विशेष टिप्पणी: बहुत कुछ लेकर आ रहे हैं प्रधानमंत्री मोदी

विशेष टिप्पणी: बहुत कुछ लेकर आ रहे हैं प्रधानमंत्री मोदी

Special Comment: Prime Minister Modi is bringing a lot

pm modi us visit 2023

नीरज मनजीत

pm modi us visit 2023: कुल जमा 23 वर्ष पहले मार्च 2000 की बात है। भारत की आधिकारिक यात्रा पर आए अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन जैसे ही भारतीय संसद को संबोधित करके फ़्लोर पर आए, भारतीय सांसदों में उनसे हाथ मिलाने अथवा उनके उठे हाथ छूने की होड़ लग गई।

अब जऱा यह दृश्य देखिए। परसों रात जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अमेरिकी सीनेट में अपने संबोधन के बाद फ़्लोर पर आते हैं, तो उनसे हाथ मिलाने उनके साथ सेल्फी लेने उनका ऑटोग्राफ लेने अमेरिकी सीनेटरों में होड़ लग जाती है। क्या यह दृश्य वैश्विक बिरादरी में भारत की बढ़ती शक्ति और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के परिष्कृत अंतर्राष्ट्रीय राजनय का परिचायक नहीं है?

यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर स्थापित करने में प्रधानमंत्री मोदी अब पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के समकक्ष खड़े हो गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने वैश्विक समुदाय में अंतर्राष्ट्रीय डिप्लोमेसी की अपनी एक अलग ही शैली विकसित की है। शीर्ष अंतर्राष्ट्रीय मंचों की औपचारिकता के तनाव से भरे राजनय को उन्होंने अपने परिष्कृत हास्यबोध के जरिए अनौपचारिक और आत्मीय बनाया है। यह शैली उनकी पूरी अमेरिका यात्रा के दौरान साफ़ नजऱ आ रही थी।

इस यात्रा पर पूरे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की निगाहें टिकी हुई थीं। ऐसा इसलिए कि दुनिया एक बार फिर शीतयुद्ध के दौर में फँसती दिखाई पड़ रही है और चीन की चुनौती के बरअक्स अमेरिका अपना वैभव कायम रखने की कोशिश में है। इस कोशिश को कामयाब बनाने के लिए उसे भारत की सख़्त जरूरत है। इधर चीन और पाकिस्तान के गठजोड़ ने भारत को जिस मुश्कि़लात में डाल रखा है, उससे निबटने के लिए भारत को भी अमेरिका की उतनी ही जरूरत है। उससे भी बड़ी बात यह है कि दोनों महादेश शिद्दत से एक-दूसरे को अपना स्वाभाविक साझेदार और सहयोगी मानते हैं।

अमेरिका यह अच्छी तरह जानता है कि एशिया का शक्ति संतुलन ही अंतत: वैश्विक बिरादरी में उसकी चौधराहट कायम रखने की कुंजी हो सकता है। चीन और अमेरिका के बीच की तनातनी को अमेरिकी थिंकटैंक लोकतंत्र और एकाधिकारवादी सत्ता के संघर्ष के तौर पर देखता है। इसीलिए दो वर्ष पूर्व कोविड काल में जो बाइडन ने दुनिया के लोकतांत्रिक देशों की एक वर्चुअल मीटिंग बुलाई थी। इस बैठक में माना गया कि एकाधिकारवादी तानाशाही सत्ता वैश्विक लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ी चुनौती है और इनका मुकाबला करने के लिए दुनिया के सभी लोकतांत्रिक देशों को एक मंच पर आना पड़ेगा। स्पष्टतया बाइडन का इशारा चीन और उत्तर कोरिया जैसे मुल्कों की तरफ़ था।

इसे महज संयोग नहीं कहा जा सकता कि प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा शुरू होने के दिन जो बाइडन ने चीन के प्रधानमंत्री शी जिनपिंग को तानाशाह कहकर संबोधित किया। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि अमेरिकी विदेशमंत्री टोनी ब्लिंकेन केवल दो दिन पहले ही चीन यात्रा से लौटे थे। वैश्विक बिरादरी के समीक्षक ब्लिंकेन की इस यात्रा को काफी कामयाब बता रहे थे और उम्मीद जता रहे थे कि इससे चीन से बढ़ता तनाव कम होगा।

