Rare Case : एब्डोमन में विकसित हुई 7 माह का स्टोन बेबी…फिर क्या हुआ पढ़े ?
जवाहर लाल नेहरु मेडिकल कॉलेज में किया सफल ऑपरेशन, जर्नल में प्रकाशित होगी केस स्टडी
रायपुर/नवप्रदेश। Rare Case : रायपुर स्थित जवाहर लाल नेहरु मेडिकल कॉलेज में गर्भावस्था की जटिलताओं से जुड़ा एक दुर्लभ मामला सामने आया है। स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की टीम ने एक महिला के पेट से मृत भ्रूण को बाहर निकाला है। यह गर्भ के बाहर था और शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली की वजह से पत्थर बन चुका था। मेडिकल की भाषा में इसे लिथोपेडियन अथवा स्टोन बेबी कहा जाता है।
सर्जरी के बाद महिला के पेट की परेशानी खत्म हो गई इसलिएअब वह डिस्चार्ज लेकर घर जाने को तैयार है। विभागाध्यक्ष डॉ. ज्योति जायसवाल के मुताबिक बच्चेदानी के बाहर पेट यानी एब्डोमन में भ्रूण का विकास होकर स्टोन बेबी में बदल जाने की स्थिति बहुत ही दुर्लभ है। इस प्रकार के केस का प्रकाशन मेडिकल जर्नल में बहुत ही कम देखने को मिलता है।
पेट दर्द से परेशान थी महिला
गरियाबंद निवासी 26 वर्षीय महिला कुछ दिनों से पेट दर्द से परेशान थी। उसके पेट में पानी भरने से होने वाले सूजन था। जांच में महिला के पेट में दुर्लभ लिथोपेडियन का पता चला जिसे स्टोन बेबी भी कहा जाता है। स्त्री एवं प्रसूति रोग विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. ज्योति जायसवाल के नेतृत्व में स्टोन बेबी को बाहर निकालने के लिए पेट की सर्जरी की गई, जिसमें करीब सात महीने के विकसित दुर्लभ स्टोन बेबी को बाहर निकाला गया।
कई प्रोसेस के बाद पता चला
डॉ. ज्योति जायसवाल ने बताया, भर्ती करने के बाद महिला (Rare Case) का एक्स रे, सीटी एंजियो, एमआरआई कराया गया। स्टोन बेबी का पता लगने पर वैस्कुलर सर्जरी विभाग के डॉक्टरों से ओपिनियन लिया गया। साथ ही इस केस की जानकारी भी दी गई कि यदि बच्चा आमाशय और आंत की नसों से चिपका होगा तो सर्जरी के समय वैस्कुलर सर्जन की जरूरत पड़ सकती है। सर्जरी विभाग के डॉक्टरों को भी ऑपरेशन के दौरान इस संभावना के अंतर्गत साथ में रखा गया कि यदि बच्चेदानी के बाहर बच्चा अंतडिय़ों और ओमेंटम के बीच में लिपटा हुआ होगा तो सर्जन की भी जरूरत पड़ेगी।
ऑपरेशन के दौरान देखा गया कि स्टोन बेबी का आंवल बाहर था। आंवल यूट्रस के बाहर रूडीमेंटरी हार्न के टिश्यू से ब्लड सप्लाई ले रही थी। रूडीमेंटरी हार्न को काट कर स्टोन बेबी के साथ निकाल दिया गया। ऑपरेशन में ज्यादा दिक्कतें नहीं आई क्योंकि पेट के अंदर बेबी ने आसपास के अंगों को प्रभावित नहीं किया था। इस ऑपरेशन में डॉ. ज्योति जायसवाल के साथ डॉ. रुचि गुप्ता, डॉ. स्मृति नाईक और डॉ. प्रियांश पांडे, एनेस्थीसिया से डॉ. मुकुंदा शामिल रहे।
कैसे बना ‘भ्रूण’ स्टोन बेबी
