Reservation in Schemes : CM दे रहे आरक्षण और विधायक-महापौर लगा रहे पलीता

Reservation in Schemes : CM दे रहे आरक्षण और विधायक-महापौर लगा रहे पलीता

Reservation in Schemes: CM is giving reservation and MLA-Mayor is destroying

Reservation in Schemes

दुर्ग में मिल रही अगड़ों को तवज्जो, धंधे-पानी में भी मिलकर निपटाए जा रहे ओबीसी चेहरे

दुर्ग/नवप्रदेश। Reservation in Schemes : एक ओर जहां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ओबीसी वर्ग को विभिन्न योजनाओं में आरक्षण देकर उन्हें आगे बढ़ाने में लगे हैं, वहीं दूसरी ओर दुर्ग शहर के विधायक व महापौर मिल-जुलकर ओबीसी वर्ग को निपटाने में जुटे हैं। शहर की व्यवस्था भगवान भरोसे है और ये नेता व उनके समर्थक खुलकर बंदरबांट कर रहे हैं। नगर निगम के कामों में जिस तरह से विधायक अरूण वोरा के करीबी और परिजन हस्तक्षेप कर रहे हैं, उसके बाद यह सवाल भी उठ रहा है कि निगम में डमी महापौर बिठाने की जरूरत क्या थी? कांग्रेस के ही अंदरखाने यह भी चर्चा है कि दुर्ग की राजनीति में अपना स्पर्धी पैदा नहीं होने देने वाले विधायक अरूण वोरा के लिए वर्तमान महापौर आखिरी कील साबित होंगे।

उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय के अधीन व्यवसाय करने हेतु भूखंड एवं अन्य सुविधाओं में १०’ के आरक्षण की घोषणा की थी जिससे दबे-कुचले ओबीसी के लोग अपना व्यवसाय कर सके। आशय यह था कि इस वर्ग के लोग तेजी से बदलती व्यवस्था में पीछे न छूट जाएं। मुख्यमंत्री स्वयं पिछड़ा वर्ग से आते हैं और वे इस वर्ग की तकलीफों को भी बखूबी समझते हैं।

शायद यही वजह है कि वे ओबीसी वर्ग (Reservation in Schemes) को महत्व देकर बराबरी पर लाने में जुटे हैं, किन्तु उनकी कोशिशों को दुर्ग शहर के विधायक व महापौर पलीता लगा रहे हैं। दुर्ग में इस वर्ग के अधिकारों का न केवल हनन किया जा रहा है, बल्कि इस वर्ग से जुड़े अफसरों, व्यवसायियों, ठेकेदारों व नेताओं को आगे नहीं बढऩे देने की नीति अपनाई जा रही है। जिस तरह से मुख्यमंत्री पिछड़ा वर्ग को आगे लाने में जुटे हैं, ठीक उसी तर्ज पर विधायक वोरा व महापौर धीरज बाकलीवाल अगड़े वर्ग को सामने लाकर पिछड़े लोगों को पीछे धकेल रहे हैं।

गंजपारा से बांटे जा रहे निगम के ठेके

नगर निगम में कांग्रेस की सत्ता आने के बाद से हालात इस कदर बदल गए हैं कि निगम के टेंडर गंजपारा क्षेत्र के एक दफ्तर से बांटे जा रहे हैं। यह दफ्तर विधायक अरूण वोरा के पुत्र का बताया जाता है। जानकारी के मुताबिक, गंजपारा के इसी दफ्तर से तय किया जाता है कि किसे, कितना काम देना है। टेंडर की इस प्रक्रिया में खूब लेन-देन होने की भी खबरें है। टेंडर की प्रक्रिया बंद लिफाफे में अंजाम दी जाती है, लेकिन यहां कांग्रेस की सत्ता आने के बाद यह पहले से ही तय कर लिया जाता है कि किसके नाम का टेंडर खोलना है।

