राजनीतिक दलों से लगातार धोखा खाती 'साहू राजनीति'

राजनीतिक दलों से लगातार धोखा खाती ‘साहू राजनीति’

'Sahu politics' is constantly being cheated by political parties

Sahu politics

विशेष संवाददाता
रायपुर/नवप्रदेश। Sahu politics: छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के 25 बरस पूरे होने वाले हैं। ढाई दशक में पांच मुख्यमंत्रियों की ताजपोशी हो चुकी है। जिसमें 1 संवर्ण, 2 आदिवासी और 1 कुर्मी समाज से भी मुख्यमंत्री बन चुके हैं। लेकिन, 26 प्रतिशत आबादी वाले साहू समाज के जनाधार के काबिल जनप्रतिनिधियों को बार- बार धोखा ही मिला। सीएम की कुर्सी नहीं मिली। कांग्रेस और भाजपा नेतृत्व ने साहू समाज की ताकत को बार-बार नजरअंदाज ही किया है।


लगातार उपेक्षा से समूचा साहू समाज आहत है। कांग्रेस और भाजपा से लगातार धोखा खा रहे साहू समाज में अब इस मुद्दे पर चिंतन -मनन भी शुरू हो गया है। छत्तीसगढ़ में सबसे सशक्त सामाजिक ढांचा रखने वाले इस समाज ने दो बार छत्तीसगढ़ की सत्ता पलट कर धोखेबाजी का जवाब दिया है। समाज के जिम्मेदार इशारों-इशारों में राजनीतिक दलों को फिर से जवाब देने की चेतावनी भी दे रहे हैं। मगर, अब साहू समाज की युवा पीढ़ी इस मुद्दे पर नई रणनीति बनाने पर जोर दे रही है।


शुरुआत करें, राज्य निर्माण के दौर की। उस समय साहू समाज (Sahu politics) के सबसे कद्दावर नेता ताराचंद साहू 1996 से 2009 तक सांसद रहे। राज्य बनने के बाद प्रदेश भाजपा का पहला अध्यक्ष ताराचंद साहू को ही बनाया गया। तेजतर्रार राजनीति करने वाले ताराचंद साहू के तेवरों से विरोधियों के सुर ढीले हो गए। इसी दौर में भाजपा के कई सवर्ण नेताओं ने ताराचंद को खतरा मानते हुए घेराबंदी शुरू कर दी। भाजपा के सवर्ण नेताओं की साजिशों में फंसते गए ताराचंद साहू पार्टी से अलग हो गए। इसके साथ ही साहू समाज के सबसे फायरब्रांड नेता ताराचंद साहू की राजनीति ढलान पर चली गई। हालांकि भाजपा से निष्कासन के बाद उन्होंने छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच का क्षेत्रीय दल बनाया, चुनाव लड़े, हार गए लेकिन राजनीति को एक नई दिशा दे गए।


ध्यान रहे कि ताराचंद साहू की राजनीतिक जमीन दुर्ग में तैयार हुई थी। पूरे प्रदेश में उनकी धाक जम चुकी थी। उस दौर में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पांडेय और उभरती भाजपा नेत्री सरोज पांडेय को दुर्ग में किसी ओबीसी राजनेता की दखलअंदाजी मंजूर नहीं थी। लिहाजा, ढेर सारे दांव-पेंच रचे गए। सवर्ण राजनीति के एक और ताकतवर भाजपा नेता लखीराम अग्रवाल की मदद से खेल शुरू हुआ। राजनीति के जानकारों का दावा है कि दिल्ली में बेहद शक्तिशाली भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद भी इस खेल में शामिल थे। भाजपा से निपटाए जाने के साथ ही ताराचंद साहू के मुख्यमंत्री बनने की सारी संभावनाएं क्षीण हो गई। ताराचंद ने नई पार्टी बना ली और फिर हाशिये पर चले गए। ताराचंद साहू को सीएम बनाए जाने की साहू समाज की उम्मीदें तार-तार हो गई।


