संपादकीय: राधाकृष्णन के मुकाबले सुदर्शन रेड्डी

संपादकीय: राधाकृष्णन के मुकाबले सुदर्शन रेड्डी

Sudarshan Reddy against Radhakrishnan


Editorial: उपराष्ट्रपति पद के लिए एनडीए ने महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाया जिन्होंने अपना नामांकन पत्र भी दाखिल कर दिया है तो उनके मुकाबले में आईएनडीआईए ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। संभवत: यह पहला अवसर है जब उपराष्ट्रपति पद के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष ने साउथ इंडिया से उम्मीदवार का चयन किया है। एनडीए प्रत्याशी सीपी राधाकृष्णन तमिलनाडु के रहने वाले हैं तो आईएनडीआईए प्रत्याशी बी. सुदर्शन रेड्डी तेलंगाना के हैं सुदर्शन रेड्डी आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट के न्यायाधीश रह चुके हैं बाद में वे गुवाहाटी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी बने थे और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश पद से सेवानिवृत्त हुए थे।

आईएनडीआईए ने बी सुदर्शन रेड्डी को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर एनडीए के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है। आईएनडीआईए के नेताओं को उम्मीद है कि तेलगू देशम पार्टी के कुछ सांसदों से क्राश वोट डलवाया जा सकता है। वैसे तेलगू देशम पार्टी एनडीए के साथ है और तेलगू देशम पार्टी के सुप्रीमों तथा आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू पूरी मजबूती के साथ एनडीए के साथ खड़े हुए हैं। अलबत्ता तेलंगाना की पार्टियां बीआरएस और जगन मोहन रेड्डी की पार्टी जो न तो एनडीए में है और न ही आईएनडीआईए का हिस्सा है उसके सांसद बी. सुदर्शन को वोट दे सकते हैं क्योंकि वे तेलंगाना के हैं।

इसमें से भी जगन मोहन रेड्डी के बारे में संशय है क्योंकि पूर्व में संसद में किसी भी प्रस्ताव पर वोटिंग के दौरान जगनमोहन रेड्डी की पार्टी एनडीए के पक्ष में वोट करती रही है। रही बात बीआरएस की तो उसका लोकसभा में एक भी सांसद नहीं है सिर्फ राज्यसभा में ही उसके चार सांसद हैं इसी तरह बीजू जनता दल भी जो इन दोनों ही गठबंधनों का हिस्सा नहीं है उसका भी समर्थन एनडीए के प्रत्याशी सीपी राधाकृष्णन को ही मिलने की ज्यादा संभावना हैं।

बहरहाल एनडीए और आईएनडीआईए दोनों ने ही उपराष्ट्रपति पद के लिए दक्षिण भारतीय प्रत्याशियों के नाम घोषित करके चुनावी मुकाबले को रोचक बना दिया है। संख्या बल के आधार पर उपराष्ट्रपति पद के लिए एनडीए प्रत्याशी सीपी राधाकृष्णन की जीत सुनिश्चित मानी जा रही है यदि क्रास वोटिंग हुई तो जीत का अंतर भले ही थोड़ा कम हो सकता है।

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