Pandemic in Banana : टिश्यू कल्चर पौधे संक्रमित, केले में फैला रहे महामारी
pandemic in banana की वजह बना टिश्यू कल्चर पौधों में फैला रोग
नई दिल्ली/ ए.। केले की फसल में महामारी (pandemic in banana) फैल रही है। दरअसल जो पौधे संक्रमित पाए गए हैं वे टिश्यू कल्चर (tissue culture banana plant) से तैयार किए गए हैं।
इन विशिष्ट केले के पौधों की व्यावसायिक खेती करना अधिकांश जगहों पर किसानों के लिए वरदान साबित हुआ लेकिन कई स्थानों पर इसे घातक पनामा विल्ट रोग (panama wilt disease) फैलाने का जिम्मेदार भी पाया गया है जिससे जी-9 किस्म को भारी नुकसान हुआ है। इसका मतलब ये नहीं है कि हमें केला नहीं खना चाहिए। यह सिर्फ फसलों को लगने वाला रोग है। इंसानों पर इसका कोई खतरा नहीं है।
टिश्यू कल्चर से ऐसे हुआ फायदा
पहले परंपरागत ढंग से केले के पत्तिओं द्वारा नए बाग लगा कर शायद हजारों हेक्टेयर क्षेत्र में केले की खेती करना असंभव था लेकिन टिश्यू कल्चर (tissue culture banana plant) तकनीक से तैयार पौधों का उपयोग कर इसकी व्यावसायिक खेती करने का दायरा अब दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। लेकिन किसानों की जरा सी असावधानी से केले की पनामा विल्ट (panama wilt) महामारी (pandemic in banana) उन स्थानों पर फैलने के लिए काफी हैं जहां इस रोग का नामोनिशान नहीं था।
सिंचाई के पानी से फैल रहा जीवाणु
केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (सीआईएसएच) लखनऊ के निदेशक शैलेन्द्र राजन के अनुसार उत्तर प्रदेश और बिहार के किसानों की करोड़ों रुपए की जी – 9 , मालभोग और कई अन्य किस्म की केले की फसल इस बीमारी से नष्ट हो रही है। अधिकतर स्थानों पर सिंचाई के पानी के साथ इस बीमारी के जीवाणु एक स्थान से दूसरे स्थान पर फैल गए और किसानों को कई वर्षों बाद ज्ञात हुआ कि उनके खेत में यह भयानक बीमारी घर कर चुकी है। अब यह महामारी (pandemic in banana) के रूप में फैल रही है। नहर एवं बाढ़ के पानी ने इस बीमारी को फैलाने में मुख्य भूमिका निभाई है । जहां पर यह बीमारी नहीं थी, वहां पर भी टिश्यू कल्चर पौधे से इस रोग के फैलने की संभावना बढ़ गई है।
ऐसे वरदान साबित हुआ पौधा
डॉ. राजन ने बताया कि उत्तर प्रदेश और बिहार के केला उत्पादकों के लिए टिश्यू कल्चर पौधे एक वरदान के समान हैं। इतने बड़े क्षेत्र में केला उत्पादन के लिए परंपरागत तरीके से कम समय में नए बाग लगाने की संभावनाएं बहुत कम है। उत्तर प्रदेश और बिहार में प्रतिवर्ष करोड़ों टिश्यू कल्चर पौधों की आवश्यकता होती है इसलिए कई कम्पनियों के लिए यह एक लाभकारी व्यवसाय है।
अध्ययन में पता चला कारण
पिछले कुछ वर्षों में केले में हो रही पनामा विल्ट महामारी पर अध्ययन करने के बाद पता चला कि इस बीमारी के बहुत से नए स्थानों पर प्रकट होने का मुख्य कारण संक्रमित टिश्यू कल्चर पौधे हैं। भले ही प्रयोगशाला के टिश्यू कल्चर पौधे रोगमुक्त हो परंतु हार्डेनिंग नर्सरी में इस बीमारी से पौधों के संक्रमित होने की संभावना रहती है । वैज्ञानिक प्रयोगशाला में टिश्यू कल्चर से रोग मुक्त पौधे तैयार करते हैं लेकिन इससे निकालकर जब उसे सेकंडरी हार्डेनिंग नर्सरी में रखा जाता है उस दौरान असावधानीवश इसमें पनामा विल्ट बीमारी लगने का खतरा बढ़ जाता है।
रोगग्रस्त पौधों की आपूर्ति
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों ने उत्तर प्रदेश एवं बिहार में यह पाया गया कि यह बीमारी टिश्यू कल्चर हार्डेनिंग नर्सरी से पौधों के कारण नये क्षेत्रों में फैली है लेकिन कई दूरस्थ स्थान जिनके आसपास इस बीमारी का नामोनिशान न था, वहां भी इस बीमारी का प्रकोप पाया गया। किसानों से जानकारी प्राप्त करने के बाद पता चला कि उन्हें रोग ग्रस्त क्षेत्रों से पौधे की आपूर्ति की गयी थी। सीतामढ़ी (बिहार) में बाराबंकी की एक प्रतिष्ठित नर्सरी से आपूर्ति किये गये पौधों से इस बीमारी के फैलने की आशंका व्यक्त की गयी है।
जागरूकता ही बचाव
इस समस्या से बचने के लिए किसानों में विशेष सावधानी एवं जागरूकता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि उनके द्वारा लगाए जा रहे टिश्यू कल्चर पौधे संक्रमित क्षेत्रों की हार्डेनिंग नर्सरी से तो नहीं आ रहे हैं । पौधों को प्रारंभिक अवस्था में ही आईसीआर टेक्नोलॉजी द्वारा उपचारित करके बचाया जा सकता है ।
प्री इम्यूनाइजेशन तकनीक का विकास
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों ने टिश्यू कल्चर पौधों के लिए प्री इम्यूनाइजेशन तकनीक का विकास किया गया है । इस तकनीक के उपयोग से टिश्यू कल्चर पौधों में इस बीमारी से लडऩे के लिए प्रतिरोधी क्षमता उत्पन्न हो जाती है । यह तकनीकी दो वर्ष में किसानों तक पहुंच जाएगी । केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान ने केले की नर्सरी में इस बीमारी से बचाव के लिये किसानों को प्रशिक्षण देना भी शुरु कर दिया है।
बिहार के पूर्णियां , कटिहार , किशनगंज , खगडिय़ा आदि जिलों में जी – 9 किस्म के केले की व्यावसायिक खेती की जाती है । इसके अलावा वैशाली , मुजफ्फरपुर जिलों तथा कुछ अन्य स्थानों में केले की मालभोग और चीनियां किस्म की व्यावसायिक खेती की जाती है । मालभोग किस्म अपने स्वाद , सुगंध और मिठास को लेकर प्रसिद्ध है । इसमें पकने के बाद भी काफी समय तक खाने योग्य बने रहने की क्षमता है ।