Production of Crops : जैविक खेती समय की मांग
Production of Crops : कृषि प्रधान हमारे देश में फसलों का उत्पादन बढ़़ रहा है जो अच्छी बात है लेकिन ज्यादा से ज्यादा फसल लेने की होड़ में जिस तरह से रासायनिक खादों और कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल हो रहा है उससे भूमि की उर्वरा शक्ति कम होती जा रही है। देश में सर्वाधिक गेहूं का उत्पादन करने वाले पंजाब की स्थिति यह है कि वहां की कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति एक तरह से खत्म हो चुकी है। बगैर रासायनिक खादों के गेहूं का उत्पादन असंभव हो गया है।
कमोबेश (Production of Crops) यही स्थिति अन्य राज्यों की भी होती जा रही है। रासायनिक खादों और कीटनाशक दवाओं के उपयोग के कारण फसल भी जनस्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है। यही वजह है कि अब चांवल और गेंहू सहित दलहन व सिलहन की फसलों में वह स्वाद नहीं रहा। समय की मांग है कि अब रासायनिक खादों की जगह जैविक खादों का अधिकाधिक इस्तेमाल किया जाए ताकि भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़े और गुणवत्ता युक्त फसल प्राप्त हो। इस दिशा में धान का कटोरा कहलाने वाले छत्तीसगढ़ ने अनूठी पहल की है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल पर इस साल अक्षय तृतिया (अक्ति) पर्व को छत्तीसगढ़ माटी पूजन दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। इस दौरान छत्तीसगढ़ शासन के कृषि विभाग, बीज निगम और इंदिरा कृषि विश्व विद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में पूरे प्रदेश में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन कर किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित किया गया जो अन्य प्रदेशों के लिए अनूकरणीय है। वास्तव में जैविक खेती प्रकृतिक खेती है जो हमारे देश में सदियों से होती आई है।
खाद के रूप में गोबर (Production of Crops) का ही इस्तेमाल किया जाता था। जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहती थी और फसल भी बेहतर होती थी लेकिन कुछ दशकों पूर्व रासायनिक खादों का इस्तेमाल बढऩे लगा और हमारे किसान अधिक उत्पादन की लालच में प्राकृतिक खेती से दूर होते गए। रासायनिक खाद और कीटनाशक दवाएं बहुत महंगी पड़ती है जिसकी वजह से कृषि की लागत भी बढ़ती है और कृषि घाटे का सौदा सिद्ध होती है। अत: जैविक खेती की ओर ही लौटना श्रेयस्कर होगा।