Parliament : संसद का सम्मन करें माननीय…
Parliament : भारतीय संसद को प्रजातंत्र का सबसे बड़ा मंदिर कहा जाता है। किन्तु वहां विराजने वाले माननीय ही जब संसद की गरीमा को भंग करते है तो देश की जनता को इस बात का अपसोस होता है कि जिन लोगों को उसने अपना नुमाइंदा चुन कर संसद में भेजा है। वे जनहित से जुड़े मुददो को लेकर संसद में आवाज नहीं उठा रहे हैं और सिर्फ हंगामा करके लोकतंत्र की मर्यादा को तार-तार कर रहे हैं। संसद का मानसून सत्र भी हंगामों की भेंट चढ़कर रह गया। इस पूरे सत्र के दौरान ब मुश्किल मात्र 22 प्रतिशत ही काम हो पाया। संसद की कार्रवाई में बार-बार बाधा पढऩे के कारण 280 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।
आम जनता के गाड़े खुन पसीने की यू व्यर्थ जाना माननीयों (Parliament) के लिए शर्म की बात है। कायदे से तो इस छति की पूर्ति इन माननीयों के वेतन भत्ते और अन्य सुविधाओं में कटौती करके ही की जानी चाहिए। तभी इन हंगामा जीवि माननीयों को सबक मिलेगा। संसद के भीतर इस बार जो कुछ हुआ उससे राज्यसभा के सभापति एम वैंकेया नायडू रो पड़े। उन्होंने कहा कि विपक्ष के इस रवैये के कारण सदन की गरिमा को जो ठेस पहुंची है उसकी निंदा करने के लिए उनके पास शब्द ही नहीं है।
लोकसभा अध्यक्ष ने भी विपक्ष के रवैये को लेकर नाखुशी जाहिर की है। आखिरकार संसद (Parliament) का मानसून सत्र दो दिन पूर्व ही अनिश्चित काल के लिए स्थगित करना पड़ा। अब विपक्ष इस बात पर आपत्ति उठा रहा है कि संसद को दो दिन पहले ही क्यों स्थगित कर दिया गया। जाहिर है यदि दो दिन और संसद की कार्रवार्ई चलती तो वहां और ज्यादा हगांमा ही होता। इसलिए दो दिन पूर्व संसद को स्थगित करना उचित फैसला है। इससे संसद की कार्रवाई पर खर्च होने वाला पैसा तो बचेगा।
अब देखना है कि संसद में चर्चा करने की जगह हगांमा करने वाले सांसदों (Parliament) के खिलाफ कड़ी से कड़ी कारवाई सुनिश्चित की जाए। सिर्फ उन्हें कुछ अवधि के लिए संसद से निलंबित कर देना पर्याप्त नहीं है। ऐसे हंगामा जीवि माननीयों पर अर्थदंड का भी प्रावधान किया जाना चाहिए तभी उनकी अक्ल ठिकाने लगेगी और भविष्य में संसद में शर्मसार करने वाली ऐसी घटनाओं की पूर्नावृत्ति नहीं होगी। सत्त पक्ष औैर विपक्ष दोंनो की जिम्मेदारी भी होनी चाहिए।
अभी यह होता है कि संसद (Parliament) न चलने देने के लिए सत्तापक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर अपनी जिम्मेदारी से भागने की कोशिश करते हैं। जबकि संसद को सुचारू रूप से चलाना दोनो की ही जिम्मेदारी होनी चाहिए। इस बारे में भी सरकार को उचित कदम उठाने होंगे। तभी संसद को हंगामों की भेंट चढऩे से बचाया जा सकेगा।