National Tribal Literature Festival : पद्मश्री डॉ. हलधर नाग को सम्मानित करते हुए गले लगाया CM

National Tribal Literature Festival : पद्मश्री डॉ. हलधर नाग को सम्मानित करते हुए गले लगाया CM

National Tribal Literature Festival: CM said - will work as a 'bridge' between two streams

National Tribal Literature Festival

रायपुर/नवप्रदेश। National Tribal Literature Festival : मुख्यमंत्री भूपेश बघेल राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव का उद्घाटन करने पं. दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम पहुंचे। जहां उन्होंने कहा कि, यह आयोजन दो धाराओं यानि समाज की मुख्य धारा और आदिवासी धारा के बीच ‘सेतु’ के रूप में कार्य करेगा। इस मौके पर मुख्यमंत्री बघेल ने प्रख्यात कवि एवं पद्मश्री डॉ हलधर नाग को सम्मानित करते हुए गले भी लगाया।

अछूता राज्य आज बन गया अंतरराष्ट्रीय

आगे CM ने कहा, छत्तीसगढ़ राज्य 44% जंगल से घिरा हुआ है। यहां 31% जनजातियां निवास करती हैं। उनकी अलग भाषा-बोली और जीवन शैली है। छत्तीसगढ़ देश का नौवा और जनसंख्या की दृष्टि से 16वां बड़ा राज्य है। इतना सब होते हुए भी अब तक यह अछूता प्रदेश रहा है।

राज्य निर्माण के साथ यहां एक चीज जुड़ गई नक्सल के नाम पर। लोग डरते हैं कि एयरपोर्ट के बाहर निकलेंगे तो नक्सली पकड़ लेंगे। पिछले तीन सालों में हमने जो किया वह सबके सामने है। राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव किया वह अंतरराष्ट्रीय हो गया। दुनिया के कई देशों के प्रतिभागी आए। बाहर के लोग आए तो इस राज्य के प्रति उनकी सोच बदली है।

इसके पहले सभागार (National Tribal Literature Festival) में CM सहित, आदिम जाति विकास मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम, संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत और महिला एवं बाल विकास मंत्री अनिला भेंडिया ने दीप जलाकर महोत्सव का औपचारिक उद्घाटन किया।

जनजातीय बोलियों को बचाएगा बादल अकादमी

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा, यह चिंता का विषय है कि कई जनजातीय बोलियों का अस्तित्व संकट में है। इसकी वजह से संस्कृति, विचार परंपरा भी विलुप्त होती है। इस बात को ध्यान में रखते हुए सरकार ने यहां की 16 बोली-भाषाओं की पुस्तकें प्राइमरी स्कूल में ही शामिल की हैं। बस्तर में बादल एकेडमी नाम से एक संस्था बनाई है। वह वहां की कला, साहित्य और भाषा आदि को सहेजने की कोशिश कर रहे हैं।

सौभाग्य की बात है कि इतने वर्षों के बाद पहली बार यहां साहित्य महोत्सव का आयोजन हो रहा है। मुख्यधारा और आदिवासी धारा के बीच कोई सेतु नहीं है। इसकी वजह से दोनों धाराओं में क्या बदलाव हो रहा है, दूसरी तरफ के लोग नहीं जान पा रहे हैं। यह कार्यक्रम इन दोनों धाराओं के बीच एक पुल का काम करेगा। इससे पहले आदिम जाति विकास मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने उम्मीद जताई कि तीन दिनों के इस महोत्सव से निकली बातें, सरकार को भी नीतियां बनाने और काम करने में मददगार साबित होंगी।

जंगल के नाम पर लगाते गए इमारती पेड़

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा, जंगल क्यों कट रहे हैं। एक समय था कि आदिवासियों को नमक के अलावा कुछ नहीं चाहिए था। बाद में हमने देखा कि जंगल से फलदार और उपयोगी वृक्ष काट दिए गए। जंगल के नाम पर इमारती पेड़ ही लगाते गए। इससे सबसे ज्यादा नुकसान आदिवासियों को हुआ है। वे लोग जंगल से अलग हो गए। हमने तय किया है कि जंगल में जो भी पेड़ लगाया जाएगा, वह फलदार पेड़ ही होगा। इससे हमारा जंगल भी हराभरा रहेगा और आदिवासियों की जीविका भी सुरक्षित होगी।

