Ramayana : भगवान श्री राम की महानता एवं आदर्श

Ramayana : भगवान श्री राम की महानता एवं आदर्श

Ramayana: Greatness and Ideal of Lord Shri Ram

Ramayana

Ramayana : रामायण और श्री रामचंद्र भगवान की महिमा का वर्णन करना और उसे शब्दों में बांधना सूरज को दीपक दिखाने के सामान हैं तथापि भगवान श्री राम की महिमा, उनकी उदारता और उनके आदर्श जो हमारे लिए न केवल प्रेरणा स्रोत हैं बल्कि हमारी जीवन संस्कृति का मूल आधार हैं उनके संबंध में संक्षेप में प्रकाश डालने का यह मेरा छोटा सा प्रयास है। आज से हजारों वर्ष पूर्व भगवान श्री राम द्वारा जो आदर्श स्थापित किए गए हैं वह हम सबके लिए आज भी उपयोगी और अनुकरणीय हैं जैसे विपरीत परिस्थितियों में भी शांत और निर्लिप्त रहना कोई श्रीराम से सीखे।

जिस दिन उनका राजतिलक होना था उस दिन उन्हें वनवास जाने का निर्णय मालूम पड़ा वह भी किशोरावस्था में जबकि उनका विवाह हुए भी अधिक दिन नहीं हुए थे तब भी उन्हें किंचित मात्र भी दु:ख नहीं हुआ बल्कि उनके विछोह में पिता सहित जो दुखी हो रहे थे उन्हें उन्होंने ढांढस बंधाया और माता कैकई को पिता द्वारा दिए गए वचन को निभाने के लिए कमंडल और मुनिवेश धारण कर वन को प्रस्थान कर गए।

श्री राम के जीवन चरित्र से हमें यह भी सीख मिलती है कि जहां आपस में निस्वार्थ और गहरा प्रेम है वहां कोई लाख चाहे आपके प्रेम में विघ्न पैदा नहीं कर सकता। उसका प्रत्यक्ष उदाहरण यह है कि भगवान राम ने पृथ्वी पर अवतार ही राक्षसों के नाश के लिए लिया था और यदि भगवान श्री राम को राज्य प्राप्त हो जाता तो देवताओं ने जो राक्षसों के विनाश के लिए रचना रची थी भगवान श्री दशरथ जी के यहां पुत्र के रूप में जन्म लेंगे और पृथ्वी को राक्षसों से मुक्त करेंगे इसलिए सभी देवता ने मां सरस्वती से प्रार्थना की और मां सरस्वती ने केवल जनकल्याण की दृष्टि से ही कैकेई की बुद्धि फेरी और कैकेई ने दासी मंथरा की बातों में आकर श्री राम को वनवास और भरत को राज सिंहासन देने का वर मांगा।

अब यहां देखिए यदि कैकेई के मन में अपने पुत्र श्री राम के प्रति निस्वार्थ प्रेम होता और मंथरा के मन में भी संकीर्ण सोच नहीं होती तो शायद मां सरस्वती भी उनकी बुद्धि को नहीं फेरती। इस बात की पुष्टि इस प्रसंग से भी होती है कि वही जब भरत श्री राम को वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटने और अयोध्या का राज सिंहासन संभालने के लिए श्री राम से अनुनय विनय करते हैं और जब देवताओं को लगता है कि कहीं श्री राम भरत के अनिरोध को मानकर अयोध्या लौट न जाये तब देवता पुन: मां सरस्वती से प्रार्थना करते हैं और भरत की बुद्धि को फेरने का आग्रह करते हैं लेकिन मां सरस्वती भरत के श्री राम के प्रति प्रेम को देखकर ऐसा नहीं करती।

इससे यह भावना बलवती होती है कि प्रेम में जो ताकत है उसे भगवान भी यदि चाहे तो उसमें भेद नहीं कर सकते और श्री राम के प्रति भरत का जो निस्वार्थ समर्पण था उसी प्रकार यदि हम भी भगवान के प्रति विश्वास और समर्पण की भावना रखें तो भगवान भी हमें अपने से अलग नहीं कर सकते। भरत जब श्री राम को अयोध्या चलने के लिए अनुरोध करते हैं तब प्रभु श्री राम भरत के प्रेम के कारण ही की भरत की भावनाओं को ठेस ना पहुंचे इसलिए सोच के कारण भरत को सीधे ना नहीं कह पाते हैं बल्कि श्री भरत को ही पिता द्वारा माता को दिए गए वचन की याद दिलाते हुए अपने कर्तव्य का पालन करने की शिक्षा देते हैं।

श्री राम के जीवन चरित्र से हमें इस बात की भी शिक्षा मिलती है कि हमें किसी के मोह में नहीं पडऩा चाहिए। श्री राम का वनवास आदि पहले से ही तय था फिर भी राजा दशरथ पुत्र के मुंह में ऐसे व्याकुल हुए कि उन्हें अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा। इसी बात की सीख हमें महाभारत से भी मिलती है वहां भी पुत्र मोह के कारण ही नीति एवं धर्म के विरुद्ध कार्य होते रहे और धृतराष्ट् पुत्र मोह के कारण इनकी उपेक्षा करते रहे अंतत: महाभारत का युद्ध हुआ और कौरवों का समूल नष्ट हुआ।

श्री राम के चरित्र से इस बात की भी हमारी आस्था और विश्वास प्रबल होता है कि हर चीज की नियति पहले से ही तय है। जन्म लिया है तो मृत्यु होगी और इस जीवन चक्र में इंसान को किन किन परिस्थितियों से गुजरना पड़ेगा ,कितना संघर्ष करना पड़ेगा यह पहले से ही तय होता है लेकिन फिर भी इंसान उसकी गहराई को ना जानते हुए जरा सी भी विपरीत परिस्थिति आती है तो बेचैन हो जाता है।

जब पहले से ही तय था कि भगवान महर्षि कश्यप एवं उनकी (Ramayana) पत्नी को दिए गये वर के कारण राजा दशरथ के यहां मनुष्य रूप में जन्म लेंगे और राक्षसों का विनाश करेंगे इसलिए हमें यह सोचना चाहिए कि जब भगवान श्री राम जैसे व्यक्तित्व को राज्य के स्थान पर वन जाना पड़ा तो हम सब भी उसी नियति का हिस्सा है। इसलिए जो हो रहा है उसे ईश्वर की कृपा और प्रारब्ध मानते हुए केवल अपने कर्तव्य,दायित्व और जिम्मेदारी का निर्वहन ईमानदारी से करेंगे तो कोई परेशानी ही नहीं होगी।

चन्द्र शेखर गंगराड़े, पूर्व प्रमुख सचिव, छत्तीसगढ़ विधानसभा

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