्रता धर्म का पालन करते रहना चाहिए। जिसके बल से वह अपने पति के सारे दुख-दर्द को सावित्री की भाँति दूर कर सके।

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