संपादकीय: एसआईआर का विरोध समझ से परे

संपादकीय: एसआईआर का विरोध समझ से परे

Opposition to SIR is beyond comprehension

Opposition to SIR is beyond comprehension

Editorial: चुनाव आयोग ने बिहार विधाानसभा चुनाव के पूर्व वहां की मतदाता सूची के गहन परीक्षण का जो निर्देश दिया है उसे लेकर बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। विपक्षी पार्टियों ने एसआईआर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था लेकिन वहां से भी उन्हें निराशा हाथ लगी। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की कार्यवाही पर हस्तक्षेप करने से न सिर्फ इंकार कर दिया बल्कि एसआईआर को उचित भी करार दे दिया।

इसके बाद भी बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाले महागठबंधन के नेताओं द्वारा मतदाता सूची की गहन जांच को लेकर लगातार चुनाव आयोग पर निशाना साधा जा रहा है। राजद के नेता तेजस्वी यादव तो चुनाव आयोग पर भाजपा के इशारे पर काम करने का आरोप लगा रहे हैं और मर्यादा की सारी सीमा लांघकर यह विवादास्प्द बयान भी दे चुके हैं कि दो गुजराती यह तय नहीं कर सकते कि बिहार में कौन वोट देगा और कौन वोट नहीं देगा। कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी लगातार एसआईआर का विरोध करते आ रहे हैं। इनकी देखादेखी अन्य विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने भी चुनाव आयोग की इस कार्यवाही की मुखालफत शुरू कर दी है। उनका यह विरोध वाकई समझ से परे है।

बिहार मेें 2003 भी में भी एसआईआर हुई थी और उस समय राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री थी। उस समय चुनाव आयोग की इस कार्यवाही का किसी ने विरोध नहीं किया था। अब दो दशकों के बाद जब फिर से बिहार में चुनाव आयोग मतदाता सूची की गहन जांच कर रहा है तो विपक्षी पार्टियां इस पर आपत्ति उठा रही है। जबकि अभी तक बिहार के किसी भी मतदाता ने इस प्रक्रिया को लेकर कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई है। एसआईआर का काम 80 प्रतिशत से ज्यादा पूरा हो चुका है और लगभग 35 लाख वोटरों के नाम काटे जाने की तैयारी की जा रही है। किन्तु अभी तक ऐसा एक भी व्यक्ति सामने नहीं आया है जिसने अपना नाम वोटर लिस्ट से काटे जाने की शिकायत दर्ज कराई हो।

इस 35 लाख वोटरों में से 12 लाख वोटर वे हैं जिनकी मौत हो चुकी है लेकिन अभी भी मतदाता सूचियों में उनके नाम दर्ज थे। इसलिए उनका नाम काटना उचित ही है। इसी तरह 17 लाख लोग बिहार छोड़कर अन्य प्रदेशों में स्थाई रूप से जाकर बस गये हैंं। इसलिए उनका नाम भी मतदाता सूची से काटा जा रहा है। अन्य जो लगभग पांच लाख नाम कटने जा रहे हैं उनमें से कई वोटर ऐसे हैं जिनके नाम दो स्थानों की अलग अलग मतदाता सूची में दर्ज हैं। इन्हीं में कुछ ऐसे भी हैं जो या तो बांग्लादेशी हैं या रोहिंग्या हैं जिन्होंने अवैध रूप से घुसपैठ की है।

विपक्षी पार्टियों को ऐसी घुसपैठियों के नाम काटे जाने से दिक्कत हो रही है क्योंकि ये उनके परंपरागत वोट बैंक हैं। वैसे भी 24 जून तक ऐसे लोग जिनके नाम मतदाता सूची से काटे जाने हैं वे अपना दावा आपत्ति से पेश कर सकते है और अपनी नागरिकता के दिखा सकते हैं। चुनाव आयोग की यह कार्यवाही पूरी तरह से पारदर्शी है क्योंकि एसर्आइआर के काम में सभी राजनीतिक पार्टियों के हजारों एजेंटो का सहयोग लिया जा रहा है।

इसके बाद भी विपक्षी पार्टियों के नेता एसआईआर का विरोध कर रहे हैं और चुनाव आयोग पर पक्षपात पूर्ण कार्यवाही का आरोप लगा रहे हैं। एसआईआर को लेकर कुछ सुपारीबाज यूट्यूबर भी अपना एजेंडा चला रहे हैं और एसआईआर को लेकर भ्रम फैला रहे हैं। उनके ट्वीट को भी विपक्षी पार्टियों के नेता सोशल मीडिया पर प्रसारित कर तिल का ताड़ बनाने का काम कर रहे हैं। ऐसे ही एक यूट्यूबर के खिलाफ भ्रम फैलाने के आरोप में एक बीएलओ ने एफआईआर दर्ज करा दी है।

तब से यूट्यूबर फरार है। इस तरह सुनियोजित रूप से एसआईआर विरोध किया जा रहा है और अब तो इसका विरोध बिहार की सीमा पार कर बंगाल तक जा पहुंचा है। गौरतलब है कि बिहार के बाद अब बंगाल सहित अन्य राज्यों में भी चुनाव आयोग मतदाता सूची की गहन जांच कराने जा रहा है। यही वजह है कि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी अभी से एसआईआर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और उन्होंने यह चेतावनी दे दी है कि वे बंगाल में चुनाव आयोग को एसआईआर नहीं कराने देंगी। उनकी यह धमकी ही इस बात का प्रमाण है कि बंगाल में बड़ी संख्या में घुसपैठिये हैं जिनका नाम कटने की संभावना से वे बौखला गई है।