कुछ महीनों पहले विधायक अरूण वोरा के करीबी पीडब्ल्यूडी प्रभारी अब्दुल गनी की मौजूदगी में ठेकेदारों की बैठक लेकर उन्हें टेंडर बांटने का निम्न स्तरीय खेल भी हो चुका है। बताया जाता है कि अरूण वोरा के पुत्र अपने गंजपारा स्थित दफ्तर से निगम के करीब 50 फीसदी टेंडर उन लोगों को बांटते हैं, जिनमें बहुधा अगड़ा वर्ग के लोग शामिल हैं। कमोबेश ऐसा ही बाकी बचे करीब 50 फीसदी टेंडरों के साथ भी किया जाता है। यह बाकी बचे टेंडर महापौर व एमआईसी के चुनिंदा लोगों के हिस्से आते हैं। वर्तमान में महापौर के कई करीबी लोग अपना काम धंधा छोड़कर ठेकेदारी में कूद चुके हैं। इनमें कई राईस मिलर्स भी शामिल है। गौरतलब है कि पूर्व में महापौर धीरज बाकलीवाल राईस मिल एसोसिएशन से जुड़े रहे हैं।

बिग बॉस बनने की महत्वाकांक्षा

विधायक अरूण वोरा ने सदैव यही प्रयास किया कि शहर में कोई नया नेतृत्व न उभर पाए। इस फेर वे लगातार ऐसे लोगों को दायित्व सौंपते रहे, जिनमें या तो काबिलियत (Reservation in Schemes) नहीं थी या फिर सिर उठाने के माद्दे का अभाव था। बाद में मदन जैन जैसे काबिल कांग्रेसी को महापौर टिकट देने में आनाकानी की। नीलू ठाकुर जैसी अपेक्षाकृत कमजोर प्रत्याशी को उतारा। अब भी धीरज बाकलीवाल को महापौर बनवाया। संगठन में भी ऐसे ही लोगों को कमान सौंपी गई जो सिर न उठा सकें। वर्तमान में संगठन की गतिविधियां पूरी तरह ठंडी पड़ी है। दरअसल, विधायक वोरा चाहते ही नहीं कि शहर में कोई भी नेता आगे बढ़ पाए। हालात यह है कि उनकी शहर का बिग बॉस बनने की महत्वाकांक्षा खुद उनके राजनीतिक भविष्य को प्रभावित करने लगी है।

सिर्फ वोट बैंक की चिंता

पिछले कुछ समय से दुर्ग में पिछड़ा वर्ग की राजनीति करने वालों का वर्चस्व बढ़ा है। ऐसे में विधायक वोरा की चिंता बढऩा भी स्वाभाविक है, क्योंकि दुर्ग शहर विधानसभा क्षेत्र पिछड़ा वर्ग बाहूल्य है और वे स्वयं सामान्य वर्ग से आते हैं। दरअसल, विधायक यह बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं कि कांग्रेस का ही एक धड़ा उन्हें चुनौती देने की लिए तैयार बैठा है। यही वजह है कि वे लगातार और हर काम का श्रेय स्वयं लेने में जुटे रहते हैं। शहर में काम चाहे कौड़ी का न हो, किन्तु घोषणा-वीर विधायक बड़ी-बड़ी बातें करने में कदापि पीछे नहीं रहते। वे यह देखते कि विकास कार्यों को करवाने के लिए बजट भी उपलब्ध है या नहीं। राजनीति में उतरने के बाद से अब तक उन्होंने सिर्फ वोट बैंक की चिंता की है।

उन्हें यह क्यों नहीं दिखता कि जिस इंदिरा मार्केट क्षेत्र को सुव्यवस्थित और साफ-सुथरा करने के लिए पूर्ववर्ती महापौरों ने रात-दिन एक कर दिया, आज वहां से दुपहिया लेकर निकलना भी दूभर हो गया है। इन अतिक्रमणकारियों को हटाने की बजाए वे ऐसे लोगों को लगातार प्रश्रय देते रहे हैं। जबकि इंदिरा मार्केट क्षेत्र शहर का आईना है। कांग्रेस की आयरन लेडी इंदिरा गांधी का प्रतिमा स्थल यदि अपनी दुरावस्था पर रो रहा है तो इसके लिए वोट बैंक की राजनीति और अतिक्रमणकारियों को प्रश्रय देने की विधायक की सोच ही जिम्मेदार हैं।

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