Tribal Dance : ककसार, तामेर, डंडारी नाचा सहित मंच पर कई नृत्यों का समागम...

Tribal Dance : ककसार, तामेर, डंडारी नाचा सहित मंच पर कई नृत्यों का समागम…

Tribal Dance: Confluence of many dances on stage including Kakasar, Tamer, Dandari dance...

Tribal Dance

रायपुर/नवप्रदेश। Tribal Dance : छत्तीसगढ़ राज्य के अनेक नृत्य है। जो राज्य ही नहीं देश-विदेश में भी अपनी पहचान रखते हैं। आदिवासियों का प्रमुख क्षेत्र बस्तर, सरगुजा संभाग है। प्रकृति के नैसर्गिक वातावरण में रहने वाले इन जनजातियों के अलग-अलग जातीय नृत्य हैं।

इनमें माडिय़ों का ककसार, सींगों वाला नृत्य, तामेर नृत्य, डंडारी नाचा, मड़ई, परजा जाति का परब नृत्य, भतराओं का भतरा वेद पुरुष स्मृति और छेरना नृत्य, घुरुवाओं का घुरुवा नृत्य, कोयों का कोया नृत्य, गेंडीनृत्य प्रमुख है।

Tribal Dance: Confluence of many dances on stage including Kakasar, Tamer, Dandari dance...

28 से 30 अक्टूबर तक चलने वाली राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में छत्तीसगढ़ समेत भारत के अन्य देशों के आदिवासियों के पारंपरिक नृत्य की हर विधा इस मंच पर दिखेगा।

मुख्यत: पहाड़ी कोरवा जनजातियों द्वारा किये जाने वाले डोमकच नृत्य आदिवासी युवक-युवतियों का प्रिय नृत्य है। विवाह के अवसर पर किये जाने वाले इस नृत्य को विवाह नृत्य भी कहा जाता है। यह नृत्य छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति का पर्याय है।

करमा नृत्य (Tribal Dance) को बैगा करमा, गोंड़ करमा, भुंइयां करमा आदि का जातीय नृत्य माना जाता है। इसमें स्त्री-पुरुष सभी भाग लेते हैं। सरहुल नृत्य उरांव जाति का जातीय नृत्य है। यह नृत्य प्रकृति पूजा का एक आदिम रूप है।

आदिवासियों का विश्वास है कि साल वृक्षों के समूह में जिसे सरना कहा जाता है। महादेव और देव पितरों को प्रसन्न करके सुख शांति की कामना के लिए चैत्र पूर्णिमा की रात इस नृत्य का आयोजन किया जाता है।

समूह में बहुत ही कलात्मक ढंग से किये जाने वाले डंडा व सैला नृत्य पुरुषों का सर्वाधिक प्रिय नृत्य है। इस नृत्य में ताल का अपना विशेष महत्व होता है। इसे मैदानी भाग में डंडा नृत्य और पर्वती भाग में सैला नृत्य के रूप में भी जाना जाता है।

Tribal Dance: Confluence of many dances on stage including Kakasar, Tamer, Dandari dance...

छत्तीसगढ़ के जनजाति बहुल क्षेत्रों में ग्राम देवी की वार्षिक, त्रिवार्षिक पूजा के दौरान मड़ई नृत्य करते हैं, इसमें देवी-देवता के जुलूस के सामने मड़ई नर्तक दल नृत्य करते है एवं पीछे-पीछे देवी-देवता की डोली, छत्रा, लाट आदि प्रतीकों को जुलूस रहता है।

धुरवा जनजाति द्वारा विवाह के दौरान विवाह नृत्य किया जाता है। विवाह नृत्य वर-वधू दोनों पक्ष में किया जाता है। विवाह नृत्य तेल-हल्दी चढ़ाने की रस्म से प्रारंभ कर पूरे विवाह में किया जाता है। इसमें पुरूष और स्त्रियां समूह में गोल घेरा बनाकर नृत्य करते हैं।

इसी तरह राज्य में गेड़ी नृत्य भी प्रसिद्ध है। मुरिया जनजाति के सदस्य नवाखानी पर्व के दौरान लगभग एक माह पूर्व से गेड़ी निर्माण प्रारंभ कर देते हैं। गेड़ी नृत्य सावन मास के हरियाली अमावस्या से भादो मास की पूर्णिमा तक किया जाता है। गेड़ी नृत्य नवाखानी त्यौहार के समय करते हैं। इसमें मुरिया युवक बांस की गेंड़ी में गोल घेरा में अलग-अलग नृत्य मुद्रा में नृत्य करते हैं।

नाट्य तथा नृत्य का सम्मिलित रूप गंवरमार नृत्य मुरिया जनजाति द्वारा किया जाता है। मुरिया जनजाति के नर्तक दल गौर-पशु मारने का प्रदर्शन करते हैं। इस नृत्य में दो व्यक्ति वन में जाकर गौर-पशु का शिकार करने का प्रयास करते हैं, किन्तु शिकार के दौरान गौर-पशु से घायल होकर एक व्यक्ति घायल हो जाता है।

दूसरा व्यक्ति गांव जाकर पुजारी (सिरहा) को बुलाकर लाता है जो देवी आह्वान तथा पूजा कर घायल व्यक्ति को स्वस्थ्य कर देता है तथा दोनों व्यक्ति मिलकर गंवर पशु का शिकार करते हैं। इसी के प्रतीक स्वरूप गवंरमार नृत्य किया जाता है। यह एक प्रसिद्ध नृत्य है। जो देखने वालों को बहुत प्रभावित करता है।

सुआ नृत्य छत्तीसगढ़ के स्त्रियों द्वारा समूह (Tribal Dance) में किये जाने वाला नृत्य है। इस नृत्य को करने वाली युवती या नारी की सुख-दुख की अभिव्यक्ति, मन की भावना नृत्य में प्रदर्शित होता है।

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