2014 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस सांसद बने ताम्रध्वज साहू की राजनीतिक सोच और संगठनात्मक शक्ति को केंद्रीय नेताओं ने जल्द ही पहचान लिया। उन्हें कांग्रेस के पिछड़ा वर्ग को साधने की कमान सौंपी गई। कांग्रेस के ओबीसी प्रकोष्ठ का राष्ट्रीय अध्यक्ष ताम्रध्वज साहू को बनाया गया। खुद राहुल गांधी भी ताम्रध्वज साहू की सोच के कायल रहे। 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले ताम्रध्वज साहू को विधानसभा चुनाव में टिकट दी गई। पूरे प्रदेश में कांग्रेस की ओर से मैसेज फैलाया गया कि कांग्रेस पार्टी के जीतने पर ताम्रध्वज को ही मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। ताराचंद एपिसोड से भाजपा से धोखा खा चुके साहू समाज ने कांग्रेस को भर-भर कर वोट दिये। बंपर जनादेश मिला, 69 सीट मिली लेकिन हुआ उलटा। प्रदेश में सिर्फ 6 प्रतिशत आबादी वाले कुर्मी समाज के नेता प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे भूपेश बघेल को सीएम बना दिया गया। मुख्यमंत्री बनने की प्रक्रिया के दरवाजे से वापस लौटे। साहू समाज को इस बार कांग्रेस से धोखा मिला।


2023 में हुए विधानसभा चुनाव से पहले भी कमोबेश यही घटनाक्रम हुआ। इस समय प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की कमान अरुण साव के हाथों में थी। चुनाव के लिये संगठन को मजबूत बनाने और कांग्रेस को हर मामले में चौतरफा तरीके से घेराबंदी करने में अरुण साव ने सारी शक्ति झोंक दी। भूपेेश बघेल जैसे फायरब्रांड नेता से अरुण साव लड़ते रहे। कांग्रेस द्वारा 2018 में ताम्रध्वज को मुख्यमंत्री न बनाने से खफा साहू समाज ने 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा पर भरोसा जताया। साहू समाज के वोट एकतरफा ढंग से भाजपा के खाते में डाले गए और विधानसभा चुनाव में भाजपा की जबर्दस्त जीत हुई। चुनाव जीतते ही साहू समाज को भाजपा से इस बार भी धोखा ही मिला। दिल्ली के केंद्रीय भाजपा नेतृत्व ने विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री का पद सौंप दिया।


बार-बार साहू समाज के साथ हो रहे ‘खेला’ से आहत साहू समाज अब नई रणनीति पर मंथन कर रहा है। खास तौर पर युवा नेता इस मुद्दे पर कड़े फैसले लेने पर जोर दे रहे हैं। तमाम विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। साहू समाज के सीनियर संगठन पदाधिकारी सत्तारूढ़ दल से सीधे बगावत या शक्ति प्रदर्शन करने के मूड में नहीं हैं, लेकिन वे मान रहे हैं कि साहू समाज की अपेक्षाओं के अनुरूप फैसले होने ही चाहिये। साहू समाज का युवा वर्ग इस बात पर जोर दे रहा है कि योग्यता के बावजूद बड़ी आबादी वाले साहू समाज से मुख्यमंत्री बनाने के मामले में अब ठोस पहल होनी ही चाहिये।

पर्याप्त महत्व देने की जरुरत
साहू समाज में योग्यता रखने वाले जनप्रतिनिधियों को संगठन और सत्ता में प्रमुख ओहदा मिलना चाहिये। राजनीतिक दलों ने खुद अनुभव किया है कि प्रमुखता न देने पर उनकी सरकार चली गई। सरकार बनाना है तो जनसंख्या के लिहाज से बड़ी आबादी होने और प्रदेश के प्रमुख समाज होने के नाते साहू समाज को पर्याप्त महत्व देना होगा। निश्चित रूप से साहू समाज यह अपेक्षा करता है कि योग्य और जनाधार वाले जनप्रतिनिधियों को मुख्यमंत्री का ओहदा मिलना चाहिये। डॉ नीरेंद्र साहू, अध्यक्ष, प्रदेश साहू संघ, छत्तीसगढ़

नई अंगड़ाईया ले रहा राज्य
राजनीतिक विश्लेषक और लेखक डॉ. सुशील त्रिवेदी का कहना है कि वर्ष 2002 में ही विधानसभा के अध्यक्ष रहे राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल ने सवर्ण राजनीति के पैरोकारो को समझा दिया था कि नया राज्य छत्तीसगढ़ नई अंगड़ाईया ले रहा है। अत: ज्यादा सवर्ण नेताओं को ज्यादा उम्मीद नहीं करना चाहिए। डॉ. त्रिवेदी का कहना है कि राज्य की 52′ ओबीसी आबादी को कोई भी राजनीतिक दल नजरअंदाज नहीं कर सकता। श्री त्रिवेदी ने नवप्रदेश से बातचीत में कहा कि पिछले 5 दिनों से छत्तीसगढ़ की सामाजिक राजनीति पर नवप्रदेश द्वारा रिपोर्ताज तारीफे काबिल है।
डॉ. एस.के त्रिवेदी, राजनीतिक विश्लेषक

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