डॉ. ज्योति जायसवाल ने बताया, लिथोपेडियन या स्टोन बेबी तब बनता है जब गर्भावस्था, गर्भाशय के बजाय पेट में (एब्डामिनल प्रेगनेंसी) होती है। जब यह गर्भावस्था अंतत: विफल हो जाती है और भ्रूण के पास पर्याप्त रक्त की आपूर्ति नहीं होती है तो शरीर के पास भ्रूण को बाहर निकालने का कोई तरीका नहीं होता है। नतीजन, शरीर अपनी स्वयं की प्रतिरक्षा तंत्र का उपयोग कर भ्रूण को पत्थर में बदल देता है जो शरीर को किसी भी ऐसी विदेशी वस्तु से बचाता है जिससे शरीर को कोई नुकसान न हो। ऊतकों में इस तरह कैल्शियम जम जाने से वह सख्त हो जाता है, जो मां को संक्रमण से बचाता है। कई बार इससे शरीर को कोई नुकसान नहीं होता, लेकिन कई बार इसके पेट के अंदर रहने के कारण दूसरी समस्याएं भी जन्म लेने लगती हैं।
जीवित प्रसव की संभावना बेहद कम
डॉक्टरों ने बताया- एब्डॉमिनल प्रेगनेंसी में पेट के अंदर बहुत कम बच्चे जीवित रह पाते हैं। ऐसा भी नहीं होता कि बच्चा पेट के अंदर इतना बड़ा हो गया हो कि डिलीवरी का टाइम आ गया हो और मरा नहीं। यह भी दुर्लभ है। पुराने मेडिकल लिटरेचर में ऐसे रेयर केस मिले हैं जिसमें एब्डॉमिनल प्रेगनेंसी जीवित पैदा हुई हो, लेकिन ऐसे केस में आंवल कहीं न कहीं से ब्लड सप्लाई ले रही होती है। सामान्य प्रेगनेंसी में आंवल, बच्चेदानी के दीवार के अंदर से चिपकी होती है और वहां से खून लेकर बच्चे को बड़ा करती है। इस केस में बच्चा बच्चेदानी के रूडीमेट्री हार्न के अंदर से ब्लड सप्लाई ले रहा था।
महिला ने 15 दिन पहले दिया था बच्चे को जन्म
डॉक्टरों ने बताया- गरियाबंद की महिला ने 15 दिन पहले सामान्य प्रक्रिया से एक बच्चे को जन्म दिया था। वह लगभग साढ़े सात महीने का अत्यंत कम वजनी एवं अपरिपक्व बच्चा था। उपचार के बाद भी वह ठीक नहीं हो पाया और उसकी मौत हो गई। इस प्रकार महिला के पेट में दो बच्चे थे। एक जो बच्चेदानी (यूट्रस) के अंदर सामान्य भ्रूण की तरह पल रहा था एवं जीवित जन्म लिया और दूसरा बच्चेदानी के बाहर एवं पेट (आंत व आमाशय के आसपास) के अंदर स्टोन में तब्दील हो चुका था।
जर्नल में प्रकाशित होगी केस स्टडी
डॉ. ज्योति जायसवाल ने बताया, यह बेहद दुर्लभ (Rare Case) मामला है। बतौर डॉक्टर मैंने मेडिकल कॉलेज रायपुर में यह तीसरा केस देखा है। इससे पहले जब मैं पीजी स्टूडेंट थी तब 22 साल पहले एक केस देखा था। उसके बाद कुछ सालों पूर्व एक और केस यहां आया था। संभवत: यह तीसरा केस है। इस केस में संभवत: दोनों प्रेगनेंसी एक साथ हुई हो और करीब एक डेढ़ महीने पहले उसका विकास बंद हो गया हो इसलिए गर्भाशय का जीवित बच्चा जिसने जन्म लिया वह साढ़े सात महीने का और यह करीब सात महीने का दिखाई दे रहा है।
उन्होंने बताया- अपने आप में बेहद दुर्लभ एवं जटिल किस्म के इस केस को मेडिकल जर्नल में प्रकाशन के लिए मरीज के परिजनों से स्वीकृति ले ली गई है। मेडिकल कॉलेज में भविष्य में चिकित्सा छात्रों के अध्ययन के लिए भी परिजन की स्वीकृति पर स्टोन बेबी को सुरक्षित रख लिया गया है।