संरक्षित जनजातियों को जागरुक करना भी जरूरी

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा, आदिम जनजातियों की संख्या भी लगातार घट रही है, जो चिंता का विषय है। यहां की पंडो जनजाति एलोपैथी दवाई लेती ही नहीं। इसकी वजह से छोटी-छोटी बीमारियों से जान चली जाती है। वहां जनजागृति भी करनी जरूरी है। मुख्यमंत्री ने कहा, हमें भाषा, संस्कृति, नृत्य और साहित्य को ही नहीं बचाना। हमारे ऊपर उन जनजातियों को भी बचाने की जिम्मेदारी है।

बस्तर बैंड के आदिम राग पर झूमे मुख्यमंत्री

उद्घाटन सत्र में प्रख्यात बस्तर बैंड ने आदिम धुनों के साथ माहौल बना दिया। कुछ देर की प्रस्तुति के बाद स्थिति यह बनीं कि खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी नर्तकों के साथ झूम उठे। तीन दिन के महोत्सव में प्रत्येक शाम छत्तीसगढ़ की विभिन्न नृत्य विधाओं का प्रदर्शन किया जाना है। इसमें जनजातीय नृत्य शैला, सरहुल, करमा, सोन्दो, कुडुक, डुंडा, दशहरा करमा, विवाह नृत्य, मड़ई नृत्य, गवरसिंह, गेड़ी, करसाड़, मांदरी, डण्डार आदि नृत्यों का प्रदर्शन शमिल है। इसके अलावा शहीद वीर नारायण सिंह, गुंडाधुर और जनजातीय जीवन पर आधारित नाटक भी खेले जाएंगे।

महोत्सव में पहुंचे सैकड़ों साहित्यकार-विद्वान

21 अप्रैल तक चलने वाले आयोजन में जनजातीय विषयों पर लिखने वाले साहित्यकारों, शोधार्थियों और विश्वविद्यालय के विद्वानों को आमंत्रित किया गया है। अब तक उन विषयों पर 80 शोधपत्र मिल चुके हैं। छत्तीसगढ़ के भी 100 से अधिक साहित्यकार और विद्वान इस महोत्सव में शामिल होने आ रहे हैं। इस महोत्सव में झारखंड, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, मेघालय, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और दिल्ली से भी साहित्यकार शामिल होने पहुंचे हैं।

कला की प्रतियोगिता भी होगी

साहित्य महोत्सव के अंतर्गत कला एवं चित्रकला प्रतियोगिता तीन आयु वर्गो में चित्रकला प्रतियोगिता के लिए राज्यभर के प्रविष्टियां आमंत्रित हो गई हैं। अब तक तीनों आयु वर्गों में 100 प्रविष्टियां प्राप्त हो गई हैं। इसके अतिरिक्त हस्तकला के अंतर्गत माटी, बांस, बेलमेटल, लकड़ी की कलाकृतियों का प्रदर्शन भी होना है। अच्छा प्रदर्शन करने वाले कलाकारों को पुरस्कार एवं प्रमाण पत्र भी प्रदान किए जाएंगे।

जनजातीय विषयों पर पुस्तकों का मेला

महोत्सव (National Tribal Literature Festival) में एक पुस्तक मेला भी लगाया गया है। इसमें देश के प्रतिष्ठित प्रकाशक अपनी किताब लेकर आए हैं। इन प्रकाशकों में नेशनल बुक ट्रस्ट, वाणी प्रकाशन-ज्ञानपीठ, राजकमल प्रकाशन, सत्यम पब्लिशिंग, कौशल पब्लिशिंग हाउस, सरस्वती बुक प्रकाशन, फारवर्ड प्रेस, कावेरी बुक सर्विस, वैभव प्रकाशन, हिंदी ग्रंथ अकादमी और गोंडवाना साहित्य का नाम शामिल है।

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