प्रसंगवश : ''तिहार और न्याय की नूराकुश्ती''

प्रसंगवश : ”तिहार और न्याय की नूराकुश्ती”

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यशवंत धोटे

tihaar aur nyay kee noora kushtee: यह शीर्षक आपकों पढऩे में भले ही अजीब लगे लेकिन राज्य के मौजूदा राजनीतिक हालात कुछ ऐसे ही है। यहा तिहार और न्याय की नूराकुश्ती चल रही है जिसमें जनता हार रही है इसमें दो लडऩे वालो को सूकून इस बात का रहता है कि न तुम जीते न हम हारे।

दरअसल इसे इसलिए नूराकुश्ती कहा जा रहा है कि कोविड के इस काल में सामाजिक और आर्थिक मसलो पर जुझ रहा बहुसंख्यक निम्न, मध्यमवर्गीय समाज हाशिए पर है और राजनीति उफान पर। शुरूआत उत्सवधर्मी भाजपा से करते हैं। कल ही भाजपा का टूलकिट तिहार (उत्सव) संपन्न हुआ और सत्तासीन कांग्रेस ने बेहतरीन न्याय किया कि महामारी रोकने लगे लाकडाउन में सैकड़ो की तादाद में जूलस, धरना प्रदर्शन करने वालों को गिरफ्तार नही किया।

पिछले 15 साल से हर पोलिटिकल इवेन्ट को तिहार के रूप में मनाने वाली भाजपा ने इस बार पहला टूलकिट तिहार सड़क पर मनाया। अभी तक घरों से धरना प्रदर्शन की फोटोए वायरल होती थी। कभी बोनस तिहार, कभी मोबाईल तिहार, कभी धान खरीदी तिहार, मनाने वाले इस दल की उत्सवधर्मिता का हाल ये है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेई की शोकसभा में भी मंच पर सरोज पांडे और अजय चन्द्राकर के बीच हंसी ठिठौली का विडियो वायरल होता रहा।

‘अब होगा न्याय’ के नारे के साथ 15 साल बाद बम्पर जनादेश के साथ सत्ता में आई कांग्रेस इस तिहार के जवाब में न्यायधर्मिता की नई अवधारणा ले लाई। कांगे्रस की सत्ता और संगठन से होने वाला हर काम अब न्याय की कसौटी पर कसा जाने लगा है। किसानो की कर्जमाफी को पहले न्याय से जोड़ा। फिर 2500 रूपए क्विन्टल धान की खरीद हुई तो राजीव गांधी किसान न्याय योजना का नाम दिया। और अब पूरी ग्रामीण आबादी के लिए किए जाने वाला हर काम न्याय की कसौटी पर होगा चाहे फिर वह गोधन न्याय योजना से गोबर खरीदी ही क्यो न हो।

अब बात उनकी हो जाए जो इस नूराकुश्ती (tihaar aur nyay kee noora kushtee) में पीस रहे है । पिछले दो महिनों से लाकडाउन में रोजी, रोजगार बन्द कर घर बैठे लोगो के लिए 10 किलो चावल का तो न्याय हो गया लेकिन लेकिन 70 रूपए लीटर का खाद्य तेल 170 रूपए हो गया । बाकि महंगाई के बारे में विस्तार से वर्णन की जरूरत नही हैं लेकिन कोविड प्रभावित परिवारों को प्राईवेट अस्पतालो ने इस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया हैं कि उनके लिए सामान्य जीवन कठिन हो गया हैं ।

हालाकि इस लूट के अपराध से न्याय दिलाने के लिए नोडल अफसर थे लेकिन जब रक्षक ही भक्षक बने तो न्याय की परिकल्पना बेमानी होगी। जिन अस्पतालो को नोटिस मिल रहे है वे पैसे वापसी की बजाय नोडल अफसरो से बांर्गनिंग करवा रहे है। बहुत कम लोग जानते है कि कोरोना पीडि़त परिवारो ने घर दवर बेचकर अपना इलाज करवाया और कंगाल हो गए।

अभी छोटे उद्योग धन्धो को मिलने वाले न्याय की शक्ल क्या होगी यह अनिश्चित हैं। लेकिन केन्द्र और राज्य की सरकारे एक दूसरे पर राजनीति न करने के आरोप लगा रही हैं। दरअसल यह टूलकिट तिहार भाजपा के थिंकटेक के दिमाग की उपज है और इस तिहार से वह कोविड पीडि़त जनता को बरगलाने में थोड़ा बहुत कामयाब भी रही लेकिन जिनके घरों में मौते हुई है उन्हे बरगलाना मुश्किल हैं। बहरहाल यही कहा जा सकता है तिहार और न्याय की नूराकुश्ती में न कोई जीता न कोई हारा । हार गई जनता।

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