ज़ाहिर है कि ब्लिंकेन की इस यात्रा के दौरान अमेरिकी प्रशासन को कुछ ग़लत संकेत मिले होंगे, तभी बाइडन को झल्लाकर ऐसी कटु टिप्पणी करना पड़ी। जहाँ तक भारत और चीन के रिश्तों की बात है, चीन इन रिश्तों को सुधारने का कतई इच्छुक नहीं लगता। चीन ने मुंबई हमले के दोषी पाकिस्तानी आतंकवादी सादिक मीर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के प्रस्ताव में अड़ंगा लगाकर एक बार फिर अपनी मंशा जता दी है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत और अमेरिका ने मिलकर यह प्रस्ताव रखा था, मगर चीन ने वीटो लगाकर इसे गिरा दिया।

जैसी की संभावना थी दुनिया के दो सबसे बड़े और महान लोकतांत्रिक देशों का यह पुनर्मिलन भव्य ऐतिहासिक सुंदर और आकर्षक था। जो बाइडन, उनकी पत्नी जिल बाइडन और उनके प्रशासन ने प्रधानमंत्री मोदी के इस प्रवास को बीते ढाई दशकों की सबसे बड़ी यात्रा बनाने में कोई भी कोर कसर बाकी नहीं रखी। इसके बावजूद इस चकाचौंध के पीछे हमें गौर करना होगा कि इस यात्रा में भारत को क्या मिला।

सच कहा जाए तो बहुत कुछ मिला। टेस्ला और ट्विटर के सीईओ एलन मस्क तथा जनरल इलेक्ट्रिक के सीईओ एच लारेंस कल्प जूनियर भारत में बड़े निवेश की योजना बना रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी से भेंट के बाद उन्होंने मीडिया से यह बात कही है। इसके अलावा कई छोटी बड़ी कम्पनियां भारत में ग्लोबल सप्लाई चेन विकसित करने की इच्छुक हैं। फिलहाल चीन के पास दुनिया की सबसे बड़ी ग्लोबल सप्लाई चेन है। अमेरिका और यूरोप की कंपनियों को भारत में निवेश की अपार संभावनाएं नजऱ आ रही हैं।

इस यात्रा में भारत और अमेरिका के बीच हुए रक्षा समझौते दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी को एक नए आयाम पर ले गए हैं। भारत को एडवांस्ड ड्रोन और फाइटर जेट इंजन दिए जाएँगे। इन उपकरणों का उत्पादन भी भारत में ही होगा और तकनीकी हस्तांतरण भी किया जाएगा। भारत सम्भवत: ऐसा पहला देश होगा, जो नाटो में नहीं है, इसके बावजूद अमेरिका उसे एडवांस्ड तकनीक दे रहा है। इसके अलावा इसरो और नासा मिलकर भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम विकसित करेंगे। क्वांटम और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इलाके में भी तकनीकी हस्तांतरण किया जाएगा।

इन उपलब्धियों के बीच प्रधानमंत्री मोदी के लिए अलर्ट कॉल भी सामने आया। 70 डेमोक्रेट सांसदों ने अमेरिकी विदेश विभाग और सिविल सोसाइटी की रिपोर्टों का हवाला देते हुए राष्ट्रपति बाइडन को पत्र लिखकर कहा कि वे प्रधानमंत्री मोदी से बातचीत में भारत में ‘पॉलिटिकल स्पेस के कम होने, धार्मिक असहिष्णुता के बढऩे, सिविल सोसाइटी संगठनों और पत्रकारों को निशाना बनाने, प्रेस और इंटरनेट पर बढ़ते प्रतिबंधोंÓ का सवाल उठाएं। पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी इसी वक़्त एक इंटरव्यू में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के उत्पीडऩ पर सवाल खड़े किए। इसे महज संयोग मानकर टाला नहीं जाना चाहिए। पीएम मोदी और भाजपा को इस आलोचना को संजीदगी से स्वीकार करते हुए आत्मचिंतन करना चाहिए।

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